नई दिल्ली : टाटा ग्रुप को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले रतन टाटा किसी पहचान की मोहताज नहीं है. रतन टाटा आज 83 साल के हो चुके हैं. टाटा संस के चेयरमैन रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ था. देश के सबसे अमीर लोगों की सूची में रतन टाटा का नाम भी लिया जाता है. उनकी जिंदगी काफी संघर्षों से भरी हुई है, जिससे हर कोई प्रेरणा ले सकता है. वहीं रतन टाटा आर्किटेक्ट बनना चाहते थे लेकिन जिंदगी में कई ऐसे मोड़ आए कि रतन टाटा एक कामयाब कारोबारी बन गए.
रतन टाटा ने 1962 में टाटा ग्रुप से अपने बिजनेस करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद उन्होंने अपनी कंपनी को लगातार ऊंचाइयों की सीढ़ी पर चढ़ाया और दुनिया के सफल कारोबारियों में शामिल हो गए. रतन टाटा 1991 में जेआरडी टाटा के बाद टाटा समूह के पांचवें अध्यक्ष बने. रतन टाटा ने टाटा टेलीसर्विसेज की शुरुआत की और भारत की पहली स्वदेशी विकसित कार इंडिका कार भी डिजाइन और लॉन्च की. इस समूह ने वीएसएनएल का अधिग्रहण किया, जो एक समय में भारत का शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार सेवा प्रदाता था.
अपने कार्यकाल के दौरान रतन टाटा 2004 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) लोगों के सामने लेकर आए. उन्होंने 2008 में दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो को भी डिजाइन और लॉन्च किया. उनके नेतृत्व में टाटा समूह को वैश्विक मंच पर पहचान मिली, जब उन्होंने एंग्लो-डच स्टीलमेकर कोरस और ब्रिटिश लक्जरी कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर और ब्रिटिश चाय कंपनी टेटली का अधिग्रहण किया.
वहीं रतन टाटा एक शानदार निवेशक के तौर पर भी जाने जाते हैं. उन्होंने कई स्टार्टअप्स में उनके शुरुआती दौर में ही निवेश किया है, जो कि अब लंबी रेस के घोड़े बन चुके हैं. रतन टाटा की ओर से ओला, पेटीएम, कारदेखो, क्योरफिट, स्नैपडील जैसे सफल स्टार्टअप में भी निवेश किया है. इसके अलावा अब्रा, क्लिमासेल, फर्स्टक्राई, अर्बन लैडर, लेन्सकार्ट और कई स्टार्टअप्स में निवेश किया है.
वहीं रतन टाटा ने कभी शादी नहीं की. इसके अलावा उनके माता-पिता का भी तलाक हो चुका था, जिसके कारण रतन टाटा अपनी दादी के पास रहते थे. रतन टाटा के मुताबिक अपने पिता के साथ उनकी कई बार अनबन हो जाती थी. रतन टाटा वायलिन सीखना चाहते थे लेकिन पिता उनको पियानो सीखाना चाहते थे. रतन टाटा अमेरिका जाना चाहते थे लेकिन पिता चाहते थे कि वो ब्रिटेन जाए. वहीं रतन टाटा आर्किटेक्ट बनना चाहते थे लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वो इंजीनियर बने.