रायपुर में ग्लोबल क्वीन ट्राइबल अवार्ड कार्यक्रम आयोजित हुआ। देशभर से आई आदिवासी युवतियों ने इस दौरान रैंप वॉक किया। अलग-अलग राज्यों से आई लड़कियों ने अपने राज्यों की सस्कृति की झलक पेश की। युवतियों ने पारंपरिक आदिवासी कपड़ो का मंच पर जलवा बिखेरा।
बालों में मोर और मुर्गे के पंख, हाथों में तीर गोदना, गले में सिक्कों की माला, हाथों में पापंरिक कड़ा एंठी पहने हुए बालोद पार्वती कोर्राम नजर आईं। गोंड आदिवासी समुदाय के ताल्लुक रखने वाली इस आदिवासी युवती ने बताया कि हमारे पूर्वज शिकारी रहे, हमारे सुदाय में तीरंदाज गोदना की परंपरा है। हम शरीर पर तीर के गोदना (टैटू) गर्व से बनाते हैं। यही हमारी पहचान है।
आदिवासी अपने कल्चर को दुनिया के सामने दिखा सकें
कार्यक्रम के आयोजक डॉ. चिदत्तमिका खटुआ और दिलीप मोहंती ने बताया कि कार्यक्रम का उद्देश्य आदिवासी समाज की बेटियों में आत्मविश्वास विश्वास पैदा करना और उन्हें आगे बढ़ने के अवसर देना है। हमारी कोशिश है कि आदिवासी अपने कल्चर को दुनिया के सामने दिखा सकें।
झारखंड से आयी पूजा लकड़ा को इस मुकाबले में जीत मिली
इस अवार्ड समारोह के फाइनल मुकाबले में देश के कई जगहों से आदिवासी गेटअप में आयी युवतियों के बीच कई राउंड हुए। जिसके बाद फाइनल विजेता चुना गया। हरियाणा से आयी सुमन हरियाणवी ट्रेडीशन के साथ मंच में उतरी। सुमन ने समाज में लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ संदेश दिया। झारखंड से आयी पूजा लकड़ा को इस मुकाबले में जीत मिली। 51 हजार का कैश प्राइज भी मिला। अब पूजा अगले राउंड के लिए दिल्ली जाएंगी। जहाँ 162 देशों के बीच इंटरनेशनल लेवल का आयोजन होना है।
ये हमारे यायाबाबा की परंपराएं
प्रदेश के सरगुजा, बस्तर, राजनांदगांव जैसे आदिवासी इलाकों आई युवतियों ने बताया कि कपड़े, गोदना और कुदरती चीजें जैसे लकड़ी, कौड़ी वगैरह से बने आभूषणों का श्रृंगार ही आदिवासी करते हैं। इन चीजों का महत्व आदिवासियों में किसी गोल्ड या डायमंड ज्वेलरी जितना ही है। ये हमारे यायाबाबा की परंपरा है। यायाबाबा छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपने माता-पिता, परिजनों को कहते हैं।
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