पता नहीं क्यों मुझे भगवत कथा बहुत अच्छी लगती है फिर चाहे वो श्रीमद भागवत हो या फिर मोहन भागवत की भागवत. श्रीमद भागवत वेदव्यास की कृति है और हिन्दुओं के 18 पुराणों में से एक, उसी प्रकार सर संघ चालक मोहन भागवत की भागवत भी कलियुग में हिन्दुओं का एक पुराण है जिसे तरह-तरह से पढ़ा और गाया जाता है. मोहन जी की भागवत भी उतनी ही सरस् होती है जितनी कि वेदव्यास की भागवत. उसमें भी भक्ति रस है और इसमें भी .रस दोनों का केंद्रीय भाव है.
मोहन जी की भागवत में आजकल गड़े मुर्दों का प्रसंग चल रहा है. गड़े मुर्दे यानि आजादी के 75 साल पहले हुए भारत विभाजन की कहानियां. भारत विभाजन भारत का अतीत है. भारत के वर्तमान से उसका कोई रिश्ता हो सकता है ये मोहन जी की भागवत का मूल सन्देश है. मोहन जी अपनी भागवत में कहते हैं कि विभाजन की वेदना कभी न मिटने वाली वेदना है. इसका उपचार विभाजन को समाप्त कर ही किया जा सकता है.
मोहन जी अपनी भागवत में कहते हैं और बहुत ठीक कहते हैं कि – ‘पूर्व में हुईं गलतियों से दुखी होने की नहीं अपितु सबक लेने की आवश्यकता है। गलतियों को छिपाने से उनसे मुक्ति नहीं मिलेगी। ‘विभाजन का उपाय, उपाय नहीं था। विभाजन से न तो भारत सुखी है और न वे सुखी हैं जिन्होंने इस्लाम के नाम पर विभाजन किया।’ मोहन जी की बात का अर्थ केंद्र की सरकार समझना ही नहीं चाहती. आजकल देश में जिस तरह से राज्य ,राज्यों से लड़ रहे हैं, सरकारें सरकारों से लड़ रहीं हैं उससे विभाजन का खतरा होता ही है. सरकार ने मोहन जी की भागवत के निहितार्थ समझे बिना जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर दिया और अब हाथ पर हाथ धरे बैठी है. ‘भई गति सांप-छछूंदर केरी’. न उगल पा रहे हैं और न निगल पा रहे हैं इस नए विभाजन को. जम्मो-कश्मीर का विभाजन नहीं होना चाहिए था.
मोहन जी अपनी भागवत में कहते हैं कि- कि हमारा संविधान और हमारी परम्परा के अनुसार राज्य किसी पूजा- पद्यति का नहीं होता, राज्य धर्म का होता है और वह धर्म पूजा से सम्बन्ध काम रखता है, वह धर्म सबको जोड़ने और सबकी उन्नति के लिए आवश्यक कार्य पर बल देता है डॉ भागवत ने देश की स्वतन्त्रता को लेकर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की दूरदर्शिता के विषय में बताते हुए कहा कि वर्ष 1930 में डॉ. हेडगेवार ने सावधान करते हुए हिन्दू समाज को संगठित होने को कहा था। लेकिन देश ने डॉ हेडगेवार कि नहीं महात्मा गांधी की सुनी.
डॉ मोहन भागवत की भागवत कहती है कि – ”भीष्मपितामह ने कहा था कि विभाजन कोई समाधान नहीं है, जबकि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि रणछोड़ कर मत भागो। परन्तु हमारे नेता मैदान छोड़कर भाग गए। मुट्ठी भर लोगों को सन्तुष्ट करने के लिए हमने कई समझौते किए। राष्ट्रगान से कुछ पंक्तियां हटाईं, राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में परिवर्तन किया, परन्तु वे मुट्ठीभर लोग फिर भी सन्तुष्ट नहीं हैं. डॉ भागवत ने प्रश्न उठाया कि यदि हमारे नेताओं ने पाकिस्तान की मांग ठुकरा दी होती तो क्या होता ? वह बोले – ‘कुछ नहीं होता, परन्तु तब के नेताओं को स्वयं पर विश्वास नहीं था। वे झुकते ही गए।’
डॉ मोहन भागवत की भागवत सुनकर लगता है कि उन्हें झुकना किसी का पसंद नहीं फिर चाहे वे महात्मा गांधी हों या श्रीमान नरेंद्र मोदी. मोदी जी भी हाल ही में किसानों के सामने झुके. उन्होंने किसानों से माफी मांगी और तीनों विवादित कृषि क़ानून वापस लेने की घोषणा की. लेकिन मोदी जी के लिए झुकना जितना आसान था उतना महात्मा गांधी के लिए नहीं था. तत्कालीन परिस्थितियों में डॉ मोहन भागवत नहीं थे लेकिन डॉ हेडगेवार तो थे लेकिन वे भी विभाजन को नहीं रोक पाए. विभाजन को कौन रोक पाटा है. डॉ मोहन जी भी जम्मू-कश्मीर के विभाजन को नहीं रोक पाए. उनका विभाजन पीड़ादायक था तो इनका विभाजन सुखद कैसे हो सकता है ?
मोहन जी की भागवत भक्त मंडली को स्वप्नलोक में ले जाती है. भक्त मंडल पूरे सात साल से इसी स्वप्नलोक की सैर कर रहा है .मोहन जी की भागवत का ध्येय ही भक्तों को 2024 तक स्वप्न लोक में विचरण कराने का है. मै असहमति के बावजूद मोहन जी की भागवत हमेशा रस लेकर सुनता हूँ. वे हमारे शहर में आ रहे हैं.मै उनके श्रीमुख से उनकी भागवत सुनने जरूर जाऊंगा. उनकी भागवत उनके पूर्ववर्ती देवरस जी की तरह रूखी नहीं है. डॉ मोहन जी की भागवत में व्यंग्य, विनोद सब सुनने को मिलता है. वे संघ के सफल भागवत वाचक हैं. उनका कार्यकाल हमेशा याद किया जाएगा. संघ को बड़े पुण्यकर्मों से मोहन जी जैसा भगवत्तवेत्ता मिला है, जिसके पास कहने और सुनाने को अपनी भागवत है. अगर आपको देशकाल, परिस्थितियों को समझना और आनद लेना हो तो आप डॉ मोहन जी की भागवत अवश्य सुनिए.
मेरे ख्याल से डॉ मोहन भागवत संघ के महर्षि सूत जी हैं, उन्होंने भागवत कथा संघ के दूसरे ऋषि शुकदेवों से सुनी होगी. डॉ मोहन जी की भागवत जो एक बार सुन कर उस रसामृत के पान से तृप्त हो गया है, उसे किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती। (अर्थात उसे किसी अन्य वस्तु में आनन्द नहीं आ सकता)। डॉ मोहन भागवत में असंख्य श्लोक, अध्याय और स्कंध हैं जिनका उद्घाटन समय -समय पर होता रहता है. हम जैसे अनपढ़ लोग इसे गड़े मुर्दे उखाड़ना कहते हैं, जबकि ये सब होती भागवत ही है, भले ही ये संघ की भागवत होती है. कांग्रेसी और वामपंथी ही नहीं समाजवादी भी इस भागवत कथा के निहितार्थ नहीं समझ पाते, लेकिन जो समझ लेते हिन् वे फौरन भाजपा में शामिल हो जाते हैं भले ही फिर वे ज्योतिरादित्य हों या अदिति सिंह.
@ राकेश अचल
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