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बहस और न्यायिक व्याख्या से बचने के लिए कानूनों के स्पष्ट मसौदे पर जोर देने वाले नेता हैं शाह

देश के लोकतंत्र को समझने के लिए संविधान सभा की चर्चाओं के अध्ययन पर जोर देने वाले नेता अमित शाह का स्पष्ट मानना है कि सतत प्रक्रिया के तहत विधिक मसौदा तैयार करना एक कौशल है, जिसे सही भावना से कार्यान्वित किया जाना चाहिए। अदालती कार्यवाहियों और किसी भी बिंदु पर टकराव की स्थिति से बचने के लिए कानून का मसौदा स्‍पष्‍ट व सरल होना चाहिए। राजनीतिक इच्छाशक्ति को कानून के साँचे में ढालने वाले विधिक को अनुवाद नहीं बल्कि भावानुवाद की सलाह देते हुए शाह ने कहा कि, ‘हर भाषा की अपनी मर्यादा होती है। इसलिए मसौदा जितना स्पष्ट होगा, कार्यान्वयन उतना ही सरल होगा।’

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सोमवार को नई दिल्ली में विधिक प्रारूपण (लेजिस्लेटिव ड्राफ्टिंग) पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन के दौरान जोर देते हुए कहा कि, ‘धारा 370 मूल संविधान के इंडेक्स में अस्थायी हिस्सा था, जिसका सीधा मतलब है कि यह एक अप्रासंगिक कानून था, जिसे निरस्त कर दिया गया।’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के दिशा-निर्देश पर 2015 से लेकर अब तक कई अप्रासंगिक कानूनों को निरस्त कर कानून के क्षेत्र में ढ़ेर सारी पहल की गई है।

विधिक मसौदा (लेजिस्लेटिव ड्राफ्टिंग) प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य संसद, राज्य विधानसभाओं, मंत्रालयों, वैधानिक निकायों व संबंधित अधिकारियों के बीच विधिक मसौदा के सिद्धांतों और प्रथाओं की स्पष्ट समझ पैदा करना है। कार्यक्रम का आयोजन संवैधानिक और संसदीय अध्ययन संस्थान द्वारा लोकतंत्र के लिए संसदीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (प्राइड) के सहयोग से किया जा रहा है।
कार्यक्रम के दौरान शाह ने कहा कि ‘भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकतांत्रिक और पारंपरिक व्यवस्था के साथ आधुनिक व्यवस्था को समाहित किए हुए लोकतंत्र की जननी भारत का संविधान भी अपने-आप में परिपूर्ण है। न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया – संविधान के चारों खंभे भी अपनी भूमिका का अच्छे से निर्वहन कर रहे हैं, लेकिन तेजी से बदल रही दुनिया में समय के अनुकूल और आवश्यकताओं के अनुसार कानून में संशोधन या बदलाव बेहद जरूरी है।

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