म्यूचुअल फंड की सभी स्कीमों की दो किस्में होती हैं. रेगुलर प्लान और डायरेक्ट प्लान. रेगुलर प्लान के तहत म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर को मिलने वाला कमीशन या ब्रोकरेज शामिल होता है. वहीं, डायरेक्ट प्लान में ऐसी कोई लागत जुड़ी नहीं होती है. लिहाजा यह लाभ सीधे निवेशकों को मिल जाता है. म्यूचुअल फंड हाउस निवेशकों को सीधे डायरेक्ट प्लान की पेशकश करते हैं. स्कीम के डायरेक्ट प्लान के मामले में निवेशकों को खुद स्कीम का चुनाव करना पड़ता है.
आप ऑनलाइन और ऑफलाइन म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं. ऑफलाइन इनवेस्टमेंट में एप्लीकेशन फॉर्म भरने की जरूरत पड़ती है.अगर आप फंड हाउस की वेबसाइट या ट्रांजेक्शन पोर्टल के जरिये सीधे निवेश के लिए ऑनलाइन तरीका अपनाते हैं तो ‘डायरेक्ट प्लान’ ऑप्शन चुनना होगा. यह ब्रोकर कोड दर्ज करने की जरूरत को डिजेबल कर देगा. अगर आप एडवाइजर की सेवाएं ले रहे है तो एडवाइजर रजिस्ट्रेशन नंबर देने की जरूरत होगी. इंनवेस्टमेंट एप्लीकेशन फॉर्म में डिस्ट्रीब्यूटर या ब्रोकर कोड दिया होता है. फॉर्म भरते समय उस स्थान पर ‘डायरेक्ट’ लिखना जरूरी होता है. बाकी का फॉर्म रेगुलर प्लान जैसा होता है.
अगर निवेश को डायरेक्ट प्लान में ले जाना चाहते हैं तो आपको स्विच रिक्वेस्ट डालनी होगी. इस प्रक्रिया में रेगुलर प्लान से पैसा निकालकर डायरेक्ट प्लान में निवेश किया जाता है. इस तरह के रिडेम्पशन में एग्जिट लोड और कैपिटल गेन टैक्स, जो लागू हों, देने पड़ते हैं. कोई कमीशन शामिल न होने के कारण रेगुलर प्लान की अपेक्षा डायरेक्ट प्लान की एनएवी ज्यादा होती है. यही वजह है कि डायरेक्ट प्लान का एक्सपेंस रेशियो भी कम होता है.