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मप्र में पुलिस कमिश्नर सिस्टम: युगांतकारी कदम

मध्यप्रदेश सरकार ने आखिरकार मध्यप्रदेश के दो बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की घोषणा कर दी है. अंग्रेजियत से मुक्ति और स्वदेशी का राग अलापने वाली भाजपा ने बड़े शहरों में कानून और व्यवस्था से निबटने के लिए कोई कारगर और नई प्रणाली विकसित करने के बजाय अंग्रेजों द्वारा 165 साल पहले शुरू की गयी प्रणाली को ही अंगीकार कर लिया. पिछले पचास साल से मध्यप्रदेश में इस प्रणाली को लेकर चिंतन चल रहा था. आप इसे एक युगांतकारी कदम कहकर मध्य प्रदेश सरकार की सराहना कर सकते हैं.

पुलिस कमिश्नर प्रणाली से सरकार के हाथ में कानून और व्यवस्था से निबटने के लिए कोई जादू की छड़ी हाथ आ जाएगी, ऐसा नहीं है, लेकिन प्रदेश जरूर एक उपनिवेशवादी कानून की जद में आ जाएगा. भाजपा सरकार ने ये प्रणाली जरूरत के चलते स्वीकार की है या किसी दबाव में, इसका पता आने वाले दिनों में चलेगा किन्तु इसका श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खाते में जरूर जाएगा. मध्यप्रदेश के लिए ये एक नए युग का आगाज भी माना जा सकता है.

मुझे याद है की मध्यप्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली की सुगबुगाहट 1980 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समय में शुरू हुई थी लेकिन वे अपने 05 साल के उल्लेखनीय शासन में इस प्रणाली को लागू नहीं कर पाए थे. मध्यप्रदेश की पुलिस 1854 में बनी थी लेकिन अब तक यहां पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का फैसला नहीं हो पाया था, इस लिहाज से ये एक ऐतिहासिक कदम है. मध्यप्रदेश में पुलिस पर सलाना 7177 करोड़ रुपया खर्च किया जाता है, फिर भी कानून और व्यवस्था की स्थिति बहाल रखने में पुलिस को दिन में तारे नजर आते हैं.

एक जमाना था जब मध्यप्रदेश में पुलिस में तीन शीर्ष पद होते थे, आज ये संख्या बढ़ते-बढ़ते 9 हो गयी है. पहले आई जी, डीआईजी और एसपी के पदनाम से काम चल जाता था किन्तु आईपीएस अधिकारियों की संख्या बढ़ी तो अब डीजीपी, एडिशनल डीजीपी, आईजी एआईजी, डीआईजी, एसएसपी, एसपी, एडिशनल एसपी और डीएएसपी तक भापुसे के अफसर विराज गए.

पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लागू करने से सरकारें लगातार कतराती रहीं क्योंकि इस प्रणाली को लेकर भापुसे और भाप्रसे कैडर के बीच टकराव की आशंका हर समय बनी हुई थी. ये आशंका आज भी है किन्तु मौजूदा सरकार ने इस जोखिम को उठाया है. मुख्यमंत्री शिवराज ने कहा- प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति बेहतर है पुलिस अच्छा काम कर रही है. पुलिस और प्रशासन ने मिलकर कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन शहरी जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है. भौगोलिक दृष्टि से भी महानगरों का विस्तार हो रहा है और जनसंख्या भी लगातार बढ़ रही है. इसी के चलते कानून और व्यवस्था के लिए नई चुनौतियां सामने आई हैं. इन मुश्किलों के समाधान और अपराधियों पर नियंत्रण के लिए हमने फैसला किया है कि प्रदेश के 2 बड़े महानगरों में राजधानी भोपाल और स्वच्छ शहर इंदौर में हम पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू किया जाए. इससे पुलिस को अपराध से निपटने में पहले से बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी.

कोलकता में 1856 में सबसे पहले लागू की गयी पुलिस कमिश्नर प्रणाली आज देश के 16 राज्यों के अनेक शहरों में है, वहीं एक दर्जन से अधिक राज्यों में ये प्रणाली नहीं है. पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने वाला मध्य प्रदेश 17 वां राज्य होगा. 07 केंद्र शासित प्रदेश भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली के सहारे चल रहे हैं. पुलिस कमिश्नर प्रणाली में बहुत कुछ नहीं बदलता सिवाय कुछ अधिकारों के.आज जो दाण्डिक अधिकार जिला कलेक्टर के पास हैं वे पुलिस कमिश्नर के हाथ में चले जायेंगे. पुलिस कमिश्नर कोई चाँद से नहीं आएगा, उसे भी मौजद आईजी या डीआईजी की सूची में से ही छांटा जाएगा. सवाल ये है कि क्या प्रणाली बदलने बाहर से कानून और व्यवस्था की तस्वीर बदल जाएगी ? या इसके लिए पुलिस का इकबाल बुलंद करना पडेगा ?

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में पुलिस कमिश्नर प्रणाली के रहते किस तेजी से अपराध बढे हैं, ये सारी दुनिया जानती है .दुनिया का हर अपराध मुंबई में होता है और संगठित रूप से होता है लेकिन उसे समूल नष्ट नहीं किया जा सका. उलटे अपराध की दुनिया में पुलिस कमिश्नर प्रणाली में शामिल अफसर भी आ गए. बहुत के खिलाफ अदालतों में प्रकरण हैं और बहुत के खिलाफ जांचें चल रहीं हैं. वजह ये है कि महाराष्ट्र में भी पुलिस का इकबाल आज भी सत्ता के हाथ में है. राजनीतिक दखल से पुलिस कमिश्नर प्रणाली भी मुक्त नहीं है .ऐसे में एक डेढ़ शताब्दी से ज्यादा पुराने सिस्टम के सहारे क़ानून और व्यवस्था में सुधार की कल्पना करना बेमानी है.

मध्यप्रदेश के अनेक आईपीएस अधिकारी पुलिस महानिदेशक पद तक पहुंचे लेकिन प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का उनका सपना अधूरा ही रहा. एक बहुत काबिल आपीएस अफसर स्वर्गीय जेएम कुरैशी अर्जुन सिंह सरकार जाने के बाद इस प्रणाली के लागू न होने से बहुत दुखी थे. उनका कहना था कि -‘ निजाम बदलने के साथ सब चीजें बदल जातीं हैं ‘. अर्थात कोई भी सिस्टम जनता की नहीं निजाम की जरूरत होता है. प्रदेश में 17 मुख्यमंत्री आये और चले गए लेकिन किसी ने पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का साहस नहीं दिखाया. शिवराज सिंह चौहान ने लेकिन ये दुस्साहस दिखाया है इसलिए उन्हें प्रणाम करना चाहिए .वे पुलिस का इकबाल बुलंद कर पाए या नहीं ये अलग प्रश्न है लेकिन उन्होंने प्रदेश में पुलिस को अंग्रेजों द्वारा विकसित पुलिस कमिश्नर प्रणाली सौंप दी है.

प्रदेश में पिल्स कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद भोपाल और इंदौर की कानून और व्यवस्था में कुछ न कुछ तब्दीली तो आना ही चाहिए अन्यथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का किया धरा अकारथ हो जाएगा. प्रदेश में सबसे घ्रणित अपराध भोपाल और इंदौर में ही होते आये हैं. भोपाल यदि घोटालों का शहर है तो इंदौर व्यभिचार का शहर. उसके हिस्से में देश के सबसे साफ़ शहर होने का तमगा भले ही हो किन्तु ‘ हनी ट्रेप काण्ड’ जैसे जलालत बाहर अपराध भी चस्पा हैं, यानि जो दिल्ली और मुंबई में होता है वो ही सब कुछ भोपाल और इंदौर में होता है. भोपाल में प्रकाश झा पिटते हैं तो इंदौर में नेता हाथ में चप्पल और क्रिकेट के बैट पुलिस पर तने दिखाई देते हैं. पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद इन सबके ऊपर रोक लगे तो बेहतर है. फिलहाल मई मध्यप्रदेश सरकार को बधाई और मध्यप्रदेश पुलिस को शुभकामनाएं देता हूँ.
@ राकेश अचल

 

 

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