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सबको गीता के 4 श्लोक और रामायण के 4 दोहों का पठन नियमित रूप से करना चाहिए : नारायण महाराज

गरियाबंद।गरियाबंद के गाँधी मैदान में चल रहे श्री भुतेश्वरनाथ शिव महापुराण में आज पंचम दिवस पर श्री राधे निकुंज आश्रम के कथाकार पूज्य श्री नारायण जी महाराज ने बताया कि गंगा गीता और गौ माता ये तीन हमारे देश की धरोहर है। उन्होंने आज दक्षिणा में सबको गीता के 4 श्लोक और रामायण का चार दोहा नियमित पढ़ने के लिए प्रार्थना किया , उन्होंने कहा हमारे जीवन मे अगर सौ समस्याएं है तो हमारे शास्त्रों में हजार समाधान लिखे हुए हैं , पर आज हम लोग पढ़ते नही बल्कि लाल कपड़े में शास्त्रों को बांधकर केवल दीपक जलाकर इति श्री कर जाते हैं , आज हज़ारों के भीड़ में कथा में गणेश जन्म और गणेश विवाह के साथ बताया कि गणेश जी मे तुलसी क्यो नहीं चढ़ता , उन्हें गजानंद क्यों कहे जाते हैं..??

श्री हरि सत्संग मण्डल द्वारा आयोजित शिव महापुराण की कथा में आगे उन्होंने बताया कि भगवान शिव विवाह के बाद निरंतर समाधी में रहते थे , समाधी से कभी उठते ही नही थे निरन्तर भगवान के नाम लेते रहते थे तो माँ पार्वती के मन मे एक भाव ऊपजा कि मेरे प्रभु तो समाधी में लीन रहते हैं मेरे पास कोई नही रहता , तो माँ पार्वती स्नान करने के लिए जब अपने शरीर मे उबटन लगाई और हल्दी के उबटन जब अपने शरीर के एक जगह एकत्र किया और उससे एक मनुष्य की आकृति बन गया और उसमें माँ पार्वती ने प्राण फूँक दिया और वही माता पार्वती के पुत्र भगवान गणेश कहलाये.


कुछ दिन बाद भगवान शिव जी अपनी पत्नी पार्वती से मिलने आये और भवन के अंदर सीधे प्रवेश करने लगे तो द्वारपाल होने के नाते गणेश जी उन्हें रोक दिए क्योंकि भगवान गणेश जी उन्हें पहचानते नई थे कि यही उनके पिता जी है , मेरे घर मे ,मेरी पत्नी से मिलने रोकने वाला तू है कौन करके भगवान शिव क्रोधित होकर त्रिशूल उठाकर उस बालक गणेश के मस्तक काट दिए , और जैसे ही बालक के ऊपर त्रिशूल से प्रहार हुआ तो माँ माँ करके चिल्लाने लगा , अपने पुत्र के करुण क्रुन्दन पुकार सुनकर मां पार्वती दौड़े दौड़े आई तो देखा कि पतिदेव भगवान शिव खड़े हैं और बगल में पुत्र गणेश का सिर धड़ से अलग पड़ा हुआ है , अपने पुत्र की छत विछत शरीर को देखकर माता पार्वती विलाप करने लगी , ये क्या किया आपने स्वामी ये हमारे संतान थे हमारे प्राण थे , इस पर भगवान शिव की आंखे भी भर आईं और भगवान शिव अपनी पत्नी से कहते है कि आज मैं अपने बच्चे को मार दिया करके बहुत विलाप करने लगे ।
और भगवान शिव एक गज अर्थात हाथी के मस्तक को लाकर गणेश जी के पड़े धड़ पर रख देते हैं और उसमें प्राण भर देते हैं और उसी कारण गणेश का एक नाम गजानन्द पड़ा ,और प्रत्येक पूजन में गणेश जी के प्रथम पूजन का वरदान दिया , श्री नारायण जी महाराज ने बताया कि गणेश किसी देवी देवता का नाम नही है बल्कि गणेश एक पद है।

श्री हरि सत्संग मण्डल द्वारा आयोजित शिव महापुराण में आज पंचम दिवस पर कथाकार श्री नारायण जी महाराज ने बताया भगवान गणेश जी में तुलसी क्यो नही चढ़ता कारण कि भगवान गणेश जी इतने सुन्दर थे कि एक बार तुलसी मैय्या गणेश जी पर मोहित हो गए और जाकर शादी का प्रस्ताव रखा हम आपसे शादी करना चाहते हैं भगवान गणेश जी ने कहा हम ब्रम्हचारी है हम आपको कैसे स्वीकार कर सकते हैं पर भी तुलसी बार बार आती रही और अपमानित होती रही और भगवान गणेश को श्राप दे दिया कि एक समय ऐसा आएगा कि आज आप मुझे स्वीकार नही कर रहे हो न आपके एक नहीं दो दो पत्नियां होंगी तब भगवान गणेश जी ने भी श्राप दिया कि जा तुलसी तुझे मैं कभी भी स्वीकार नही करूँगा तब से भगवान गणेश जी मे तुलसी नही चढ़ता
। बल्कि तुलसी की मुंजरी चढ़ती है.

आयोजक समिति श्री हरि सत्संग मण्डल की सदस्यों ने बताया कि इस समय श्री भुतेश्वरनाथ और शिव महापुराण के आयोजन से हमारे गरियाबंद नगर सहित आस पास का माहौल पर भक्तिमय और शिवमय हो चुका है ।

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