तस्वीरें समय की गवाही देतीं हैं, इसीलिए तस्वीरें बनाने, खींचने, सहेजने की परम्परा है किन्तु कुछ तस्वीरें ऐसी होती हैं जो मन दुखाती हैं, ऐसी तस्वीरों को लेकर मै अक्सर भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि ये तस्वीर झूठी हो. लेकिन भगवान मेरे जैसे असंख्य लोगों की प्रार्थना कबूल नहीं कर पाता क्योंकि कुछ तस्वीरें झूठी नहीं होतीं. हालांकि आजकल तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ का काम भी देश में युद्धस्तर पर चल रहा है. इस उद्योग का काम तस्वीरों कि ‘मॉर्फिंग ‘ करना होता है.
मै जिस तस्वीर की बात कर रहा हूँ वो उत्तर प्रदेश से आयी है. इस तस्वीर में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री के काफिले में पैदल चल रहे हैं. प्रधानमंत्री अपनी बुलेटप्रूफ कार में हैं. इस तस्वीर को देखकर पता चलता है कि इस देश में लोकतंत्र का रंग एक बार फिर बदल रहा है. ऐसी तस्वीरें बीते शतक के आठवें दशक में आम थीं. उस समय मुख्यमंत्री एक पार्टी के युवराज के जूतों के तस्में बांधते दिखाई दे जाते थे. लोकतंत्र में उस काल को तानाशाही या नवसामन्तवाद का काल कहा जाता था. जो बाद में आपातकाल के रूप में हमारे सामने आया था.
लगता है कि इतिहास अब नया नहीं लिखा जा रहा, बल्कि पुराने इतिहास को ही दुहराया जा रहा है. अब एक मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री के काफिले में पदयात्रा करना पड़ रही है तो हमारे अपने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को बांह पकड़कर प्रधानमंत्री के साथ बराबरी से चलने से रोका जाता है. दुर्भाग्य से इन दोनों ही घटनाओं के वीडियो उपलब्ध हैं इसलिए इन्हें झुठलाया नहीं जा सकता. ये दोनों तस्वीरें, घटनाएं भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी हैं, क्योंकि इसी भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी जी को भगवान का अवतार मानकर उनकी प्राण-प्रतिष्ठा की है.
मुझे याद है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दौर में हमारे मध्य प्रदेश में ऐसे मुख्यमंत्री भी थे जो पंडित जवाहर लाल नेहरू को ‘जवाहर’ कहकर सम्बोधित करने का अधिकार और माद्दा दोनों रखते थे, लेकिन आज जमाना बदल गया है. आज लगातार पंद्रह साल मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह की बांह पकड़कर उन्हें प्रधानमंत्री के बराबर चलने से रोका जा सकता है तो देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री के काफिले में पैदल चलने पर विवश किया जा सकता है. पहला अवसर देश के पहले विश्व स्तरीय रेलवे स्टेशन के उद्घाटन का है और दूसरा पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के उद्घाटन का.
मुझे नहीं लगता कि दोनों ही अवसरों पर जो हुआ उसमें प्रधानमंत्री जी का कोई हाथ है, लेकिन मुझे ये जरूर लगता है कि प्रधानमंत्री के साथ रहने वाला सुरक्षा अमला जरूर प्रधानमंत्री की पसंद और नापसंद के अनुसार ये सब करने की जुर्रत करता होगा, अन्यथा एक मुख्यमंत्री के साथ ऐसा व्यवहार अकल्पनीय है .मोदी जी किसी वंशवाद का उत्पाद नहीं हैं. वे एक संस्कारवान संस्था के स्वयं सेवक बनकर राजनीति में आये हैं. उनके संस्कारों में अहमन्यता होने का सवाल ही नहीं है किन्तु अब अहमन्यता साफ़-साफ़ दिखाई देने लगी है. ये अहमन्यता छिपाये नहीं छिप रही, फिर ये चाहे कपडे पहने में हो या अपने सहकर्मियों के साथ व्यवहार में.
एक आम आदमी के रूप में मुझे यकीन नहीं होता कि खुद को देश का चौकीदार मानने वाला आदमी अपने साथ के जन प्रतिनिधियों के साथ इतना ओछा व्यवहार कर सकता है या करते हुए देख सकता है. प्रधानमंत्री चाहते तो यूपी के मुख्यमंत्री को अपनी बुलेटप्रूफ कार में बैठा लेते, चाहते तो खुद पैदल चल लेते. पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक थोड़े ही होता है. फिर पूर्वांचल एक्सप्रेस पर पैदल चलने में कोई खतरा भी नहीं था क्योंकि वहां विश्व स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था थी. प्रधानमंत्री चाहते तो भोपाल में हमारे मामा मुख्यमंत्री को अपने बराबर से लेकर चलते और रानी कमलापति रेलवे स्टेशन की बारीकियां जानते लेकिन वहां भी मामा को बांह पकड़कर किनारे कर दिया गया. आखिर हमारे मामा प्रधानमंत्री से ज्यादा बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, वे कोई खतरनाक आदमी भी नहीं है जो सुरक्षा बल उनकी बांह पकड़ कर उन्हें प्रधानमंत्री से दूर करें ?
योगी और शिवराज सिंह की तस्वीरों को लेकर मेरी समीक्षा आपको गलत लग सकती है लेकिन मै प्रधानमंत्री की शपथ लेकर कहता हूँ कि इसमें मेरी कोई बदनीयत नहीं है. मुझे सचमुच इन तस्वीरों ने व्यथित किया है. यदि आप इन तस्वीरों को देखकर आहत नहीं हुए हैं तो आपका दिल सचमुच मजबूत है, लेकिन मेरा दिल तो सनातन कमजोर है. ऐसे दृश्य देखकर तेजी से धड़कने लगता है. उसे अनहोनी की आशंका सताने लगती है. इस मामले में दिल राजनीति बिलकुल नहीं करता. प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय का ये व्यवहार देश के साथ ही भाजपा के लिए भी खतरे की आहत है. लगने लगा है कि अब प्रधानमंत्री अपने आपको असुरक्षित समझने लगे हैं, इतना असुरक्षित कि उन्हें मुख्यमंत्रियों तक से भय लगने लगा है.
योगी की तब्सिर को लेकर बयानबाजी शुरू हो गयी है. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लिखा -‘ लिखा, तुमने हमारी आवभगत का अच्छा सिला दिया। जनता से पहले तुमने ही हमें पैदल कर दिया। तो बचाव में बीजेपी नेता सुरेश नाखुआ ने लिखा, यह शायद मुख्यमंत्री थे, प्रोटोकॉल नाम की भी चिड़िया होती है। पितातुल्य व्यक्ति की इज्जत की जाती है और की गई है। सपा नेता आईपी सिंह ने लिखा, उत्तराखंडी बाबा तो गयो। मोदी जी ने अभी से पैदल कर दिया। कुल जमा देश की राजनीति जिस रास्ते पर चल पड़ी है उसके संकेत बेहद खतरनाक हैं. देश का लोकतंत्र ऐसे खतरनाक अनुभवों से गुजर चुका है. देश को सावधान हो जाना चाहिए,अन्यथा परेशानी तो हो ही सकती है.
दुर्भाग्य ये है कि देश में मुख्यमंत्रियों का कोई संगठन नहीं है अन्यथा इन दोनों घटनाओं के बाद सभी मुख्यमंत्री पीएमओ को भविष्य में इस तरह की घटनाएं न दोहराने के लिए चेतावनी भी देते. बेचारे मुख्यमंत्री चाहे वे किसी भी दल के हों किसी कठपुतली से ज्यादा नहीं हैं .मुख्यमंत्री चाहे किसी मठ का प्रधान हो या कैप्टन उसकी फजीहत की जा सकती है. उसे ताश के पत्तों की तरह फेंटा जा सकता है. ऐसे में मुख्यमंत्री पैदल चले या बांह पकड़कर किनारे किया जाये तो हैरान होने की नहीं बल्कि सावधान रहने की जरूरत है. सावधानी हटी और दुर्घटना घटी.
@ राकेश अचल
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