लोग कहने लगे हैं कि छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उईके भी जगदीप धनखड़ की राह पर चलने लगी हैं। जगदीप धनखड़ जब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे, तब उनका मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से छत्तीस का आंकड़ा रहा। ममता बनर्जी राज्यपाल पर सीधे हमला करती रही और जगदीप धनखड़ भी सरकार के कामकाज पर अंगुलिया उठाते रहे। कहते हैं ममता से टकराव का लाभ जगदीप धनखड़ को मिला और वे देश के उपराष्ट्रपति बन गए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरक्षण विधेयक पर दस्तखत न करने को लेकर राज्यपाल अनुसुईया उईके पर सीधा हमला बोला है। कांग्रेस ने बिल पर हस्ताक्षर न करने के खिलाफ तीन जनवरी को आंदोलन कर राजभवन पर निशाना साधा। छत्तीसगढ़ के 22 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के निशाने पर आने से राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उईके का नंबर केंद्र सरकार में बढ़ गया है। इसका लाभ उन्हें देर-सबेर मिल सकता है। सुश्री अनुसुईया उईके 29 जुलाई 2019 से छत्तीसगढ़ की राज्यपाल हैं।
शक़्कर के ढेर पर अफसर
चर्चा है कि 1990 बैच के आईएफएस वी श्रीनिवासराव शक़्कर के ढेर पर बैठे हैं। कहते हैं उन्होंने मीठा खिला-खिलाकर अपनी फौज भी तैयार कर ली है। कहा जा रहा है वी श्रीनिवासराव अगस्त 2018 से कैम्पा के सीईओ हैं। कैम्पा में भारत सरकार से काफी धन आता है। फिलहाल वन विभाग के अधिकांश काम कैम्पा फंड से ही हो रहे हैं। श्रीनिवासराव को पिछली रमन सरकार ने कैम्पा का सीईओ बनाया था, भूपेश सरकार ने भी उन्हें चलने दिया। भूपेश बघेल की सरकार ने चार साल में अफसरों को ताश के पत्तों की तरह फेंटा, लेकिन श्रीनिवासराव ज्यों के त्यों रहे। राकेश चतुर्वेदी के रिटायरमेंट के बाद काफी जूनियर होते हुए भी श्रीनिवासराव प्रधान मुख्य वन संरक्षक की पद में दौड़ में रहे , हालांकि वरिष्ठता के आधार पर संजय शुक्ला को प्रधान मुख्य वन संरक्षक की कुर्सी मिली। संजय शुक्ला के बाद श्रीनिवासराव को प्रधान मुख्य वन संरक्षक का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। वन विभाग में श्रीनिवासराव से वरिष्ठ अफसर है, पर विभाग प्रमुख के पद पर वरिष्ठता को तवज्जो देना या न देना सरकार पर निर्भर करता है।
कांग्रेसी नेता के रिश्तेदार को लेकर चर्चा
चर्चा है कि कांग्रेस के एक कद्दावर नेता का रिश्तेदार जल्द ही भाजपा से रिश्ता जोड़ सकता है। कद्दावर नेता अपने इलाके में खासा प्रभाव रखते हैं। कद्दावर नेता को कांग्रेस संगठन और सत्ता से खफा बताया जा रहा है। माना जा रहा है कद्दावर नेता अपने रिश्तेदार के जरिए कांग्रेस पर नकेल डाल सकते हैं। कहा जा रहा है कि कद्दावर नेता के रिश्तेदार के सगे-संबंधी भाजपा से जुड़े हैं। वे भी नए समीकरण में कड़ी बन रहे हैं। कद्दावर नेता के रिश्तेदार को लेकर ख़बरों का बाजार गर्म है। कोई कह रहा है वे भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, तो कोई कह रहा है कि 2024 में लोकसभा के चुनाव में भाजपा के चेहरे होंगे। साफ़ है कि लोगों में कानाफूसी चल रही है, कुछ तो खिचड़ी पक ही रही होगी।
कांग्रेसी नेता को ईडी का समन
कहते हैं कांग्रेस के एक पावरफुल नेता को ईडी के अफसर पूछताछ के लिए तीन बार बुला चुके हैं। खनिज मामले में उलझे कांग्रेसी नेता के कुछ रिश्तेदारों को भी ईडी के अफसर पूछताछ के लिए बुला चुके हैं। कांग्रेसी नेता का दखल सत्ता और संगठन दोनों में बताया जाता है। कहा जा रहा है सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ईडी का रुख भी बदलेगा। चर्चा है कि कुछ अफसरों के साथ कुछ नेता भी ईडी के फेर में आ सकते हैं। एक आईएएस दंपति का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है। कहते हैं ईडी कोल स्केम के साथ अब खदान आबंटन में गड़बड़ी पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है। पिछले दिनों कई कारोबारियों के यहां पड़े आयकर के छापे को ईडी की कार्रवाई से जोड़कर देखा जा रहा है।
धर्मांतरण की आग जशपुर से नारायणपुर तक
छत्तीसगढ़ में कभी जशपुर धर्मानान्तरण का केंद्र रहा है। इस इलाके में कई लोगों ने हिन्दू धर्म त्यागकर ईसाई धर्म को अपनाया। इसके खिलाफ भाजपा के कद्दावर नेता रहे स्व. दिलीपसिंह जूदेव ने घर वापसी कार्यक्रम चलाया और ईसाई बन गए लोगों को हिन्दू बनाया। उपद्रव नहीं हुआ। सब कुछ शांतिपूर्ण चला, लेकिन नारायणपुर की घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया है। धर्मानान्तरण की घटनाएं सरगुजा और दूसरे इलाके में सुनने को मिलता है। बस्तर में धर्मानान्तरण का मुद्दा व्यापक स्तर पर पहली बार सामने आया है। 2021 में सुकमा के पुलिस अधीक्षक ने धर्मानान्तरण के बारे में अलर्ट किया था , पर बात आई-गई हो गई थी। बस्तर राज्य का ज्यादा नक्सल प्रभावित इलाका है और यहां के आदिवासियों की प्रकृति सरगुजा और जशपुर के आदिवासियों से भिन्न है। राज्य में हमेशा भाजपा के लिए धर्मानान्तरण एक बड़ा मुद्दा रहा है। भाजपा बस्तर में धर्मानान्तरण का आरोप काफी पहले से लगा रही है। अब नारायणपुर की घटना भाजपा के लिए हाट केक जैसा हो गया है, तो कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बन गई है । कहते हैं ईसाई समुदाय अल्पसंख्यक आयोग में अपना प्रतिनिधि न होने से खफा है, वहीं उनमें असुरक्षा की भावना बढ़ गई है। ईसाई वोटर परंपरागत रूप से कांग्रेस के माने जाते हैं। राज्य में करीब साढ़े 12 लाख ईसाई वोटर हैं।
भाजपा की नजर आदिवासी वोटरों पर
कहते हैं 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की नजर आदिवासी वोटरों पर टिकी है। आदिवासी इलाकों में पार्टी की स्थिति मजबूत करने के लिए पार्टी के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल लगातार दौरा कर रहे हैं। वे बस्तर भी जा चुके हैं और दो दिन पहले सरगुजा में थे। आकांक्षी जिला के बहाने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कोरबा लोकसभा क्षेत्र में आने वाले चारों जिलों के आदिवासियों को साधने का काम करेंगे। कोरबा लोकसभा भले सामान्य है, लेकिन आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। मरवाही, कोरिया और बैकुंठपुर जैसे जिलों के साथ कोरबा जिले में भी आदिवासियों की संख्या काफी है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा दो आदिवासी सीट ही जीत सकी थी। राज्य में 29 आदिवासी सीटें हैं।
कलेक्टरों के तबादले की चर्चा
चर्चा है कि जल्द ही कुछ जिलों के कलेक्टरों के तबादले हो सकते हैं। माना जा रहा है कि जिन कलेक्टरों को अलग-अलग जिलों में काफी समय हो गया, उनको बदला जा सकता है। इसके अलावा जिनके परफार्मेंस ठीक नहीं है या शिकायतें हैं, उनको इधर-उधर या हटाया जा सकता है।