राष्ट्रीय जनजाति साहित्य महोत्सव की सीएम बघेल ने की शुरुआत
रायपुर, 19 अप्रैल 2022/ राजधानी रायपुर में चल रहे तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव के तारतम्य में आज आयोजित सांस्कृतिक संध्या लोगों के लिए यादगार बन गई। सांस्कृतिक संध्या की शुरूआत सरगुजा जिले के करमा नृत्य की प्रस्तुति से हुई। इस अवसर पर सुंदरगढ़ के शैला नृत्य, कोण्डागांव जिले के ककसाड़ नृत्य, कबीरधाम जिले के दशहेरा करमा नृत्य और सुकमा जिले के मंडई नृत्य की शानदार प्रस्तुति ने वहां उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध और थिरकने को मजबूर कर दिया। इन सभी नृत्य में जनजातीय समुदाय के पारंपरिक वाद्य यंत्रों और पारंपरिक वेशभूषाओं से सुसज्जित कलाकारों की प्रस्तुति ने लोगों का मन मोह लिया।
3 दिनों तक चलेगा महोत्सव
19 अप्रैल से शुरू हुए इस महोत्सव में अनुसूचित जाति एवं जनजाति विकास मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, जनजातीय साहित्यकार, विषय विशेषज्ञ, शोधार्थी, चित्रकार और विभिन्न राज्यों से आए नर्तक दलों के कलाकारों सहित बड़ी संख्या में लोगों ने सांस्कृतिक संध्या का लुत्फ उठाया।
’’क्रांतिवीर गुण्डाधूर’’ नाटक को लोगों ने सराहा
साईंस कॉलेज के आडिटोरियम में सांस्कृतिक संध्या का मुख्य आकर्षण का केन्द्र ‘‘क्रांतिवीर गुण्डाधूर’’ नाटक का मंचन रहा है। क्रांतिवीर गुण्डाधूर नाटक के लेखक श्री एम.ए. रहीम और श्री जी.एस. मनमोहन के निर्देशन में नतानिया फिल्म प्रोडक्शन हाऊस जगदलपुर के कलाकारों ने अपने सशक्त अभिनय से जीवंत प्रस्तुति दी। क्रांतिवीर गुण्डाधूर की भूमिका में श्री प्रशांत दास के सशक्त अभिनय से दर्शकों को स्तब्ध कर दिया। मंचन के दौरान बीच-बीच में प्रस्तुत गीत और नृत्य ने दर्शकों को बांधे रखा था।
राजधानी रायपुर के मालवीय रोड निवासी श्रीमती स्वाती गुप्ता और श्रीमती रितु गुप्ता सपरिवार इस सांस्कृतिक संध्या को देखने आई थी। उन्होंने बताया कि वे मूलतः उत्तरप्रदेश की है और इस आयोजन के माध्यम से जनजातीय संस्कृति और परम्परा को करीब से जानने का अवसर मिला है। इस आयोजन के लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार और अनुसूचित जाति एवं जनजाति विकास विभाग की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह अवसर उनके और उनके परिवार के लिए अविस्मरणीय है। श्रीमती रितु गुप्ता ने बताया कि वे 45 साल से मुंबई में निवासरत थीं। इस आयोजन में जनजातीय साहित्य से रूबरू हुई हैं। उन्होंने बताया कि उनका लगाव हमेशा साहित्य के प्रति रहा है।
स्कूलों में भी स्थानीय भाषा में होगी पढ़ाई
मुख्यमंत्री ने कहा कि चिंता का विषय है कि विश्व में बहुत सी जनजातियों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है. जिससे उनकी संस्कृति विलुप्त हो रही है. मुख्यमंत्री भुपेश बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने जनजातीय संस्कृति के संरक्षण के लिए स्कूली स्तर भी पहल की है. इसके लिए प्रदेश में 16 प्रकार की बोली में पाठ्य पुस्तक तैयार की गई है. जनजातीय भाषाओं, बोलिया कला-परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए बस्तर में बादल अकादमी की स्थापना की गई है.