जगदलपुर, हरियाली अमावस्या के अवसर पर गुरुवार से ऐतिहासिक बस्तर दशहरा की रस्में शुरू हो गई हैं। सुबह 11 बजे मां दंतेश्वरी मंदिर के ठीक सामने दशहरा का विशाल रथ बनाने वाले प्रमुख कारीगर दलपति के सानिध्य में बस्तर दशहरा की पहली रस्म पाटजात्रा संपन्ना हुई। इस अवसर पर शहर की प्रथम नागरिक महापौर सफिरा साहू के साथ दर्जनों मांझी, चालकी, मेंबर- मेंबरीन और जिला प्रशासन के अधिकारी मौजूद रहे। पूजा विधान में शामिल कलेक्टर चंदन कुमार ने कहा कि बस्तर दशहरा उत्साह से मनाएंगे लेकिन कोरोना और शहर में बढ़ रहे डेंगू की समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
लकड़ी में सात कीलें ठोक कर पूजा प्रारंभ
बस्तर दशहरा की रस्में लगभग 75 दिनों में पूर्ण होती हैं। पहली रस्म हरियाली अमावस्या के दिन पाटजात्रा के रूप में संपन्न होती है। माचकोट वन परिक्षेत्र अंतर्गत बिलोरी जंगल से काटकर लाए गए साल वृक्ष के गोले की पूजा-अर्चना की जाती है। पारंपरिक पूजा विधान में इसे टूरलू खोटला कहा जाता है। गुरुवार सुबह 11 बजे मां दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी कृष्ण कुमार पाढ़ी के साथ बस्तर दशहरा का रथ बनाने वाले प्रमुख कारीगर दलपति नाग पाटजात्रा पूजा विधान स्थल पहुंचे। यहां साल लकड़ी में सात कीलें ठोक कर पूजा प्रारंभ की। पूजा के बाद एक बकरा, सात मांगुर मछली, सवाया के रूप में अंडा तथा विभिन्ना देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए लाई- चना अर्पित कर महुआ की शराब का तर्पण किया गया। बताया गया कि बस्तर दशहरा के लिए रथ बनाने वाले कारीगर इसी काष्ठ से अपने औजारों का बेंत तैयार करते हैं।
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