नई दिल्ली: 29-30 अगस्त की रात भारतीय सेना ने चीनी सेना के चुशुल-सेक्टर से सटी एलएसी पर मंसूबों पर पानी फेर दिया. दरअसल, चीनी सेना पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिण में स्थित दो महत्वपूर्ण पहाड़ियों हैलमेट और ब्लैक टॉप पर गुपचुप कब्जा करने की फिराक में थी. माना जा रहा है कि चीन के 200-300 सैनिकों की मूवमेंट इन पहाड़ियों के इर्द-गिर्द देखी गई थी. ये सैनिक हथियारों के साथ साथ टेंट इत्यादि लेकर इन पहाड़ियों पर कब्जा करने पहुंच रहे थे. लेकिन पहले से ही चौकान्ना भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों से पहले पहुंच कर वहां अपना अधिकार जमा लिया, जिससे चीनी सैनिकों को वहां से भाग खड़ा होना पड़ा.
चीनी सेना ने अगर इन दोनों पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया होता तो पैंगोंग-त्सो लेक से लेकर चुशुल ब्रिगेड हेडक्वार्टर तक चीनी सेना की सर्विलांस की जद में आ सकता था. भारतीय सेना का चुशुल में एक हैलीपैड भी है. इसके अलावा पैंगोंग-त्सो लेक के हनान-कोस्ट से लेकर चुशुल तक की सड़क पर भी चीनी सेना अपनी नजर रख सकते थे. पैंगोंग से चुशुल तक की दूरी करीब 18 किलोमीटर है.
इसीलिए भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों की इन मंसूबों पर पानी फेर दिया. कहा तो ये भी जा रहा है कि चीनी सेना यहां अपनी पोस्ट बनाने की फिराक में थी और इस दौरान दोनों देशों के सैनिकों में झड़प भी हुई थी. चीनी सेना ने निगरानी के लिए यहां पर कुछ कैमरे और दूसरे सर्विलांस उपकरण लगाए हुए थे. लेकिन भारतीय सेना ने आधिकारिक तौर से किसी भी तरह की झड़प, लड़ाई झगड़े और धक्का-मुक्की से साफ इंकार किया है.
लेकिन इसी रात को भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को ब्लैक-टॉप और हैलमेट पहाड़ियों से ही नहीं खदेड़ा बल्कि पैंगोंग-त्सो लेक से सटे हनान-कोस्ट पर भी अपना अधिकारी जमा लिया. ताकि चीनी सेना पैंगोंग-त्सो लेक के उत्तर स्थित फिंगर एरिया नंबर 8-4 तक अपना कब्जा ना कर ले. अगर चीनी सेना दक्षिण छोर पर भी ऐसा कर लेती तो भारत के थाकूंग इलाका तक खतरा हो सकता था. थाकूंग इस इलाके में भारत का आखिरी गांव है और यहां तक पैंगोंग-त्सो लेक घूमने आने वाले टूरिस्ट भी मई महीने के पहले तक आ सकते थे. हनान-कोस्ट तक भारतीय सैनिक पहले पैट्रोलिंग करने के लिए ही आते थे और इसे पैट्रोलिंग-पॉइंट नंबर 27 का नाम दिया गया था. चीनी सेना इसे हनान कोस्ट के नाम से जानती है.
इसका अलावा भारतीय सैनिकों ने पैंगोंग के दक्षिण में ही रेजांगला के करीब ही रेचिन-पास (दर्रे) पर भी अपना अधिकार जमा लिया है. चीन इस रेचिन-दर्रे को रेकिन के नाम से बुलाता है. ये भारत का पैट्रोलिंग पॉइंट यानि पीपी नंबर 31 है. यहां पर भारतीय सेना ने एलएसी से चार किलोमीटर अंदर जाकर इस इलाके पर अपना अधिकार-क्षेत्र में कर लिया है. पीपी27 से पीपी 31 तक की दूरी करीब 40 किलोमीटर है.
ये पीपी नंबर चायना स्टडी ग्रुप ने एलएसी पर भारतीय सेना के लिए पैट्रोलिंग करने के लिए आखिरी छोर बना रखे थे.यहां सिर्फ पैट्रोलिंग होती थी. लेकिन 29-30 अगस्त की रात को चीनी सेना की मूवमेंट को देखते हुए भारतीय सेना ने इस पूरी 40 किलोमीटर लंबी एलएसी को डोमिनेट करना शुरू कर दिया है. अब हालात ये हैं कि चीनी सेना का तिब्बत इलाके में हाईव, मोल्डो स्थित सैन्य कैंप और स्पंगूर-गैर और झील तक भारतीय सेना की जद में आ चुका है. मोल्डो में चीन का एक हैलीपैड भी है. यही वजह है कि चीन भारतीय सेना की प्रीम्पटिव-कारवाई से बौखलाया हुआ है.
रेचिन दर्रे (चीनी/तिब्बत नाम रेकिन) ठीक उसी रेजांगला के बेहद करीब है जहां ’62 की जंग लड़ी गई थी. यहां कुमाऊं रेजीमेंट के मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सैनिकों ने चीनी सेना के दांत खट्टे किए थे. भारतीय सैनिकों की जब गोलियां खत्म हो गई थी तो उन्होनें चीनी सैनिकों के बाल पकड़ पकड़कर पहाड़ों में मार मार कर जान ले ली थी. उन अहीर सैनिकों की याद में ही रेजांगला वॉर मेमोरियल है. इसी लड़ाई पर गीतकार प्रदीप ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों…’ गीत लिखा था जिसे लता मंगेशकर ने गाया था.