(रवि भोई की कलम से)
विधानसभा के माननीय विधायकगण संविधान के प्रमुख अंग विधायिका का हिस्सा होने के साथ-साथ जनता के प्रतिनिधि भी होते हैं। वे कार्यपालिका पर नजर और अंकुश लगाने का काम भी करते हैं, जिससे जनहित के खिलाफ कोई काम न हो, लेकिन जनप्रतिनिधि ही रास्ता भटक जाएं तो क्या कहा जाए ? कहते हैं 90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा के कुछ माननीय विधायकगण नई राह पर चल पड़े हैं। सरकार ने मंत्रियों, संसदीय सचिवों और कुछ विधायकों को सरकारी मकान दिए हैं। रायपुर में विधायक विश्राम गृह है, पर उसकी स्थिति अच्छी न होने से वहां ताला लटका है। पिछली सरकार ने ही सरकारी बंगले न पाने वाले विधायकों को राजधानी में किराए से मकान लेने की छूट दे दी थी और तीस हजार रुपए प्रतिमाह मकान किराया तय कर दिया था। वह व्यवस्था इस सरकार में भी है। कहा जा रहा है कुछ माननीयगण विधानसभा सचिवालय से हर महीने किराए की राशि तो ले रहे हैं , पर उन्होंने राजधानी में किराए का मकान नहीं लिया है। राजधानी आने पर या सत्र के दौरान वे सरकारी विश्राम गृह में डेरा जमा लेते हैं। प्रदेश के लिए विधि बनाने वालों को अब कौन रोके ?
भूपेश का निशाना
जून में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव हुए तो राहुल को ही कमान मिलना तय माना जा रहा है। कांग्रेस शासित राज्य के मुख्यमंत्री के तौर भूपेश बघेल ने राहुल गाँधी को फिर से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त करने का प्रस्ताव पारित करवाकर उड़ती चिड़िया पर निशाना साधा है। कहा जा रहा है कि पिछले दिनों असम में राहुल गाँधी ने भूपेश बघेल को खूब भाव दिया। राहुल के रुख से लोगों को लग रहा है कि पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों के चुनाव में कांग्रेस के मंचों में भूपेश छाए रह सकते हैं। असम में हजारों की संख्या में छत्तीसगढ़ के मूल निवासी रहते हैं, जो चाय बागानों में काम करते हैं, उनमें राजनीतिक चेतना भी है। असम में सीएए और एनआरसी बड़ा मुद्दा है। छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता और रणनीतिकार असम में कांग्रेस का परचम फहराने में लगे हैं। अब कितनी सफलता मिलती है, यह तो चुनाव नतीजे से पता लगेगा। कांग्रेस के पक्ष में नतीजा आया तो तय है कि पार्टी में भूपेश के पांव और मजबूत होंगे। फिलहाल तो भूपेश पर राहुल का पूरा भरोसा है। कहते हैं राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के बारे में कुछ नामी उद्योगपतियों की शिकायत को तवज्जो नहीं दिया।
भाजयुमो में उम्र के लफड़े के पीछे का खेल
कहते हैं छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता युवा मोर्चा की कार्यकारिणी को लेकर लगी आग तो पार्टी के कुछ पदाधिकारियों ने ही लगाईं, जिसे बुझाने के लिए प्रभारी महासचिव डी. पुरंदेश्वरी को रायपुर आना पड़ा। चर्चा है कि कार्यकारिणी गठन में मनमानी के लिए उन्होंने मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अमित साहू को जमकर फटकार लगाई।अमित साहू को पूर्व मंत्री और रायपुर दक्षिण के विधायक बृजमोहन अग्रवाल का फालोवर माना जाता है। बृजमोहन समर्थक को भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष का पद मिलना पार्टी के ही कुछ लोगों को रास नहीं आया । ये लोग मौके की ताक में थे और अमित साहू ने जैसे ही कार्यकारिणी गठन में गलत दांव चला, उसे दबोच लिया। कहते हैं अमित साहू ने बृजमोहन के साथ पवन साय को भी पकड़ रखा है। इस दम में उसने अपनी सीमा का ख्याल ही नहीं रखा और बृजमोहन विरोधियों द्वारा लगाई आग ज्वाला बन गया। पुरंदेश्वरी ने लगाम लगाने की कोशिश तो की है, पर छत्तीसगढ़ भाजपा का अंतर्कलह फिलहाल तो थमता नहीं दिख रहा है।
सरकारी शराब कंपनी के लिए अफसर की दौड़
छत्तीसगढ़ में शराब बेचने वाली सरकारी कंपनी से भारतीय टेलीकाम सर्विस के अधिकारी एपी त्रिपाठी विदा होते हैं या नहीं, यह अभी तय नहीं है, लेकिन उनकी जगह जाने के लिए राज्य प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी द्वारा दांवपेंच चलने की जबर्दस्त चर्चा है। यहां पहले भी राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी महाप्रबंधक और दूसरे पदों पर रह चुके हैं। कहते हैं कई नगर निगमों और जिलों में सेवा दे चुके यह अधिकारी बड़ी उम्मीद के साथ रायपुर आए थे , कहा जाता है उन्होंने जैसा सोचा था, वैसी बैटिंग नहीं हो पा रही है। खबर है कि इस कारण अधिकारी महोदय ब्रेवरेज कार्पोरेशन की तरफ रुख करना चाहते हैं। इसके लिए प्रयास भी शुरू कर दिए हैं। अब देखते हैं उन्हें सफलता मिलती है या नहीं । आबकारी शुरू से कमाऊ विभाग और अफसरों को आकर्षित करता रहा है।
मंत्री अमरजीत भाजपा के निशाने पर
कभी केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह के बारे में बोलकर या फिर केंद्र सरकार पर परोक्ष हमला कर और संवेदनशील मुद्दों पर बयान देकर चर्चा में रहने वाले राज्य के खाद्य और संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत इस समय भाजपा के निशाने पर हैं। कभी स्व.अजीत जोगी के खासमखास रहे अमरजीत भगत सरगुजा जिले के सीतापुर विधानसभा के विधायक हैं , लेकिन जशपुर जिले में विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरवा लोगों की जमीन को उनके एक बेटे के नाम से खरीदना उन पर भारी पड़ता दिख रहा है। मुद्दे पर राजनीतिक रंग चढ़ने लगा है। कुछ पहाड़ी कोरवा लोगों ने कलेक्टर से शिकायत कर उन पर जबरिया खरीदने का आरोप लगाया है। जिला प्रशासन और सरकार की तरफ से इस मामले में अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है, वहीँ दूसरी तरफ भाजपा ने पूरे मामले की अपने स्तर से जांच के लिए एक कमेटी बना दी है। मामले में विपक्षी पार्टी के कूदने से उसमें राजनीतिक रंग घुलना स्वाभाविक है। भाजपा नेता इस मामले में जनहित याचिका दायर करने पर भी विचार कर रहे हैं। अब देखते हैं आगे क्या-क्या होता है?
अफसर एक, काम तीन
लोक निर्माण विभाग के चीफ इंजीनियर ज्ञानेश्वर कश्यप लोक निर्माण संभाग रायपुर के चीफ इंजीनियर तो हैं ही, साथ में वे छत्तीसगढ़ सड़क विकास निगम के अतिरिक्त प्रबंध संचालक और प्रमुख अभियंता कार्यालय में चीफ इंजीनियर योजना भी हैं। कश्यप साहब को अफसरों की कमी के कारण तीन चार्ज दिया गया है या फिर उनके अनुभव का लाभ लेने के लिए, यह लोक निर्माण विभाग के कर्ताधर्ता ही बता सकते हैं, पर कुछ लोगों का कहना है कि रायपुर संभाग का एरिया घटने की भरपाई के तौर पर उन्हें अतिरिक्त काम सौंपा गया है। भूपेश सरकार ने कुछ महीने पहले ही रायपुर लोक निर्माण संभाग का बंटवारा कर लोक निर्माण संभाग दुर्ग बना दिया। दुर्ग संभाग से मुख्यमंत्री के साथ ही पीडब्लूडी मंत्री के होने से यह तो होना था। यह अलग बात है कि पिछली सरकार में यह प्रस्ताव लंबित था।
सूचना आयुक्त के पद पर पत्रकार
खबर है कि जल्द ही एक पत्रकार को सूचना आयुक्त का तगमा मिलने वाला है। राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा दो सूचना आयुक्त का प्रावधान है। मोहनराव पवार का कार्यकाल खत्म होने के बाद सरकार ने एक सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया था। नए सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए अभी अधिसूचना जारी नहीं हुई है, इस पद पर एक पत्रकार के चयन की चर्चा है। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया का अनुभव रखने वाले इस पत्रकार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का करीबी बताया जाता है। कहा जाता है कि इस पत्रकार ने पिछली सरकार में भी सूचना आयुक्त बनने की कोशिश की थी। देर आयद दुरस्त आयद।
रिटायर्ड आईएएस की बला टलने की खबर
कहते हैं छत्तीसगढ़ के एक रिटायर्ड आईएएस को प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग से कुछ राहत मिल गई है। सवा साल पहले आयकर महकमा ने इस रिटायर्ड आईएएस के निवास पर रेड किया था और कुछ दस्तावेज मिलने पर ईडी भी सक्रिय हो गया था। कहते हैं रिटायर्ड आईएएस ने अपने दिल्ली कनेक्शन और भाजपा नेताओं के संपर्क के सहारे अपने ऊपर आई मुसीबत को टालने में कामयाब हो गए हैं।
(लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
(डिस्क्लेमर – कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें। कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )