ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे का काम पूरा हो चुका है. आज इस मामले को लेकर वाराणसी की जिला अदालत (Varanasi High Court) में अहम सुनवाई होने वाली है. मस्जिद से जुडे़ रहस्य को सुलझाने को लेकर तरह-तरह के दावे किए जा रहे हैं. लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) की पहली को लेकर सभी पक्षों के अपने-अपने दावे हैं. लेकिन ज्ञानवापी की पहले सुलझने की बजाय और भी उलझती दिखाई दे रही है.
ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग से लेकर स्वास्तिक के निशान मिलने तक चर्चा का विषय बने हुए हैं. ज्ञानवापी को लेकर छिपी पांच पहेलियों को लेकर अलग-अलग पक्षों के द्वारा कई दावें किए जा रहे हैं. हर कोई ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर मचे बवाल के बाद इससे जुड़े रहस्यों के बारे में जानने के लिए उत्सुक है. आइए आपको बताते हैं कि ज्ञानवापी को लेकर पांच अलग-अलग नजरियों के बारे में.
1. हिंदू पक्ष का नजरिया
ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के बाद वजूखाना वाले तालाब के पास मिली उस आकृति को लेकर है जिसे हिंदू पक्ष शिवलिंग होने का दावा कर रहा है. लेकिन वहीं मुस्लिम पक्ष के मुताबिक ये एक फव्वारा है. शिवलिंग को लेकर हिंदू पक्ष का कहना है कि तालाब वाली जगह से पानी निकालने के बाद वहां पर एक शिवलिंग के आकार वाली आकृति दिखाई दी. हिंदू पक्ष दावा कर रहा है कि प्रशासनिक अधिकारियों ने जब इसकी सफाई को तो उन्हें वहां पर काले रंग का शिवलिंग सा प्रतीत हुआ है. वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि पूरे यूपी में ऐसी कई मस्जिदें हैं जहां पर इस तरह के तालाब मौजूद हैं. ज्ञानवापी मस्जिद में भी एक ऐसा ही फव्वारा था.
हिंदू पक्ष का दावा है कि 1669 में औरंगजैब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर वहां पर मस्जिद बनवाई थी. जो मस्जिद वहां पर है वो बाद में मंदिर को तोड़कर बनवाई गई. वहीं मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद में हमेशा से ही फव्वारा था, जिसने बाद में काम करना बंद कर दिया.
जब इस बात की पड़ताल की के लिए राजस्थान में सालों से शिवलिंग बनाने वाले कारीगरों से इसकी पड़ताल की, क्या शिवलिंग को तोड़कर फव्वारा बनाया जा सकता है. इसके लिए कारीगरों को उस पत्थर की तस्वीर भी दिखाई गई जिसका शिवलिंग होने का दावा किया जा रहा है. इस पर कारीगरों का कहना था कि, वो इस बात से पूरी तरह से संतुष्ट हैं कि जो तस्वीर उन्हें दिखाई गई है वो शत प्रतिशत एक शिवलिंग है. अपने दावे को पुख्ता करने के पीछे उन्हें दलील दी की तस्वीर में दिखाई दे रहे आकृति के ऊपरी भाग बिल्कुल शिवलिंग के आकार से मिलता-जुलता है. कारीगर के अनुसार शिवलिंग के ऊपर एक पत्थर रख दिया गया है. जिससे कि वो फव्वारा के रूप में दिखाई दे.
आपको बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने वाले कोर्ट कमिश्नर विशाल सिंह ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि, तालाब में पानी कम करने पर काली गोलाकर पत्थरनुमा आकृति जिसकी ऊंचाई लगभग 2.5 फीट रही होगी दिखाई दी. जिसके ऊपर कटा हुआ सफेद पत्थर दिखाई दिया. जिसके बिल्कुल बीच में एक छेद पाया गया. जिसमें सींक डालने पर वो 63 सेमी गहरा पाया गया. इसके अलावा कहीं कोई छेद नहीं मिला. फव्वारे के लिए पाइप घुसाने के लिए कोई जगह भी नहीं मिली.
2. मुस्लिम पक्ष का नजरिया
हिंदू पक्ष मंदिर के दावों को लेकर नंदी को सबसे बड़े गवाह के तौर पर पेश करता रहा है. नंदी का मुंह ज्ञानवापी मस्जिद की तरफ है. हिंदू पक्ष का मानना है कि नंदी का मुंह हमेशा शिवलिंग की तरफ ही होता है. इसलिए तालाब वाली जगह पर शिवलिंग होने का दावा किया जा रहा है. लेकिन इस मसले पर मुस्लिम पक्ष बिल्कुल अलग राय रखता है. मुस्लिम पक्ष की दलील है कि अंग्रेजों ने भारत के मुसलमानों और हिंदुओं के बीच फूट डालने के उद्देश्य से नंदी का मुंह मस्जिद की तरफ किया था.
3. गवाहों का नजरिया
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद में गवाहों का पक्ष सबसे अहम है. मस्जित परिसर के बाहरी हिस्से में सर्वे करने वाले पूर्व कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा ने दावा किया कि, तीन से चार आकृतियां दिखाई दे रही थी जो देखनें में मूर्तियों जैसी लग रही थी. पूर्व कोर्ट कमिश्नर के मुताबिक इन आकृतियों पर सिंदूर पौता हुआ था. वहीं मस्जिद के बाहरी हिस्से में शेषनाग की आकृति दिखाई देने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें चीन-चार मुंह वाली आकृति दिखाई जो देखने में शेषनाग से प्रतीत हो रही थी.
वहीं मस्जिद परिसर में सर्वे करने वाले टीम के साथ वीडियोग्राफी करने वाले विभाष दुबे ने दावा किया कि, वहां जो भी शिलापट्ट दिखा वहां कोई ना कोई नक्काशी नजर आई. उन्होंने दावा किया कि शिलापट्ट के नीचे झांककर देखने में वहां भी नक्काशी दिखाई दी. उन्होंने बैरिकेटिंग के उस तरफ दीवार पर स्वास्तिक का चिह्न बने होने का दावा किया. उन्होंने दावा किया कि वहां मौजूद दीवार पर फूल और घंटी की चेन की आकृति भी दिखाई दी. जिसे देखकर समझ में आ रहा था कि ये सभी हिंदू धर्म से संबंधित हैं.
वहीं इस मामले में याचिकाकर्ता लक्ष्मीदेवी के पति सोहनलाल ने दावा किया कि मस्जिद के भीतर जहां नमाज पढ़ी जाती है वहां पर कमल के फूल, सूर्य आदि का आकृति बनी हुई है. उन्होंने दावा किया कि मस्जिद में मौजूद तहखाने में हिंदी में श्लोक लिखे हुए हैं. इसके अलावा वहां पर दिया रखने के लिए पटल भी बने हुए हैं.
4. इतिहासकारों का नजरियां
हिंदू पक्ष के मंदिर को तोड़कर वहां पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किए जाने के दावों पर देश के प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि ये तो सत्य है कि औरंगजेब ने वहां मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई. लेकिन वहां पर भगवान शिव का ही मंदिर था इस बारे में कुछ स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता. वहीं इम मुद्दे पर वाराणसी की काशी हिंदू विश्वविद्यालय की इतिहास विभाग की प्रोफेसर अनुराधा सिंह का कहना है कि 1669 में औरंगजेब ने विश्ववेश्वर मंदिर को ध्वस्त करने का दावा किया था. उनके अनुसार जो मंदिर काशी में अभी मौजूद है वो अविमुक्तेश्वर मंदिर नहीं है. प्राचीन मंदिर तो वही है जिसे तोड़कर वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई है.
5. किताबों में छपा इतिहास
ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) को लेकर किताबों में दर्ज इतिहास (History) की पड़ताल करने पर कई अहम पहलू सामने आए. 1707 में औरंगजेब (Aurangzeb) की मृत्यु के ठीक तीन साल बाद यानी 1710 में उनके जमाने के इतिहासकार मुहम्मद साफी मुस्तइद्दखां ने ‘मासिर-ए-आलमगीरी’ नामक पुस्तक को लिखा. किताब के अनुसार, औरंगजेब द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के कुछ समय बाद ही वहां मस्जिद का निर्माण किया गया था.
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