अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रमुख गीता गोपीनाथ (Gita Gopinath) ने अपना पद छोड़ने वाली हैं. आईएमएफ की ओर से कहा गया है कि वे जनवरी में अपना पद छोड़ देंगी. इसके साथ ही बताया गया कि गीता गोपीनाथ एक बार फिर हॉवर्ड विश्व विद्यालय (Harvard University) के अर्थशास्त्र विभाग में शिक्षण के कार्य में वापस लौटेंगी. दरअसल हॉवर्ड ने गीता गोपीनाथ की छुट्टी को एक साल के लिए बढ़ा दिया था. इसी के चलते उन्हें तीन साल के लिए आईएमएफ में काम करने का मौका मिला था.
49 साल की गीता आईएमएफ से जुड़ने से पहले हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में जॉन ज़्वानस्ट्रा अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन और अर्थशास्त्र की प्रोफेसर थीं. गीता का जन्म भारत के मैसूर में हुआ था, वे आईएमएफ प्रमुख के पद पर पहुंचने वाली पहली महिला हैं. इसके अलावा आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन (Raghram Rajan) के बाद आईएफएम में इस पद तक पहुंचने वाली गीता दूसरी भारतीय हैं.
IMF ने की काम की तारीफ
आईएमएफ की ओर से कहा गया है कि गीता गोपीनाथ के उत्तराधिकारी की खोज जल्दी शुरू की जाएगी. आईएमएफ की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टालिना जॉर्जीवा (Kristalina Georgieva) ने कहा कि उन्होंने कोरोना काल में शानदार काम किया.
क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने गीता के योगदान की जमकर तारीफ की. आईएमएफ ने कहा कि गीता को इंटरनेशनल फाइनेंस और माइक्रो इकोनॉमिक्स की गहरी समझ है, जिसका संस्थान को लाभ मिला.
गीता गोपीनाथ के बारे में जानिए
आईएमएफ के लिए नीतियों को तैयार करने और रणनीतियों को निर्धारित करने और विभिन्न देशों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में मदद करने के अलावा, वो विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट का काम भी देखेंगी, जिसे वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख सर्वेक्षण माना जाता है. नई दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से स्नातक गीता गोपीनाथ ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमए की डिग्री हासिल की है.
इसके बाद वो आगे की पढ़ाई के लिए प्रिंसटन यूनिवर्सिटी चली गईं, जहां से उन्होंने 2001 में अंतर्राष्ट्रीय मैक्रो इकॉनॉमिक्स और बिज़नेस में अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की. 2005 में हार्वर्ड जाने से पहले गीता शिकागो यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर थीं. उन्हें 2003 और 2004 में जर्नल ऑफ इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स में प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ पेपर के लिए भगवती पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
साल 2014 में आईएमएफ ने उन्हें 45 साल से कम उम्र के शीर्ष 25 अर्थशास्त्रियों में से एक नामित किया था और 2011 में उन्हें विश्व आर्थिक मंच यंग ग्लोबल लीडर करार दिया गया. उनके व्यापक शोध और लेखन में साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई नोटबंदी की समीक्षा भी शामिल है. नोटबंदी के कुछ ही दिन बाद एक पेपर में उन्होंने लिखा था कि सरकार के इस (नोटबंदी) कदम से भारतीय अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचती दिख रही है.
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