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भगवान उनका है जो प्रेम करना जानते हैं : नारायण महाराज

गरियाबंद। चरण से प्रेम तो कोई भी कर सकता है ,पर वचन से प्रेम कोई कोई करता है कथा के तीसरे दिन ये उदगार थे श्री हरि सत्संग मण्डल द्वारा आयोजित गरियाबंद में चल रहे श्री भूतेश्वरनाथ शिव महापुराण के कथावाचक श्री नारायण जी महाराज के थे।

गरियाबंद की पावन धरा पर विराजित स्वयं भू शिवलिंग श्री भूतेश्वर नाथ के इतिहास के बारे में उन्होंने बताया कि यह विश्व का विशालतम शिव लिंग की उतपत्ति हजारों करोडों वर्षों तक किसी देवी देवता या किसी बड़े ऋषि मुनि के तपस्या के फलस्वरूप हुआ है , उन्होंने देश भर में कथा लाइव देख रहे श्रोताओं को आग्रह किया कि जीवन मे एकबार बाबा भुतेश्वरनाथ के दर्शन के लिए जरूर आएं , गरियाबंद के गाँधी मैदान में हजारों की संख्या में बैठे शिव प्रेमी श्रोताओं को बताया कि पिता की आज्ञा में पुत्र बंधा हो वो पुत्र श्रेष्ठ है , पिता की आज्ञा में संतान बंधा हो वह संतान श्रेष्ठ है , गुरु की आज्ञा में जो शिष्य बंधा हो वह शिष्य श्रेष्ठ है , भगवान शिव के वचन है शिव पुराण में , शिव पुराण श्रवण करने मात्र से ही पाप नष्ट हो जाते हैं , सामने बैठकर कथा सुनने मात्र से करोड़ो पाप समाप्त हो जाते हैं , सन्त की वाणी का प्रभाव ऐसा होता है । क्योकि सन्त सिर्फ कहता नहीं है बल्कि कहने के साथ जीता भी है , और अपनी वाणी के साथ जीने वाला की वाणी का असर जीवन मे जरूर पड़ता है , गुरु की भक्ति और महादेव की अराधना ही उन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगा।


श्री हरि सत्संग मण्डल गरियाबंद के तत्वाधान में सप्तदिवसीय श्री भूतेश्वरनाथ शिव महापुराण कथा दिनाँक 9 दिसंबर से 17 तक अयोजित कथा श्री राधे निकुंज आश्रम से पधारे पूज्य श्री नारायण महाराज के सानिध्य में तीसरे दिवस की कथा में पूज्य महाराज जी ने कहा – मनुष्य जब तक कोई कर्म नहीं करेगा तब तक मनुष्य को कोई फल नहीं मिलेगा अगर मनुष्य की संतान में संस्कार हैं तो वो अपने माँ-बाप और अपनी आने वाली पीढ़ी का हित करेंगी। अगर अपने घर को स्वर्ग बनाना हैं तो अपने बच्चों को आद्यात्मिक ज्ञान देना चाहिए। जो इंसान अपने अपने बच्चों को शुरुआत से ही कथा का श्रवण कराते हैं वह बच्चे कभी भी बुरे पथ पर नहीं चलते हैं।
शिव महापुराण सुनने से दुखों की निवृत्ति और मनुष्य की मुक्ति हो जाती है। आज का व्यक्ति भोग और मुक्ति दोनों चाहता है। जब तक मनुष्य को भोग और मुक्ति प्राप्त न हो तब तक मनुष्य संतुष्ट नहीं होता। शिव महापुराण की कथा हर सांसारिक सुख प्रदान करती है। जहाँ महा शिवपुराण की कथा होती है वहाँ पर सब तीर्थ प्रकट हो जाते हैं जो मनुष्य भक्ति पूर्वक महाशिवपुराण एक श्लोक भी पढ़ लेता है वह उस समय पाप से मुक्त हो जाता है।

उत्कृष्ट और उत्तम भक्ति से ही भगवान के दर्शन होते है तभी भगवान प्रकट होते हैं। : व्रत धीरे धीरे व्यक्ति को कल्याण की ओर ले जाता है और जो व्यक्ति कभी व्रत या पूजा पाठ नहीं करता उसका कभी कल्याण नहीं हो सकता।

वह माँ बाप धन्य है जिनकी संतान बचपन से ही भगवान की भक्ति में लगी होती हैं क्यूंकि उनको पता है कि उनकी मृत्यु के बाद उनके पितृ को पूछने वाली उनकी संतान है।

महाराज श्री ने बताया की पूर्व काल में जो तन की तपस्या कही गई है उसके द्वारा भागवत प्राप्ति मानी गई है। और कलयुग का व्यक्ति अब तन की तपस्या करने के लिए तैयार नहीं है। परन्तु ऐसा सूक्ष्म साधन जिस सूक्ष्म सरल साधन के माध्यम से जीव को सहजता के साथ ही भक्ति भी प्राप्त हो, भगवत दर्शन भी प्राप्त हो और मुक्ति भी प्राप्त हो। मनुष्य जीवन में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका पार्थिव शिवलिंग सेवा में समाधान नहीं है।

समस्या हर किसी के जीवन में है चाहे वो छोटी हो या बड़ी। विघ्न हर किसी के जीवन में आते हैं। ऐसे में दो चीजें महत्वपूर्ण हैं, पहला उस विघ्न में हम डटे रहें और दूसरा कुछ ऐसा कार्य जिससे वो बुरा समय कम प्रभाव दिखा कर चला जाये। भगवान शिव की उपासना आपको हर विघ्न से बचाती है।

पूज्य महाराज जी ने भक्तों को “सुनाया सुंदर भजन रचा है सृष्टि को जिस प्रभू ने वही ये सृष्टि चला रहें हैं जब कोई मनुष्य कर्म करते हैं तो परमात्मा उसी के अनुसार मनुष्य को फल देते हैं। भगवान धरती पर इसलिए बार-बार जनम लेते हैं ताकि वह धरती पर धर्म की रक्षा कर सकें। भगवान के प्रत्येक अवतार का कारण है कि वह धरती पर धर्म, संतों, यज्ञों, गाय माता की रक्षा कर सकें ताकि सब ही अपना जीवन आनंद से गुज़ार सकें। जब संसार मनुष्य को त्याग देता है तो भगवान उस मनुष्य को अपनी शरण में ले लेते हैं।

क्या है शिवलिंग का शाब्दिक अर्थ
‘शिव’ का अर्थ है ‘परम कल्याणकारी’ और ‘लिंग’ का अर्थ होता है ‘सृजन’। वहीं संस्कृत में लिंग शब्द का प्रयोग चिन्ह या प्रतीक के लिए होता है। इस प्रकार शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक.

कैसे हुई शिवलिंग की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि बनने के बाद भगवान विष्णु और ब्रह्माजी में इस बात को लेकर युद्ध होता रहा कि कौन ज्यादा शक्तिशाली है। इस दौरान आकाश में एक चमकीला पत्थर दिखा और आकाशवाणी हुई कि जो भी इस पत्थर का अंत ढूंढ लेगा, वह ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा। भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी दोनों ही उस पत्थर का अंत ढूंढने में लग गए परंतु दोनों को ही अंत नहीं मिला।थककर भगवान विष्णु ने स्वयं हार मान ली। लेकिन ब्रह्मा जी ने सोचा कि अगर मैं भी हार मान लूं तो विष्णु ज्यादा शक्तिशाली कहलाएगा। इसलिए ब्रह्माजी ने झूठे में यह कह दिया कि उनको पत्थर का अंत मिल गया है। इसी बीच फिर से आकाशवाणी हुई कि मैं शिवलिंग हूं और मेरा ना कोई अंत है, ना ही शुरुआत और उसी समय भगवान शिव प्रकट हुए।

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