कोरोना संक्रमण के दौरान रेहड़ी-पटरी वालों के लिए दिए जाने वाले लोन में गिरावट आई है. पब्लिक सेक्टर बैंकों को लिखी गई हाउसिंग एंड अर्बन मिनिस्ट्री की चिट्ठी से यह बात सामने आई है.
इस चिट्ठी में कहा गया है कि शुरुआत में फेरीवालों और रेहड़ी-पटरी को राहत देने के लिए सरकार ने बैंकों से कर्ज दिलवाने की जो व्यवस्था की थी उसमें अब गिरावट आ रही है. लोन की मंजूरी और वितरण धीमा पड़ गया है. बहुत बड़ी संख्या में बैंकों और बैंक शाखाओं की ओर से एप्लीकेशन लौटाए जा रहे हैं. बैंक ब्रांच की ओर से स्ट्रीट वेंडर्स से संपर्क नहीं हो पा रहा है. बैंकों के मर्जर से भी फर्क पड़ा है. शहरी मंत्रालय ने लिखा है कि स्ट्रीट वेंडर्स वित्तीय समावेशी योजना में शामिल नहीं हैं. उन्हें बैंकों से कर्ज नहीं मिलता और अमूमन वे बाहर से ही कर्ज लेते हैं. ऐसे में सिबिल स्कोर के आधार पर उनका एप्लीकेशन रद्द करना ठीक नहीं है. जब तक वेंडर लोन डिफॉल्टर न हो तब तक उनका एप्लीकेशन रद्द करना ठीक नहीं है.
दरअसल पीएम स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि यानी पीएम स्वनिधि के तहत रेहड़ी-पटरी वालों को अपना रोजगार शुरू करने के लिए साल में कम ब्याज दर पर दस हजार रुपये का लोन देने की व्यवस्था है. माना जा रहा है कि इनमें कई दिहाड़ी और आप्रवासी मजदूर हैं. लॉकडाउन में इन्हें सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है. मंत्रालय के मुताबिक देश में रेहड़ी-पटरी पर42.7 लाख स्ट्रीट वेंडर हैं (पश्चिम बंगाल में) . लोन के लिए बैंकों को इनका 37 लाख एप्लीकेशन मिले हैं. लेकिन इनमें से सिर्फ 20 लाख ही मंजूर हुए हैं. मंजूर लोन में से 95 फीसदी का आवंटन हो चुका है . इस स्कीम के तहत एनपीए सात फीसदी से भी नीचे है. आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा रेहड़ी-पटरी पर सामान बेचने वालों की संख्या 7.5 लाख यूपी में है.