वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण हुआ था, जिसे हर साल मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है। माता बगलामुखी की साधना और आराधना के लिए यह दिन बेहद शुभ और मंगलकारी माना गया है। दरअसल, हिंदू धर्म में मां बगलामुखी को तंत्र की देवी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि इस खास दिन पर देवी की विधि अनुसार पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय मिलती है। इतना ही नहीं जातक को सुख-समृद्धि का वरदान भी मिलता है।
कौन हैं मां बगलामुखी?
शास्त्रों के अनुसार, मां बगलामुखी को आठवीं महाविद्या माना जाता है। इनका प्रकाट्य गुजरात के सौराष्ट्र में हुआ था। माना जाता है कि हल्दी रंग के जल से देवी प्रकट हुई थीं। इसलिए इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहा जाता है। मां बगुलामुखी की स्वरूप की बात करें तो वे अपने बाएं हाथ में शत्रु की जीभ का अगला हिस्सा और दाएं हाथ में मुद्गर पकड़ा हुआ है। माता का यह दिव्य स्वरूप हर तरह के शत्रु और बाधा से मुक्ति दिलाने वाला है। हिंदू मान्यता के अनुसार, मां बगलामुखी तंत्र की देवी हैं और उनमें इतना तेज है कि देवी के आशीर्वाद से लिखे हुए भाग्य भी बदल जाते हैं।
– मां बगलामुखी की पूजा के लिए इस दिन प्रात: काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर, पीले वस्त्र धारण करलें।
– ध्यान रहे साधना अकेले में, मंदिर या किसी सिद्ध पुरुष के साथ ही बैठकर करें।
– देवी की पूजा करने के लिए पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
– उसी दिशा में चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर माता बगलामुखी की फोटो या मूर्ति स्थापित करें।
– देवी के पास स्वच्छ जल से भरा एक कलश स्थापित करें।
– अब दीप प्रज्जवलित करें और हाथ में पीले चावल, पीले फूल, हरिद्रा और दक्षिणा लेकर संकल्प करें।
– संकल्प के बाद आचमन करके हाथ धोएं और आसन पवित्रीकरण करें।
– अब, देवी मां को सिंदूर, रोली, पान, धूप, चावल, बेलपत्र, गंध, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
– इसके बाद माता की आरती उतारें और अंत में लोगों के बीच प्रसाद वितरण करें।