बिहार, प्राचीन काल से ही ज्ञानोपार्जन का एक प्रमुख केंद्र रहा है | बौद्ध काल में स्थापित नालन्दा विश्वविद्यालय के अलावा, यहाँ कई ऐसे केंद्र रहे जहाँ विभिन्न प्रकार की कला विधा ने जन्म लिया | बीते समय में यहाँ का हर एक गाँव, क़स्बा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी कला विधा के विकास के लिए प्रयासरत था | प्राचीन कलाओं में सुजनी आर्ट, सिक्की आर्ट, मिथिला पेंटिंग आदि कुछ ऐसी कला विधाएं हैं जिसने पूरे भारत ही नहीं , विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है | परन्तु कई ऐसी कला विधाएँ भी हैं जो सामाजिक उदासीनता, औद्योगिकीकरण आदि कारणों से विलुप्त होने के कगार पर है |
बाबजूद इसके वर्तमान समय में भी ऐसे कई कला प्रेमी व संरक्षक मौजूद हैं जो तमाम विपरीत परिस्थितयों के बाबजूद इन अमूल्य धरोहरों को संजोने और संरक्षित रखने में प्रयासरत हैं. ऐसी ही एक विलुप्तप्राय कला को संरक्षित रखने में लगी हैं 60 वर्षीय राजकुमारी देवी l समस्तीपुर जिले के वारिसनगर प्रखंड की निवासी राजकुमारी जी कुश, धागे और उन की सहायता से ऐसे ऐसे मनमोहक डिजाइन की टोकरियाँ तैयार करती हैं कि कोई एक बार देखे, बस देखता ही रह जाए | राजकुमारी जी ने अपनी माँ से विरासत के रूप में मिली इस कला विधा में अपने कुछेक परिवारजनों को भी प्रशिक्षित किया है l हालाँकि, कुछ दिनों पहले तक, राजकुमारी जी की डिजाइनर टोकरियों की पहुँच उनके रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों तक ही सीमित थी.
लेकिन एक दिन अचानक, सामाजिक कार्यकर्ता अर्चना रानी की नजर उनकी टोकरियों पर पड़ी और फ़िर वहाँ से शुरू हुआ इनके बेल्जियम जाने का सफर. हुआ कुछ यूं की श्रीमती रानी को ये टोकरियों इतनी पसंद आयीं की उन्होंने इन्हें बनाते हुए राजकुमारी जी का एक छोटा सा वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया जिसे देश दुनिया के बहुत सारे लोगों ने देखा और सराहा. बेल्जियम में रहने वाली तनुजा झा और पटना की मनीषा सिंह को ये डिजाइनर टोकरियाँ इतनी पसंद आयीं की उन्होंने तुरंत श्रीमती रानी से संपर्क करके 10 टोकरियाँ बनाने का पहला ऑर्डर राजकुमारी जी को दे दिया.
हालाँकि 60 वर्षीय राजकुमारी जी के लिए अकेले इतने बड़े ऑर्डर को पूरा कर पाना नामुमकिन ही था, लेकिन ऐसे में उनकी सहायता के लिए आगे आयीं अनीता देवी पति रघु नाथ प्रसाद, विभा देवी पति दया नाथ प्रसाद और प्रीति कुमारी पिता रघुनाथ प्रसाद. इन सब के संगठित प्रयास से ये ऑर्डर ससमय पूरा तो हो गया लेकिन कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन की वजह से टोकरियाँ अपने सफर पर निकल नहीं पाईं.
अब जब स्थिति सामान्य होने लगी हैं तब एक बार फिर से इन्हें बेल्जियम भेजने की तैयारी के साथ साथ अधिकाधिक ग्रामीण महिलाओं को इस कला में प्रशिक्षित करने की कवायद भी शुरू हो गई है l इसी उद्देश्य से रविवार को वारिस नगर प्रखंड के लाभाटा गाँव में आयोजित कला जागरुकता शिविर में श्रीमती अर्चना रानी ने ग्रामीण महिलाओं से इस कला को विलुप्त होने से बचाने के लिए संगठित होकर अथक प्रयास करने का आव्हान किया. उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक कला और संस्कृति को संजोये रखना हम सब का परम कर्तव्य है इसलिए आप सबको एक समुह बनाकर संगठित रूप से काम करने की जरूरत है, क्योंकि इससे व्यक्तिगत विकास के साथ साथ सामाजिक-आर्थिक विकास सम्भव है . नए ज़माने में सोशल मीडिया और इन्टरनेट आदि माध्यमों से जैसे जैसे लोग इस कला के बारे में जानेंगे वैसे वैसे आप सब को मिलने वाले ऑर्डरों की संख्या में भी बढ़ोतरी होगी जिससे आप सब अपने खाली समय का सदुपयोग कर उचित पारिश्रमिक भी पा सकेंगी. शिविर में कई गणमान्य लोग उपस्थित थे.
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