वोट कबाड़ने की मजबूरी राजनीति को कितना पतित कर सकती है,यदि ये जानना हो तो आपको मध्यप्रदेश की और रुख करना पडेगा.महाराज की दम पर मध्यप्रदेश में राज कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश में होने वाले उप चुनावों में अपनी साख बचाने के लिए ऐसी घोषणाएं करना शुरू कर दी हैं जो हास्यास्पद होने के साथ ही जन विरोधी भी हैं.
मध्यप्रदेश में इसी माह खंडवा संसदीय क्षेत्र और निवाड़ी, सतना और अलीरजपुर विधानसभा सीट के लिए उप चुनाव होना है. इन सीटों में से कुछ सीटें आदिवासी बहुल हैं इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने झाबुआ में जन जातीय सम्मेलन में जाकर पहले नाच-गाना किया फिर घोषणा कर दी कि सरकार आदिवासियों को पारम्परिक रूप से शराब बनाने और बेचने के लिए अपनी आबकारी नीति में संशोधन करेगी.
सरकार को ये अधिकार है कि वो कुछ भी निर्णय करे . दयालु मुख्यमंत्री को अचानक सुध आयी की आदिवासियों की संस्कृति में शराब का बड़ा महत्व है.बिना महुए की शराब के उनके यहां देवताओं की पूजा भी नहीं होती. आदिवासियों की इस जरूरत और संस्कृति के संरक्षण के लिए शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों को शराब बनाने और बेचने की छूट देने का ऐलान किया .आदिवासियों को सीमित मात्रा में महुआ से शराब बनाने की छूट तो अभी भी है लेकिन अब वे ज्यादा शराब बनाकर उसे बाजार में बेच भी सकेंगे. मुख्यमंत्री का मानना है कि इससे आदिवासियों में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे.
सरकार की अवधारणा और फैसलों को कोई चुनौती नहीं दे सकता,खासकर तब, जबकि वे किसी समाज की संस्कृति के नाम पर किये गए हों. सरकार आदिवासियों की सुविधा के लिए शराब को पहले ही राशन की दुकानों के जरिये होम डिलेवरी करने का फैसला कर चुकी है.
मध्य्प्रदेश अवैध शराब के सेवन से होने वाली मौतों के मामले में पहले से अव्वल रहा है. अब अवैध कारोबार को कानूनी रूप देने से ये मौतें कम होंगी या ज्यादा भगवान ही जाने. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का हासिल ये है की अपनी चौथी पारी के पहले डेढ़ साल में ही मध्यप्रदेश में अवैध शराब से दर्जनों लोग मारे जा चुके हैं. हाल ही में मंदसौर के अलग-अलग इलाकों में जहरीली शराब से लगभग 8 लोगों की मौत के बाद मध्यप्रदेश सरकार की जमकर किरकिरी हुई थी. शिवराज सरकार के इस चौथे कार्यकाल के करीब डेढ़ साल में अवैध शराब के सेवन से 40 से ज्यादा लोगों की अबतक मौत हो चुकी है.
आपको याद करा दूँ कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने ही पिछले महीने अवैध शराब बेचने के मामले में जुर्माने की राशि सजा में इजाफा करने का फैसला किया था. मध्यप्रदेश में अवैध शराब का कारोबार करने वालों को फांसी की सज़ा तक हो सकती है. सरकार ऐसा सख्त कानून भी बना डाला , अवैध शराब मामले में जुर्माना की राशि भी 10 लाख से बढ़कर 20 लाख कर दी. एक नए आबकारी अधिकारी की नियुक्त का प्रावधान किया गया है. आबकारी टीम पर हमला करने वालों को बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकेगा. लेकिन आदिवासियों की संस्कृति के नाम पर किये गए फैसले से इन कानूनों की क्या उपयोगिता रह जाएगी, कहना कठिन है.
प्रदेश में होने वाले उप चुनाव मुख्यमंत्री के लिए एक अग्नि परीक्षा जैसे हैं और इस अग्निपरीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए ही उन्हें बेसिर-पैर के फैसले लेने को मजबूर होना पड़ रहा है. मुख्यमंत्री पिछले दिनों दमोह विधानसभा उप चुनाव में गच्चा खा चुके हैं इसलिए अब वे कोई जोखिम नहीं लेना चाहते. भाजपा संगठन की अंदरूनी दशा भी उनके अनुकूल नहीं है .असंतुष्ट अपनी जगह सक्रिय हैं और उनकी कुर्सी पर आँख लगाए बैठे हैं. कर्नाटक,उत्तराखंड और गुजरात में हुए नेतृत्व परिवर्तन से असंतुष्टों के हौसले और बढ़ गए हैं .
मध्यप्रदेश में शराब शुरू से ही चर्चा और विवाद का मुद्दा रही है. प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती अनेक अवसरों पर प्रदेश में पूर्ण शराब बंदी की मांग कर चुकी हैं. कांग्रेस के शासनकाल में भी ऐसी मांगे उठीं,किन्तु किसी सरकार ने इस तरह की मांगों को तवज्जो नहीं दी .उलटे शराब कारोबार को संरक्षण ही दिया .भाजपा कि मौजूदा सरकार भी शराब कारोबार के जरिये ही अपनी सरकार चला रही है. कोरोनाकाल में जब सरकार की आमदनी के तमाम स्रोत सूख गए थे तब केवल शराब ही थी जो थोड़ा-बहुत कमाकर देती रही.
मप्र की माली हालत पहले से खराब है. सरकार के ऊपर अरबों का कर्ज है.छह माह पहले आये आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने पिछले साल के मुकाबले सकल घरेलू उत्पाद में कमी का अंदेशा जताया था.सरकार ने माना है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2020-21 में इसमें 3.37 फीसदी की कमी आई है. आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य में प्रति व्यक्ति आय में भी कमी देखी गई है. वित्तीय वर्ष 2019-20 में प्रति व्यक्ति आय 62,236 रुपए सालाना थी.
जो कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में घटकर 58,425 रुपए सालाना हो गई है. सरकार का अनुमान है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में प्रदेश की कुल जीडीपी 5,60,845 करोड़ रुपए रहेगी.
उप चुनाव जितने और अपनी कुर्सी को बनाये रखने के लिए मुक्यमंत्री शिवराज सिंह पर कितने दबाब हैं पाठक समझ सकते हैं .ऊपर से सरकार की माली हालत ‘ कोढ़ में खाज ‘ का काम कर रही है .मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने सरकारी खजाने की स्थिति सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है, बार-बार कर्ज लेना पड़ रहा है. हाल ही में शिवराज सरकार ने 6.76 फीसदी सालाना ब्याज दर पर 20 साल की अवधि के लिए बाजार से 2000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया है. शिवराज ने 23 मार्च को चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. बीते 9 महीने में यह 17वां मौका है जब मध्य प्रदेश सरकार ने बाजार से कर्ज लिया है.
कर्ज में फंसी सरकार अगर आदिवासियों की संस्कृति संरक्षण के नाम पर आदिवासियों को महुए की शराब बनाने और बेचने की इजाजत दे रही है तो हैरानी किस बात की. मुख्यमंत्री की तकलीफ प्रदेश की जनता को समझना चाहिए. नैतिकता का इससे कोइलेना-देना नहीं है और न ही होना चाइये. राजनीति में नैतिकता वैसे ही एक आभासी अहसास है. @ राकेश अचल
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