अफगानिस्तान हथियाने के फेर में तालिबान फंस गया है. उसने काबुल हवाई अड्डे पर विस्फोट कर अपने ही पांवों पर कुलहाड़ी मार ली है. तालिबान को भविष्य में जिस अमेरिका से इमदाद मिलने की संभावनाएं थीं वे भी फिलवक्त धूमिल हो गयीं हैं, क्योंकि विस्फोट में अमरीकी सैनिक भी मारे गए हैं. तालिबान में असली तस्वीर 31 अगस्त के बाद सामने आएगा, क्योंकि 31 अगस्त तक तालिबान ने अपनी सीमाएं सील न करने के लिए हामी भरी हुई है. अभी तो तालिबान के मुंह में आतंक की छंछून्दर फांसी हुई है. उसे न निगला जा रहा है और न उगला जा रहा है.
बारूद के ढेर पर खड़े अफगानिस्तान को अपने आप से लड़ते हुए एक पखवाड़ा हो चुका है लेकिन अफगानिस्तान से भगदड़ और पलायन जारी है. बर्बर तालिबानियों की हुकूमत में कोई भी अमनपसंद आदमी नहीं रहना चाहता ,यहां तक की खुद अफगानी नागरिक भी. अफगानिस्तान में इस समय दुनिया के सौ से ज्यादा मुल्कों के नागरिक फंसे हुए हैं. बम धमाकों और बारूद के विस्फोटों के बीच तमाम देश आफ्गानिस्तान से अपने-अपने नागरिकों को बाहर निकालने के मिशन में लगे हैं. तालिबानियों ने सभी विदेशियों से 31 अगस्त तक देश छोड़ने के लिए कहा है. लेकिन मौजूदा हालात देखते हुए लगता नहीं है की ३१ अगस्त तक अफगानिस्तान से बहार जाने वाले लोगों को बाहर निकाला जा सकेगा.
तालिबान के पास हुकूमत चलाने के दो ही औजार हैं, पहला श्रिता क़ानून और दूसरी गन-मशीन. लेकिन दुनिया के तमाम लोग जबरन इस्लामी क़ानून को मानने और बन्दूक के साये में रहने, जीने या मरने के लिए तैयार नहीं हैं. जो विदेशी हैं वे तो अपने-अपने देश जा ही रहे हैं लेकिन जो मूल अफगानी हैं वे भी बड़ी संख्या में अमेरिका समेत तमाम बड़े और उदार देशों में शरण लेने की फिराक में हैं. तालिबान अफगानी नागरिकों का पलायन रोकने के लिए लोगों में दहशत फैलाना चाहता है. काबुल हवाई अड्डे पर हुआ भीषण धमाका यही पलायन रोकने की एक कोशिश थी, लेकिन ये कोशिश तालिबानियों के गले की फांस बन गयी. बम विस्फोट में आम लोगों के साथ भी अमरीकी भी बड़ी संख्या में मारे गए, फलस्वरूप अमेरिका ने भी पलटवार कर अफगानी तालिबानियों और दुसरे आतंकी संगठनों को ध्वस्त करने की जबाबी कार्रवाई कर दिखाई.
अफगानी तालिबान भूल गया कि दुनिया में मानवाधिकारों की कथित लड़ाई लड़ने वाला अमरीका बारूद के मामले में उनका भी परदादा है. अमेरिका ने जिस तरह से अफगानिस्तान से अपनी फौजों को हटाया था उसे देखते हुए अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की बड़ी किरकिरी हुई है लेकिन बाइडन ने काबुल हवाई अड्डे पर हुए महा विस्फोट का हिसाब बराबर कर अपने देश के नागरिकों का गुस्सा कम करने की कोशिश की है.
तालिबान को शायद अनुमान नहीं था कि तख्ता पलटने की कोशिश उसे इतनी भारी पड़ेगी. चीन और पाकिस्तान समेत मुठ्ठी भर देशों को छोड़कर तालिबान अकेला पड़ा हुआ है. दुनिया के 98 देशों से उसे समझौता करना पड़ा है कि वे 31 अगस्त के बाद भी अपने नागरिकों को बाहर निकाल सकते हैं. तालिबान ने ये समझौता अपनी मर्जी से नहीं किया है. तालिबान अगर ये समझौता न करते तो मुमकिन था कि ये सब देश मिलकर तालिबान के खिलाफ एक बड़ा अभियान शुरू कर देते.
इस समय तालिबान सीमा पर अपने विरोधियों से और देश के भीतर पंजशील जैसे राज्यों में अपने ही लोगों से लड़ रहा है. पंजशील में तालिबान को पांव धरने की गुंजाइश नहीं बची है. ये और इसी तरह के दो-तीन और राज्य हैं जो तालिबानी तौर-त्रिकोण से हुकूमत चलाने में इत्तफाक नहीं रखते. तालिबान के लिए पूरे मुल्क का बादशाह बनने के लिए पंजशीर और उस जैसे राज्यों को जीतना बहुत जरूरी है तालिबान देश के भीतर और देश के बाहर अगर लड़ाई करने की माद्दा रखता है तो आगे क्या क्या होगा, पता नहीं ?
लगभग बर्बाद हो चुके अफगानिस्तान में तालिबानियों ने सबसे पहले स्कूलों और कॉलेजों को ही अपना निशाना बनाया है. तालिबानियों ने कहा है कि अब मुल्क में लड़के और लड़कियां साथ-साथ नहीं बैठ कर पढ़ सकते. लड़कियों को पुरुष मास्टर नहीं पढ़ा सकते. अब आप ही कल्पना कीजिये कि इन बंदिशों के बीच कौन है जीना चाहेगा ? अफगानिस्तान में जो अस्थिरता 15 अगस्त को शुरू हुई थी उसे हाल-फिलहाल तो मामूलपर आने में महीनों क्या वर्षों लग सकते है.
तालिबान को बचने के लिए बीते दो दशक में की गयी दुनिया जहां की कोशशों को तालिबानियों ने पलक झपकते हुए पलीता लगा दिया. तालिबानियों की हरकत को देखते हुए भारत के लोग तालिबान को ‘भस्मासुर’ की संज्ञा दे सकते हैं. तालिबान को जिन-जिन ताकतों ने बीते बीस साल में पाला-पोसा अब वे ही सब लोग खतरे में हैं फिलहाल अमरीका समेत दुनिया के तमाम मुल्क तालिबानियों से अपना दामन बचाने में लगे हैं. अपवादों को छोड़कर कोई भी तालिबान की हुकूमत के साथ खड़ा नहीं होना चाहता अफगानिस्तान की ताजा स्थिति को देखते हुए भारत भी पशोपेश में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इटली के अपने समकक्ष मारियो द्राघी से बात की और अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पैदा हुए सुरक्षा हालातों के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वित प्रयास की आवश्यकता पर बल दिया। उधर केंद्र सरकार के मुताबिक, भारत सरकार द्वारा जारी हेल्पलाइन पर अभी तक 15 हज़ार लोगों ने संपर्क किया है और मदद मांगी है.
आपको याद होगा किभारत द्वारा अभी तक 800 से अधिक लोगों को वापस लाया जा चुका है, जिसमें सबसे पहले दूतावास के लोगों को वापस लाया गया था. इसके बाद अब भारतीय नागरिकों को लाया जा रहा है, इसके अलावा अफगानिस्तान में रहने वाले हिन्दू, सिखों को भी दिल्ली लाया गया है. खास बात ये है कि भारत सिर्फ अपने नागरिकों को ही नहीं ला रहा है, बल्कि पड़ोसी देश नेपाल के अलावा लेबनान के नागरिकों को भी सुरक्षित निकाला गया है. इस समय दुनिया में तालिबान एक मुहावरा बन चुका है. लेकिन ये एक बेहद डरावना मुहावरा है. इससे जितनी जल्द मुक्ति मिले, उतना अच्छा. @राकेश अचल
यह भी पढ़ें- अक्टूबर-नवंबर में कोरोना की तीसरी लहर होगी घातक, हर दिन इतने लाख मामले आएंगे सामने, विशेषज्ञों ने चेताया
One Comment
Comments are closed.