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पेट्रोल, डीजल, एलपीजी के दामों पर फिलहाल लगे रहेंगे लगाम, जानिए- अभी क्यों नहीं बढ़ेंगे तेल के दाम

पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान और अगले साल यूपी समेत महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव को देखते हुए सरकार ने तेल के दामों में बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला किया है. बिजनेस स्टैडर्ट के मुताबिक तेल के क्षेत्र के विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों के अनुसार तेल कंपनियां निकट भविष्य में कीमतें और नहीं बढ़ाएंगी। हाल ही के महीनों में तेल के दामों में कई बार इजाफा हुआ है जिससे तेल की कीमत सौ रूपये तक पहुंच गई थी. जनता में पल रहे आक्रोश और चुनावों के मद्देनजर सरकार भी इससे चिंतित है और इसका पड़ने वाले दूरगामी असर को देखते हुए ही यह फैसला किया गया है. गौरतलब है कि पिछले साल बिहार चुनाव के समय भी तेल के दाम नहीं बढ़े थे.

राजस्थान के गंगानगर में पिछले महीने तेल की कीमत स100 रुपये तक पहुंच गई थी. इससे सरकार की काफी किरकिरी हुई थी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी स्वीकार किया था कि तेल की कीमत बढ़ना हमारे लिए धर्मसंकट है. इससे बीजेपी को पेट्रोल एवं डीजल की रिकॉर्ड कीमतों को लेकर दबाव का सामना करना पड़ रहा है। पेट्रोल-डीजल के दाम में बढ़ोतरी के साथ ही एलपीजी (रसोई गैस) के दाम भी 1 फरवरी से करीब 125 रुपये प्रति सिलिंडर बढ़ चुके हैं. सरकार से जुड़े दो लोगों ने कहा कि केंद्र ने अनौपचारिक तौर पर तीनों तेल कंपनियों को फिलहाल दाम नहीं बढ़ाने के लिए कहा है.

बढ़ते महंगाई के बीच अंदरुनी हल्कों में पेट्रोलियम पदार्थों को भी जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार किया जा रहा है. केंद्र और राज्यों के बीच ईंधन पर टैक्स की कटौती और इसे वस्तु एवं सेवा कर के दायरे में लाने की चर्चा के बाद इस बारे में औपचारिक निर्देश दिया जा सकता है. एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘कुछ राज्यों द्वारा पेट्रोल और डीजल पर कर में कटौती की है लेकिन खुदरा कीमतों पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।. पेट्रोल-डीजल के दाम रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के पीछे इस पर लगने वाले कर का भी अहम योगदान है. यही वजह है कि इस पर कर घटाने की मांग की जा रही है.

उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल ने पेट्रोल और डीजल पर 1 रुपये प्रति लीटर कर की कटौती की है. राजस्थान ने सबसे पहले 29 जनवरी को पेट्रोल-डीजल पर मूल्यवर्धित कर को 38 फीसदी से घटाकर 36 फीसदी कर दिया था। चुनावी राज्य असम ने पिछले साल कोरोनावायरस से लडऩे के लिए कोष जुटाने की खातिर अतिरिक्त 5 रुपये प्रति लीटर का कर लगाया था जिसे वापस ले लिया गया है. मेघालय ने पेट्रोल पर 7.4 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 7.1 रुपये प्रति लीटर कर कटौती की है.

अगर सरकार की बात को तेल कंपनियां मान लेती है तो उनके मुनाफा मार्जिन में कमी आ सकती है. इससे तेल तेल कंपनियों की चिंता बढ़ सकती है. हालांकि वित्त मंत्रालय ने कुछ रियायत के साथ दाम नहीं बढ़ाने को कहा है. इसके तहत तेल कंपनियों को रुपये में स्थिरता की सुविधा या मार्केटिंग मार्जिन में राहत दी जा सकती है. कैपिटलवाया ग्लोबल रिसर्च में लीड विश्लेषक क्षितिज पुरोहित ने कहा कि चुनावों को देखते हुए दो महीने तक ईंधन की खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी नहीं करने से तेल कंपनियों के मुनाफा मार्जिन में 100 आधार अंक की कमी आएगी. हालांकि मार्जिन में इस कमी को वहन करने में तेल कंपनियां सक्षम होंगी क्योंकि भारत पेट्रोलियम को परिचालन मार्जिन 1.5 फीसदी से बढ़कर 5.97 फीसदी, हिंदुस्तान पेट्रोलियम का मार्जिन 0.68 फीसदी से बढ़कर 4.47 फीसदी और इंडियन ऑयल का मार्जिन 1.35 फीसदी से बढ़कर 5.58 फीसदी हो गया है.

राजधानी दिल्ली में पेट्रोल 91.17 रुपये प्रति लीटर और डीजल 81.47 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। वहीं, ईंधन का घरेलू खुदरा मूल्य वैश्विक बेंचमार्क से जुड़ा है और कच्चे तेल के दाम 1 मार्च को 63.69 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 71 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए हैं। रुपये में नरमी से तेल कंपनियों के मार्जिन पर दबाव बढ़ रहा है। डॉलर के मुकाबले रुपया आज 73.36 पर बंद हुआ।

भारत में पेट्रोल की कीमत महंगी होने की बड़ी वजह यहां सरकारी टैक्सों का बहुत होना है. भारत में पेट्रोल की कीमत पर भारत सरकार 35 से 40 प्रतिशत का टैक्स लगाती है जबकि राज्य सरकारों की ओर से 17-20 प्रतिशत टैक्स लगाए जाते हैं। इसके अलावा 3.5 से 4 प्रतिशत तक डीलर का कमीशन होता है. यही कारण है कि देश में तेल की कीमत पड़ोसी देशों की तुलना में बहुत ज्यादा है. इसे इस तरह भी समझ सकते हैं-

अगर पेट्रोल की कीमत 83.71 रुपये है, तो इसमें
एक्साइज़ ड्यूटी 32.98
राज्य का वैट व अन्य कमीशन 19.32
डीलर का कमीशन 03.67
कुल 55.97

यानी 83.71 रुपये में 55.97 रुपये सरकारें टैक्स के रूप में वसूलती हैं। इस प्रकार पेट्रोल का वास्तविक मूल्य सिर्फ 27.74 रुपये हुआ.

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