(रवि भोई की कलम से)
कोरोना काल में कइयों का धंधा चौपट हो गया और कई बेरोजगार हो गए। निजी क्षेत्र में काम करने वालों का वेतन 25 से लेकर 50 फीसदी तक कम हो गया। उम्मीद थी कि कोरोनाकाल की पीड़ा से लोगों को उबारने के लिए सरकार राहत की बरसात करेगी। 2021-22 के बजट में मूसलाधार नहीं सही, बूंदा-बांदी की आस तो जनता को थी ही। बजट में झुनझुना मिला और पेट्रोल-डीजल के साथ रसोई गैस का दाम बढ़ाकर सरकार ने मरे और प्रहार कर दिया। पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतों में बढ़ोतरी से हर वर्ग प्रभावित होता है। तेल उत्पादक देशों ने अभी हाल में कच्चे तेल के दामों में वृद्धि नहीं की है, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आग लगाकर सरकार अपना खजाना भरने के लिए हर तबके की जेब में डाका डालने का काम कर रही है। मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी , तब पेट्रोल पर 9. 48 रुपए और डीजल पर 3. 56 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी थी, आज बढ़कर पेट्रोल पर 32. 98 रूपए और डीजल पर 31. 83 रुपए हो गया है।
हालत यह है कि सरकार पेट्रोल के बेस रेट पर 180 और डीजल पर 141 प्रतिशत टैक्स वसूल रही है। सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दाम को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझ ली है। मजेदार बात तो यह है कि विपक्ष में रहते जो दल पेट्रोल और डीजल की कीमत को लेकर हल्ला करता है, सत्ता में आते ही उसे वही आय का स्रोत नजर आता है। पेट्रोल और डीजल के दाम बाजार के हवाले करने और सब्सिडी घटाने का फैसला मनमोहन सिंह सरकार ने लिया था, लेकिन मोदी सरकार ने तो उसे बाजार के ही हवाले कर दिया। केंद्र सरकार के साथ-साथ कुछ राज्य सरकारें वैट की दरें बढ़ा दी, जिससे फरवरी में पेट्रोल की कीमत ने शतक बना लिया, जबकि डीजल कुछ ही कदम पीछे रह गया है।
रसोई गैस का दाम फ़रवरी में सौ रुपए बढ़कर प्रति सिलेंडर 840 रुपए हो जाने से गृहणियों का बजट गड़बड़ा गया। डीजल-पेट्रोल और रसोई गैस दैनिक जीवन के आवश्यक अंग बन गए हैं। ये अब विलासिता की चीजें नहीं रहीं। सरकार ने रोजाना इस्तेमाल की चीजों का दाम बढाकर रोने को मजबूर कर दिया है। डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई महंगी हो जाएगी, तो स्वाभाविक है कि उसका बोझ जनता पर ही पड़ेगा। पेट्रोल-डीजल अर्थव्यवस्था की धुरी बन गई है, पर इनकी ऊँची दर को लेकर लोगों में आक्रोश नजर नहीं आ रहा है। लगता है जनता हथियार डालकर सरकारों की मनमानी को स्वीकार कर लिया है। जनता को आगे आकर पेट्रोल-डीजल व रसोई गैस की कीमत घटाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना होगा। वहीं राजस्व के लिए सरकारों को भी पेट्रोल-डीजल की जगह दूसरे स्रोतों की तलाश करनी चाहिए।