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बड़ी अदालत की मेहरबानियां

हमारे यहां कहते हैं कि-‘ ऊपर वाले के यहां देर है,अंधेर नहीं ‘। यही बात देश की ऊपर वाली अदालतों पर भी लागू होती है। वहां भी देर है लेकिन अंधेर नहीं, यानि वहां सभी को न्याय मिलता है और आदर्श न्याय मिलता है। अब हमारी अदालतें न्याय करते समय हमारी श्रुतियों,स्मृतियों और अन्य ग्रंथों के उद्धरण  भी देती हैं ,यानि वे भले ही अंग्रेजों के जमाने के तमाम कानूनों से बाबस्ता हों लेकिन उनकी दृष्टि में अभी भी भारतीय जीवन मूल्य बचे हुए हैं । अदालतों के फैसलों पर यदा-कदा उठने वाली उँगलियों से इस तरह के फैसले विराम लागते हैं ।
राजनीति की भटकती आत्मा और अपने जमाने के मशहूर क्रिकेटर रहे नवजोत सिंह सिद्धू को गैर इरादतन हत्या के एक मामले में देश की सबसे बड़ी अदालत ने 34  साल बाद सजा सुनाई , शीर्ष अदालत ने सिद्धू को धारा-323 (गंभीर चोट पहुंचाने) का ही दोषी माना और इस अपराध के तहत दी जाने वाली अधिकतम एक वर्ष कैद की सजा सुनाई है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को महज 1000 रुपये के जुर्माने के साथ छोड़ दिया था। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि 2018 के फैसले में एक त्रुटि है, जिसे सुधारने की आवश्यकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह एक महत्वपूर्ण पहलू पर गौर करने से चूक गया था कि सिद्धू एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर थे, जिनकी अच्छी कद- काठी थी।
बात 27 दिसंबर 1988 की शाम सिद्धू अपने दोस्त रूपिंदर सिंह संधू के साथ पटियाला के शेरावाले गेट की मार्केट में पहुंचे। ये जगह उनके घर से 1.5 किलोमीटर दूर है  इसी मार्केट में कार पार्किंग को लेकर उनकी 65 साल के बुजुर्ग गुरनाम सिंह से कहासुनी हो गई। बात हाथापाई तक जा पहुंची। सिद्धू ने गुरनाम सिंह को घुटना मारकर गिरा दिया। उसके बाद गुरनाम सिंह को अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई। रिपोर्ट में आया कि गुरनाम सिंह की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी।
अदालत ने सिद्धू को सजा सुनाते हुए संस्कृत के श्लोक –
यथावयो यथाकालं यथाप्राणं च ब्राह्मणे।
प्रायश्चितं प्रदातव्यं ब्राह्मणैर्धर्धपाठकैऱ्।।
येन शुद्धिमवाप्रोति न च प्राणैर्विज्युते।
आर्ति वा महती याति न चचैतद् व्रतमहादिशे।।
का हवाला दिया। इससे पहले गुजरात के सूरत में हत्या के ही एक मामले में स्थानीय अदालत ने मनु स्मृति के एक श्लोक का हवाला दिया था। जाहिर है कि भारतीय न्याय प्रणाली में पहले से कुछ ऐसे सिद्धांत मौजूद हैं जो कालातीत नहीं हुए हैं। उनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। न्याय प्रणाली का स्थानीय मूल्यों से समृद्ध होना बहुत जरूरी है।
अब बात करते हैं समाजवादी पार्टी आज़म खान की। खान को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी है। खान पिछले  2 साल से जेल में बंद हैं और राज्य  सरकार ने उन्हें नेस्तनाबूद करने के लिए ऐसा कुचक्र रचा कि वे जेल से बहार ही नहीं आ सके। इस बीच यूपी में विधनसभा के चुनाव भी निबट गए। बहरहाल अब आज़म के बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है।  सुप्रीम कोर्ट ने कहा आज़म खान अपने खिलाफ लंबित मामले में निचली अदालत में 2 हफ्ते में नियमित ज़मानत अर्ज़ी दाखिल करें।  नियमित ज़मानत मिलने तक अंतरिम ज़मानत जारी रहेगी।  यूपी सरकार आज भी मानती है कि आज़म खान आदतन अपराधी और भू-माफिया है सरकार ने यही बात सबसे बड़ी अदलात के सामने जमानत का विरोध करते हुए कही थी।
आजमखान क्या हैं, क्या नहीं , ये कहने की जरूरत नहीं है। जेल में रहते हुए यूपी के रामपुर से विधायक चुने गए आजम खान फरवरी, 2020 से जेल में बंद है।  उनके ऊपर लगभग 90 आपराधिक केस है. यह केस यूपी पुलिस के अलावा केंद्रीय एजेंसियों ने भी दर्ज किए हैं। उनकी याचिका में बताया गया था कि 86 मामलों में उन्हें जमानत मिल गई है। लेकिन हाई कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर से एक मामले में जमानत पर आदेश सुरक्षित रखा हुआ है। कई बार आवेदन देने के बावजूद आदेश नहीं दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 5 महीने से जमानत पर आदेश न आने को न्यायिक प्रक्रिया का मज़ाक बताया था। आखिरकार, 10 मई को हाई कोर्ट ने ज़मानत के लिए बचे आखिरी मामले में भी आज़म को अर्ज़ी स्वीकार कर ली।
आजमखान का मामला अदलाती प्रक्रिया पर एक प्रश्नचिन्ह था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर लोगों का अदालतों के प्रति भरोसा बढ़ेगा। ‘शत्रु संपत्ति’ पर अवैध कब्जे के मामले में जमानत के बाद भी आजमखान को राहत नहीं मिली क्योंकि आज़म की रिहाई से पहले ही एक नए मामले का वारंट सीतापुर जेल पहुंच गया। यह मामला फ़र्ज़ी दस्तावेजों के ज़रिए 3 स्कूलों को मान्यता दिलवाने से जुड़ा है। इसके चलते अब इस मामले में भी ज़मानत लेना आज़म के लिए ज़रूरी हो गया है। 11 मई को हुई सुनवाई में इसकी जानकारी मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की मंशा पर सवाल उठाया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव और बी आर गवई की बेंच ने कहा था, “किसी पर 1-2 मुकदमे दर्ज हों, तो इसे समझा जा सकता है। लेकिन यहां एक के बाद एक 89 केस दर्ज किए गए हैं। इसके चलते वह व्यक्ति 2 साल से जेल में है”।
बहरहाल सिद्धू जेल जा रहे हैं और आजमखान जेल से बाहर आ रहे हैं । इस आवाजाही से देश की सियासत पर बहुत असर पड़ने वाला नहीं है किन्तु कुछ न कुछ तो होगा। आजमखान के जेल से बाहर आने पर यूपी की सरकार का सर दर्द बढ़ सकता है। यूपी सरकार आजम खान का मुकाबला सीएसी तौर से करने में नाकाम रही। आजम जेल से चुनाव जीते जो उनकी जमीनी लोकप्रियता का सबूत है। वे बाहर आये हैं तो तय है कि वक्त मिलते ही अपनी जुबान भी खोलेंगे, और जब वे बोलेंगे तो तूफ़ान खड़ा होगा।
इसी तरह जब सिद्धू जेल जायेंगे तो एक साल तक कोई ठोको ताली कहकर ठहाका लगाने वाला हमारे पास नहीं होगा। सिद्धू के प्रारब्ध में जेल जाना लिखा था, काश वे किसी जन आंदोलन में जेल जाते तो जनता में उनके प्रति विश्वास बढ़ता, लेकिन वे जेल एक आपराधिक मामले में जा रहे हैं, इसलिए उन्हें सहानुभूति नहीं मिल सकती। मिलना भी नहीं चाहिए। अपराधियों के प्रति सहानुभूति का भी एक समय होता है। देश की बड़ी अदालतें यदि इसी तरह जल्दी-जल्दी बड़े लोगों के खिलाफ लंबित मामलों का निबटारा करने में जुट जाएँ तो समाज का इस पर बहुत ज्यादा असर पडेगा ।  @ राकेश अचल

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