गोदी मीडिया गुड़ खाकर बैठा है इसीलिए हमें कश्मीर का सच न दिखाई दे रहा है और न सुनाई दे रहा है. केंद्र में सत्तारूढ़ दल जिस तेजी से देश में अल्पसंख्यक विरोधी वातावरण बना रही है उसकी कश्मीर में गंभीर प्रतिक्रिया हो रही है. घाटी में एक बार कश्मीरी पंडितों को फिर से पलायन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और भाजपा है कि संसद में अल्पसंख्यकों की उपस्थिति शून्य करने के लिए कृति संकल्प है.
इंग्लैंड की समाचार एजेंसी रायटर्स यदि कश्मीर का सच सामने न लाये तो किसी को पता ही न चले कि घाटी में से हाल की हत्याओं के बाद कश्मीरी पंडितों के 100 परिवार पलायन कर चुके हैं और बाक़ी के पलायन के लिए मजबूर हैं लेकिन उन्हें सरकार ने बन्दूक की बल पर रोक रखा है. कुलगाम में एक हिंदू शिक्षक की हत्या के बाद पलायन का नया दौर शुरू हुआ है । आतंकवादियों ने मंगलवार को श्रीनगर के दक्षिण में स्थित कुलगाम में एक सरकारी स्कूल के बाहर 36 साल की रजनी बाला की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस ताजा पलायन के लिए केंद्र अब न पंडित जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहरा सकता है और न इंदिरा गाँधी और राजीव गांधी को. इसकी जिम्मेदारी अब मौजूदा प्रधानमंत्री जी पर है जिन्होंने नया इतिहास रचने की सनक में जम्मू-कश्मीर से 05अगस्त 2019 को संविधान की धारा 370 को हटा दिया था.
हम सबने केंद्र की इस कार्रवाई का स्वागत किया था, केंद्र न सिर्फ ये धारा हटाई थी बल्कि पूरे राज्य को तीन टुकड़ों में बाँट दिया था. उम्मीद थी की घाटी में शीघ्र ही स्थितियां सामान्य होंगी और वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल होगी, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. बीते तीन साल से जम्मू कश्मीर और लद्दाख का शासन केंद्र के अधीन है. एक उप राजयपाल वहां बैठा है, जो न कश्मीरी हिन्दुओं की हत्या रोक पा रहा है और न मुसलमानों की. आतंकवादी जैसे पहले घाटी को रक्तरंजित किये हुए थे वैसे ही आज भी किये हुए हैं.
बारामूला में एक कश्मीरी पंडित कॉलोनी के अध्यक्ष अवतार कृष्ण भट ने कहा कि मंगलवार से इलाके में रहने वाले 300 परिवारों में से लगभग आधे पलायन कर गए हैं। उन्होंने दावा किया कि कल की हत्या के बाद से वे डर गए थे। हम भी कल तक चले जाएंगे, हम सरकार के जवाब का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने हमें कश्मीर से बाहर स्थानांतरित करने के लिए कहा था। लेकिन उप राजयपाल ने कोई आश्वासन देने के बजाय कश्मीरी हिन्दुओं की बस्तियों को सुरक्षा के नाम पर सील कर दिया है, जबकि असली मकसद पलायन को जबरन रोकना है.
कश्मीर को बिखंडित करने के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी जम्मू जाकर थम्मा छू आये, लंबा -चौड़ा जादुई भाषण दे आया लेकिन कोई जादू हुआ नहीं. ‘टारगेट किलिंग’ को रोकने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह जी ने भी है लेबिल बैठकें कीं लेकिन हुआ कुछ नहीं. घाटी में आतंकवाद की सुरसा लगातार अपना मुंह फाड़ती जा रही है और सुरक्षाबल रुपी हनुमान उसके मुंह में बैठकर बाहर आ चुके हैं किन्तु उसका खात्मा करने में अपेक्षिर रूप से सफल नहीं हो पा रहे हैं. सुरक्षा बल आखिर अपनी जान हथेली पर रखकर काम ही तो कर सकते हैं, वे इलाके में राजनीतिक प्रक्रिया तो बहाल नहीं कर सकते ?
पिछले तीन साल में केंद्र हाथ पर हाथ रखकर तो शायद नहीं बैठा लेकिन उसने किया क्या ये देश को पता नहीं. देश ने इन तीन सालों में केवल विवेक अग्निहोत्री की ‘दी कश्मीर फ़ाइल’ नाम की एक फिल्म जरूर देखी थी. इस फिल्म के जरिये विवेक करोड़पति हो गए और सरकार घाटी में आतंकवादियों के बजाय मुसलमानों के खिलाफ भरपूर नफरत फ़ैलाने में कामयाब हुयी. यदि ये नफरत केवल आतंकियों के खिलाफ फैलती तो शायद ज्यादा लाभ होता लेकिन हुआ उलटा. घाटी के मुसलमानों के बजाय नफरत फ़ैलाने का ये दायरा पूरे देश के मुसलमानों के खिलाफ कर दिया गया.
आज जब कश्मीर में पलायन का नया दौर शुरू हो चुका है तब न कहीं विवेक अग्निहोत्री हैं और न कोई और .घाटी में रहने वाले हिन्दू असुरक्षित हैं और जो बहुत पहले घाटी से पलायन कर आये थे वे भी वहां वापस नहीं लौट पाए. अब कोई विवेक अग्निहोत्री के पांव पड़ते नहीं दिखाई दे रहा जो घाटी में हिन्दुओं की सुरक्षा और पलायन का नया दौर बंद करने के लिए आंसू बहा रहा हो. सबको पता चल चुका है कि विवेक केवल फिल्म बना सकते हैं पलायन नहीं रुकवा सकते. पलायन रोकना और घाटी में कश्मीरी हिन्दुओं की सुरक्षा करना केवल और केवल केंद्र सरकार का काम है.
आपको याद दिला दें कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए आजाद भारत में पहली बार धारा संविधान में 17 अक्टूबर 1949 को जोड़ी गई थी धारा 370 के चलते जम्मू-कश्मीर के पास विशेष अधिकार थे. इसके मुताबिक, भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों-रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए कानून बना सकती है. अन्य किसी कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती है. भाजपा ने केंद्र की सत्ता में आने के पांच साल बाद इस प्रावधान को हटा दिया था. जैसे घाटी में कांग्रेस ने एक प्रयोग धारा जोड़कर किया था वैसा ही एक प्रयोग भाजपा ने धारा हटाने के साथ प्रदेश को तोड़कर किया लेकिन दोनों के नतीजे संतोषजनक नहीं आये. घाटी तब भी निर्दोषों के खून से लाल थी, घाटी आज भी निर्दोषों के खून से लाल है.
जानकारों का कहना है कि यदि भाजपा ने अपनी पार्टी के भीतर से मुसलमानों का सफाया शुरू न किया होता तो मुमकिन है कि नफरत का नया दौर शुरू न होता, लेकिन जो होना होता है सो होकर रहता है. भाजपा देश कि साथ ही अपनी पार्टी का नफा-नुक्सान भी देखने कि लिए मजबूर है और इसी के चलते आने वाले आम चुनाव तक वो इस मामले को इसी तरह लटकाये रखेगी. अब जम्मू-कश्मीर में जो कुछ नया होगा वो आम चुनाव के बाद ही होगा ,तब तक भले ही पलायन के दस दौर गुजर जाएँ. चिनाव में चाहे जितना खून बह जाये.
@ राकेश अचल
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