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आज बांग्ला नववर्ष : जानिए कैसे मानते हैं बंगाली समुदाय पोइला ‘पोइला बोइशाख ’

हमारे देश में विभिन्न जाति व समुदाय के लोगों का अपना अलग-अलग नववर्ष होता है। नववर्ष अलग होने से कैलेंडर भी अलग-अलग होता है। एक ही देश के अंदर कई क्षेत्रीय कैलेंडर प्रचलन में रहते हैं। भारत में ‘हिंदू चंद्र-आधारित’, ‘हिंदू सूर्य-आधारित’, ‘इस्लामिक चंद्र कैलेंडर’, ‘बंगाली कैलेंडर’ का उपयोग होता है। बंगाली कैलेंडर के अनुसार बंगला नववर्ष किसी साल 14 तो किसी वर्ष 15 अप्रैल को शुरू होता है, जिसके पहले दिन को हम ‘पोइला बोइशाख ’ के नाम से जानते हैं। इस साल पोइला बैशाख 15 अप्रैल को मनाया जाएगा यानी शनिवार से बंगाली नववर्ष (1430) की शुरूआत होगी।

 

बंगाली कैलेंडर की शुरूआत को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। जहां कई इसकी उत्पति मुगल काल में मानते हैं, वहीं कइयों का मानना है कि इसकी उत्पति हिंदू शासन काल में हुई जो बंगाली नववर्ष को ‘विक्रमी हिन्दू कैलेंडर’ के पहले दिन बैसाखी से जोड़ कर देखती है, जिसे मुख्यत: सिखों और हिन्दुओं के द्वारा मनाया जाता है। बंगाल के कुछ गांवों में मान्यता है कि इस कैलेंडर का नाम बंगाल के एक राजा ‘बिक्रमदित्तो’ के नाम पर पड़ा।

पोइला बैशाख या बंगला नववर्ष विभिन्न जगहों (जैसे पश्चिम बंगाल, बंगलादेश, त्रिपुरा और अन्य उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्यों) में बंगाली समुदाय के लोगों के द्वारा खूब धूमधाम से मनाया जाता है। भारत में यह दिन भगवान गणेश जो कि शुभारंभ के देवता हैं और देवी लक्ष्मी जो कि धन व समृद्धि की देवी हैं, को समर्पित होता है। लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से समृद्धि आती है।

बंगाली कैलेंडर की शुरूआत को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। जहां कई इसकी उत्पति मुगल काल में मानते हैं, वहीं कइयों का मानना है कि इसकी उत्पति हिंदू शासन काल में हुई जो बंगाली नववर्ष को ‘विक्रमी हिन्दू कैलेंडर’ के पहले दिन बैसाखी से जोड़ कर देखती है, जिसे मुख्यत: सिखों और हिन्दुओं के द्वारा मनाया जाता है। बंगाल के कुछ गांवों में मान्यता है कि इस कैलेंडर का नाम बंगाल के एक राजा ‘बिक्रमदित्तो’ के नाम पर पड़ा।

पोइला बैशाख या बंगला नववर्ष विभिन्न जगहों (जैसे पश्चिम बंगाल, बंगलादेश, त्रिपुरा और अन्य उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्यों) में बंगाली समुदाय के लोगों के द्वारा खूब धूमधाम से मनाया जाता है। भारत में यह दिन भगवान गणेश जो कि शुभारंभ के देवता हैं और देवी लक्ष्मी जो कि धन व समृद्धि की देवी हैं, को समर्पित होता है। लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से समृद्धि आती है।

 

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