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कही-सुनी (20 FEB-22): मंत्री जी का सहायक मोह

samvet srijan

(रवि भोई की कलम से)


लगता है स्कूल शिक्षा, अनुसूचित जाति और जनजाति  विकास, पिछड़ावर्ग और सहकारिता मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम का सहायक रखने का मोह छूट ही नहीं रहा है। वे भूपेश मंत्रिमंडल में जब से मंत्री बने हैं , तब से अपने पर्सनल स्टाफ को लेकर सुर्ख़ियों में हैं।  पहले अपनी पत्नी को पर्सनल स्टाफ में रखने को लेकर चर्चा में आए,  फिर अजय सोनी के कारण विवादों में रहे। अजय सोनी के चलते कांग्रेस के विधायकों ने ही उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। अब अशोक नारायण बंजारा को अपने पर्सनल स्टाफ में शामिल कर निशाने में आ गए हैं। बंजारा लोक शिक्षण संचालनालय में सहायक संचालक के साथ रायपुर के जिला शिक्षा अधिकारी और राज्य ग्रंथालय के प्रभारी भी हैं।

राज्य ग्रंथालय के प्रभारी के पद को अपर संचालक स्तर का बताया जाता है। इन सभी जिम्मेदारियों के साथ बंजारा साहब को मंत्री बंगले में स्कूल शिक्षा विभाग की फाइलों को परीक्षण कर मंत्री जी के सामने प्रस्तुत करने के लिए अधिकृत किया गया है।  मंत्री के पर्सनल स्टाफ में तैनात कर्मचारियों-अधिकारियों को अन्य दायित्वों से मुक्त रखने के सामान्य प्रशासन विभाग के फरमान के बाद भी बंजारा साहब पर मंत्री जी की मेहरबानी के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। हाल ही में मंत्री जी चक्रव्यूह में फंसते-फंसते बचे हैं।

रेनकोट पहनकर नहाने वाले मंत्री जी

कहते हैं छत्तीसगढ़ के एक मंत्री भरपूर भेंट-पूजा चाहते हैं, पर दूध का धुला भी बना रहना चाहते हैं। मंत्री जी मैदानी इलाके से आते हैं और उनकी पुरानी पीढ़ी भी राजनीति से जुडी रही है। मंत्री जी के पास दो कमाऊ विभाग है। एक जल से जुड़ा है। इन विभागों में ठेकेदारों और सप्लायर्स का ताँता लगा रहता है।  इस कारण मंत्री जी को चढ़ावा चढ़ाने वालों की कतार भी बड़ी लंबी होती है। कहा जाता है मंत्री जी को चढ़ावा से परहेज नहीं है , पर उनके बारे में चर्चा है कि वे रेनकोट पहनकर नहाने की कला में माहिर हैं और ना-ना कर गिलास ही गटक जाते हैं।

मंत्री जी के सहायक का स्टिंग

कहते हैं राज्य के एक मंत्री जी के साथ उनकी छाया की तरह रहने वाले एक सहायक का लेनदेन वाला खेल चर्चा में हैं।  कहा जाता है कि कुछ कांग्रेसियों ने सहायक के खेल का स्टिंग कर दिल्ली पार्टी हाईकमान को भेज दिया है। पांच राज्यों के चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ में राजनीतिक तापमान बढ़ने की ख़बरों के बीच सहायक का स्टिंग क्या गुल खिलाता है, इसका कई लोगों को इंतजार है। माना जा रहा है कि सहायक के बहाने मंत्री जी पर तीर चलाने की कोशिश की गई है। अब देखना यह है कि तीर से मंत्री जी घायल होते हैं या सहायक की बलि चढ़ती है ? वैसे सहायक महोदय  कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही कइयों की आंखों की किरकरी बने हुए हैं।

सुर्ख़ियों में रामविचार नेताम

भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम राज्य में पिछले तीन साल में 25,000 आदिवासी बच्चों की कुपोषण से मौत का आरोप उछालकर सुर्ख़ियों में आ गए हैं। भूपेश सरकार साल 2019 से राज्य में सुपोषण अभियान चला रही है और कुपोषण की दर में कमी की बात कर रही है। ऐसे में नेताम ने कुपोषण से मौत का मामला राज्यसभा में उठाने के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर तालाब में पत्थर फेंकने का काम किया है। कहते हैं इस मुद्दे को  राज्य में पहले नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने भी उठाया था, फिर नेताम के प्रेस कांफ्रेंस के गूढ़ रहस्य ने भाजपा के कई लोगों का पेट दर्द बढ़ा दिया है। कहा जा रहा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात के बाद राज्य में नेताम की सक्रियता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है।

भैया राजा बनने की चाह

कहते हैं धमतरी जिले के एक भाजपा नेता उत्तरप्रदेश के बाहुबली नेता भैया राजा जैसा बनना चाहते हैं, जिससे वे आजीवन चुनाव जीतते रहे। कहा जा रहा है कि भाजपा राज में जिले में नेताजी की तो तूती बोलती ही थी। कांग्रेस राज में भी नेताजी की प्रशासनिक हलकों में जबर्दस्त धमक है। माना जा रहा  है कि 2023 का विधानसभा चुनाव भारी बहुमत से जीतने के लिए नेताजी धमतरी जिले के एक विधानसभा के गांव -गांव को संवार रहे हैं। चर्चा है कि  कड़वे बोल के लिए ख्यात नेताजी ऐसा जमीन तैयार कर लेना चाहते हैं कि पार्टी टिकट के लिए ना नहीं कह सके और ना कह भी दे तो अपने  दम पर ताल ठोंक सकें। पर उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ की मिट्टी और हवा की तासीर एक जैसी नहीं है।

महिला आईएएस के अशिष्ट बोल

धर्म और आध्यात्म के माहौल में राज्य की एक धर्म नगरी में  एक महिला आईएएस अफसर के अशिष्ट बोल चर्चा में है। आमतौर पर सार्वजानिक कार्यक्रमों व स्थलों पर अखिल भारतीय सेवा के अफसरों से शालीन भाषा और सद व्यवहार की उम्मीद की जाती है, लेकिन सार्वजानिक कार्यक्रम व स्थल पर टेंट लगाने वाले एक ठेकेदार से एक महिला आईएएस की बात के अंदाज से लोग पानी-पानी हो गए ।  लोगों का कहना है कि डांट-फटकार का भी एक तरीका होता है।

फिर राजभवन और सरकार के बीच दीवार

कहते हैं न-सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ के महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय पाटन दुर्ग के लिए पहले कुलपति डा. राम शंकर कुरील की नियुक्ति के मामले में हो गया था। पाटन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का विधानसभा क्षेत्र है। कहा जाता है कि मुख्यमंत्री की नापसंदगी के बाद भी नोएडा के एक संस्थान में कार्यरत  डा. कुरील को ताज मिल गया। अब अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति के चयन से पहले ही बिसात बिछाई जा रही है।

बाहरी और स्थानीय का दांव चला जा रहा है। राज्य  के वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंहदेव के अलावा कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अन्य स्टाफ भी रण में कूद पड़े हैं। खबर है कि दिल्ली स्थित एक केंद्रीय कृषि संस्थान के डायरेक्टर को  इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में बैठाने की फुसफुसाहट ने हवा में जहर घोल दिया। माना जा रहा है कि कुलपति नियुक्ति के दांवपेंच से एक बार फिर राजभवन और सरकार के बीच बर्फ की दीवार बन गई है।

सत्र के बाद प्रशासनिक सर्जरी 

कहते हैं विधानसभा का बजट सत्र निपटने के बाद राज्य में पुलिस और प्रशासन में शीर्ष और जमीनी स्तर पर कुछ बदलाव होगा। अशोक जुनेजा के डीजीपी बनने के बाद पुलिस में शीर्ष स्तर पर व्यापक बदलाव का कयास लगाया जा रहा था। अब तक पुलिस में बड़े स्तर पर कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है। उम्मीद की जा रही थी कि  आरके विज के रिटायरमेंट के बाद 1990  बैच के आईपीएस राजेश मिश्रा को पदोन्नति मिल जाएगी। मिश्रा को पदोन्नति की जगह फिलहाल लूप लाइन में भेज दिया गया है।

कुछ जिलों के पुलिस अधीक्षक भी इधर से उधर हो सकते हैं। भूपेश सरकार में प्रशासनिक फेरबदल की हवाई स्पीड से कुछ अफसर जमने से पहले ही उखड जा रहे हैं। बार-बार ट्रांसफर के अभ्यस्त और हमेशा बोरिया बिस्तर बांधकर रखने वाले एक आईपीएस अब अपने मूल राज्य में जाने  की जुगत में हैं। कुछ कलेक्टरों की पारी खत्म होने के संकेत हैं। आईएफएस में भी उलटफेर हो सकती  है। प्रमोशन के बाद एसएस बजाज और सुधीर अग्रवाल को नई जिम्मेदारी मिल सकती है। कुछ डीएफओ भी बदल सकते हैं।

नान केस में 25 फ़रवरी को सुप्रीम कोर्ट में पेशी

छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नान केस में फिर सुप्रीम कोर्ट में 25 फ़रवरी को पेशी है। कोरोना की तीसरी लहर के बाद इस मामले की सुनवाई सुस्त पड़ गई थी। 3 दिसंबर के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस केस की तरफ नजर दौड़ाया है। नान केस में दो आईएएस अफसरों के नाम के कारण सुप्रीम कोर्ट में पेशी पर लोगों की दिलचस्पी होती है।  भाजपा राज का नान घोटाला पहले राजनीतिक रहा अब अफसरों के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है।


(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

(डिस्क्लेमर –  कुछ न्यूज पोर्टल इस कालम का इस्तेमाल कर रहे हैं। सभी से आग्रह है कि तथ्यों से छेड़छाड़ न करें।  कोई न्यूज पोर्टल कोई बदलाव करता है, तो लेखक उसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। )


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