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01 मई मधुलिमये के जन्म दिवस पर विशेष लेख, समाजवादी आँदोलन के अग्रणी नेता थे मधुलिमये जी- रघु ठाकुर

स्व. मधु लिमये जी अपनी युवावस्था में ही स्वतंत्रता आँदोलन में शामिल हो गये थे और गिरफ्तार होकर जेल गये थे। अपने सम्पूर्ण जीवन में उन्होंने समाजवाद के विचारों का ना केवल अध्ययन किया बल्कि अध्यापन भी किया। स्वर्गीय साने गुरू जी ने अपने आत्मकथा में लिखा है कि मैंने समाजवाद मधु लिमये से सिखा। स्वर्गीय साने गुरू जी का प्रेम और विश्वास मधु जी के ऊपर कितना गहरा था, यह इससे जाना जा सकता है कि, जब आजादी के बाद उन्हें घोर निराशा हुई तब भी उन्होंने अपने जीवन का आखिरी पत्र मधु जी के नाम लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि जो सपने देखें थे वह पूरा होते नज़र नहीं आ रहे है।

आजादी के आँदोलन के बाद मधु जी गोवा सत्याग्रह में शामिल हुये और उन्होंने गोवा पुलिस की लाठियों को सहा। जब मधु जी ने सत्याग्रह करते हुये गोवा की सीमा में प्रवेश किया तब उन पर भीषण लाठी चार्ज हुआ और वह बेहोश होकर गिर गये और जिस प्रकार पुलिस उन्हें उठाकर ले गई थी उससे वहाँ उपस्थित लोगों ने यही अनुमान लगाया कि मधु जी की मृत्यु हो गई। उस समय बम्बई के समाचार पत्रों में छपा कि, ‘‘मधु लिमये गेले’’ बम्बई के उनके पड़ोसी, स्व. चंपा जी को शोक संवेदना देने घर आने लगे। कई दिनों बाद इस तथ्य की पुष्टि हुई की मधु लिमये जिंदा हैं।

मधु जी समाजवादी आँदोलन के अग्रणी नेता थे, और आचार्य नरेन्द्र देव, डाॅ. लोहिया एवं जे.पी. के बाद दूसरी पीढ़ी के नायक थे। उन्होंने उस समय के वर्मा में अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कान्फ्रेंस में भारत की सोशलिस्ट पार्टी की ओर से हिस्सेदारी की थी। सोशलिस्ट पार्टी के आन्तरिक लोकतंत्र एवं सŸाा के गोली चलाने के विरूद्ध जब लोहिया ने भूमिका ली तब उसको लेकर जो बंटवारा हुआ उसमें मधु जी डाॅ. लोहिया के साथ रहे और तब से लेकर जीवन के आखिरी दिन तक वह डा. लोहिया जी के साथ रहे। डाॅ. लोहिया का मधु जी के प्रति अटूट विश्वास था और मधु जी का डा लोहिया के प्रति अटूट श्रद्धा थी।

मधु जी का संसदीय जीवन तो स्वर्णाक्षरों से लिखने योग्य है। उन्हें संसदीय नियमों एवं परंपराओं का इतना गहरा ज्ञान था कि जब वे कोई प्रश्न उठाते थे तो स्पीकर को भी आमतौर पर उनके तर्क काटने का साहस नहीं होता था।एक बार संसद का पूरा सत्र ही मधु लिमये जी के नाम दर्ज हो गया था, क्योंकि उस पूरे सत्र में हर दिन मधु लिमये जी द्वारा संसद में उठाये गये प्रश्न ही चर्चा के केन्द्र में थे। उस समय की दिनमान पत्रिका ने जो 60 के दशक की देश की सबसे लोकप्रिय पत्रिकाओं में एक पत्रिका थी उसने शीर्षक ही लिखा था ‘‘मधु सत्र’’।

मधु जी के संसदीय ज्ञान एवं शैक्षिणक योग्यता का यह आतंक था कि जब वे एक अटैची लेकर संसद में जाते थे तो सत्ता पक्ष एवं उनके मंत्री भयभीत हो जाते थे कि पता नहीं कौन सा रहस्य मधु जी के पिटारे से निकलने वाला है, और किस मंत्री जी की नौकरी जायेगी। मधु जी के कार्य की विशेषता यह थी कि जो सवाल उठाते थे उसे निर्णायक हल तक ले जाते थे और कई मामलों को तो उन्होंने लगातार कई सत्रों तक उठाया तथा शक्तिशाली सरकारों को भी कार्यवाही करने को लाचार कर दिया।

मैं 1963-64 में मधु जी के सम्पर्क में आया था, यद्यपि मैं उस समय अपने गृह जनपद में पार्टी का पदाधिकारी मात्र था। मध्यप्रदेश में स्वर्गीय मधु लिमये जी का अक्सर आना होता था और मध्यप्रदेश के कार्यकर्ताओं का भी उनसे गहरा लगाव था वे कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझते थे तथा उनके प्रति संवेदनशील रहते थे। 1973 में मैं तत्कालीन सरकार के द्वारा पुलिस के हड़ताल कराने के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में गिरफ्तार कर भोपाल जेल में निरूद्ध था। वहां मेरे कक्ष के सामने की बैरक में एक मुस्लिम भाई थे जिन्हें पाकिस्तानी नागरिक के नाम पर गिरफ्तार कर जेल में रखा गया था। वे रात में बैरक बंद होने के बाद सीकचों के पास खड़े होकर जोर-जोर से रोते थे, यह उनका लगभग दैनिक कार्य था।

एक दिन मैंने उनसे पूछा कि आप रोते क्यों हैं? क्या आपको कोई शारीरिक कष्ट है? उन्होंने बताया कि 1947 में जो बंटवारा हुआ तब वो छोटे थे उनकी बड़ी बहन का ससुराल पूर्व के भारत और विभाजन के बाद के कराची (पाकिस्तान) में था। जब बहन अपनी ससुराल जा रही थी उसके साथ वह कराची चले गये फिर विभाजन हो गया, आना जाना लगभग बंद हो गया। कई वर्षाें बाद जब हालात सामान्य हुये तब वो वीज़ा लेकर भोपाल अपने घर आये यहाँ आकर तांगा चलाने लगे, शादी हो गई बच्चे हो गये, और यही रहने लगे। 1965 में भारत-पाक युद्ध के समय सरकार के द्वारा देश में पाकिस्तान से आये हुये लोगों की वैधानिकता की जाँच परख शुरू की गई और इसी समय वीजा अवधि समाप्त होने के बाद वापिस नहीं जाने के आरोप में पाकिस्तानी नागरिक मानकर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया, तभी से वह जेल में बंद थे। पाकिस्तानी सरकार उन्हें वापिस नहीं लेना चाहती थी और भारत सरकार की नज़र में वो पाकिस्तानी थे। जेल में आये हुए उन्हें कई वर्ष गुज़र गये, उन्होंने अपने बच्चों को भी वर्षाें से नहीं देखा।

मैंने उनकी व्यथः जेल से ही मधु जी को एक पत्र के रूप में लिखकर भेजा। यह मधु जी का भी बड़प्पन था कि एक छोटे से पदाधिकारी के पत्र को पढ़कर बड़ी संजीदगी से संसद में उठाया। इसका परिणाम यह हुआ कि न केवल वह भाईजान छूटे बल्कि विभिन्न जेलों में गिरफ्तार 50 लोग और भी रिहा हुये, साथ ही सभी को भारत की नागरिकता भी मिल गई। मधु जी के साथ मैंने विशेषतः मध्यप्रदेश में बहुत दौरे किये और उस समय के मध्यप्रदेश में जिसमें मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ शामिल था, शायद ही कोई जिला ऐसा हो जिसका दौरा हम लोगों ने नहीं किया था।

धार जिले के माण्डू, होशंगाबाद के पचमढ़ी, पन्ना इत्यादि कई जिलों में मैंने उन्हें कार्यकर्ता शिविर में बुलाया तथा वह कई दिनों तक रूके। 1963-64 से लेकर जीवन के आखिरी क्षण तक मैं उनके साथ रहा। जब उन्होंने जीवन का परित्याग लोहिया अस्पताल में किया तब भी मैं उनके साथ था। मधु लिमये एक नैतिक चरित्र के सच बोलने वाले नेता थे। उन्होंने मुझे एक ही बार झूठ बोला जब वो लोहिया अस्पताल में भर्ती थे। दो दिन से उन्होंने कुछ खाना खाया नहीं था मैंने उनसे बहुत आग्रह किया की कुछ खा लीजिये, उनमें बहुत शारीरिक पीड़ा थी वह सांस भर रहे थे। मेरे प्रेम के आग्रह को समझकर बोले, आज रात को रूक जाओ मैं कल सुबह तुम्हारे साथ खाऊँगा।

सुबह कुछ खाने से पहले ही वह दुनिया से विदा हो गये। शायद उनके जीवन का यही पहला या आखिरी झूठ था। या फिर जिस वायदे को नियति ने पूर्ण नहीं होने दिया। उनकी अपार स्मृतियाँ हैं, सैकड़ों घटनायें हैं, जिनका स्मरण मस्तिष्क में घूमता रहता है। उनके शताब्दी वर्ष में हम संकल्प ले कि हम उनकी नैतिकता, चरित्र, त्याग, ज्ञान, ईमानदारी और संघर्ष का अनुकरण कर सकें। मधु जी एवं चंपा जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

 

 

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