सिरायकी (बहावलपुरी, मुलतानी, झांगी एवं सिंधी) समाज के पूजनीय देवता साईं झूले लाल जी, जिन्हें वरुण देवता का अवतार भी कहा जाता है, की 1073वीं जयंती इस वर्ष 23 मार्च को मनाई जाएगी। विक्रमी सम्वत् 1007 चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुक्रवार के दिन नसरपुर गांव के संत रतन राय जी के घर माता देवकी जी की कोख से एक बालक ने जन्म लिया। बालक के जन्म लगन निकाल कर उनका नाम उदयचंद रख दिया परंतु कुछ दिनों बाद उदयचंद ने अपना मुंह बंद कर लिया और दूध पीना छोड़ दिया।
माता देवकी ने बुजुर्गों के साथ बात की तो उन्होंने सलाह दी कि थोड़े से चावल, गुड़ और आटा सिंध दरिया में डालें तथा उस दरिया का पानी बालक के मुंह को लगाएं। माता ने जब बालक के मुंह में पानी डालने के लिए मुंह खोला तो अपने होश गंवा बैठीं। उदयचंद के मुंह में दरिया बह रहा था। दरिया में रहने वाले जीव-जंतु इधर-उधर चल फिर रहे थे। मां ने सारा नजारा विद्वानों को सुनाया तो उन्होंने कहा, ‘‘आपका पुत्र साक्षात वरुण (पानी) देवता का अवतार है। इस बालक को आज से ‘उडेरो लाल’ के नाम से पुकारा करें।’’
डेढ़ वर्ष की आयु में ‘उडेरो लाल’ का मुंडन संस्कार करवाया गया। 5 वर्ष की उम्र में पिता संत रतन राय ने पढ़ने के लिए पाठशाला में भेजना शुरू किया और आठवें वर्ष में ‘उडेरो लाल जी’ को गुरु गोरखनाथ जी से जनेऊ संस्कार करवा कर गुरु दीक्षा दिलाई गई।
रीति-रिवाजों के अनुसार दूसरे दिन अपनी कमाई का कुछ हिस्सा परिवार की कमाई में डालने के लिए ‘उडेरो लाल जी’ को मां ने कुंवल (चने) उबाल कर एक थाल में डाल कर बेचने के लिए बाजार में भेजा। उन्होंने माता देवकी द्वारा दिए सारे के सारे कुंवलों का थाल सिंध दरिया में बहा दिया और खाली थाल को झोली में रख कर किनारे बैठ गए। जब घर जाने की तैयारी करने लगे तो झोली में रखे खाली थाल को चांदी के सिक्कों से भरा हुआ पाया। मां चांदी भरे थाल को देख कर अति प्रसन्न हुईं।
माता दो-तीन दिन ऐसे ही कुंवल उबाल कर ‘उडेरो लाल’ को देतीं और वापसी पर चांदी भर थाल सहित बालक को घर पर देखतीं। एक दिन उनके पिता ने पीछा किया और शाम को जब दरिया में से भगवान वरुण जी को बाहर निकलते और थाल में चांदी के सिक्के डालते देखा, वह हक्के-बक्के रह गए। अपने पुत्र ‘उडेरो लाल’ को साक्षात भगवान वरुण देवता का अवतार देख कर नमस्कार करने लगे और जोर-जोर से आवाजें लगाने लगे ‘जय जय उडेरो लाल, जय-जय झूले लाल।’