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बड़ा खतरा: एंटीबायोटिक दवाओं का खत्म होने लगा असर, हर साल हो रही 12 लाख से ज्यादा लोगों की मौत

 

नेशनल न्यूज़। स्वास्थ्य के लिहाज से देखें तो वैश्विक स्तर पर रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (ए. एम. आर.) एक बड़ा खतरा बन चुका है। यह एक ऐसा रोग है जिसमें मामूली संक्रमण होने पर एंटी पेटिक दवाएं शरीर में असर करना बंद कर देती हैं और इंसान को जान से हाथ धोना पड़ता है। इंस्टिट्यूट फॉर हैल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आई.एच.एम.ई.) द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस हर साल सीधे तौर पर 12.7 लाख लोगों की जान ले रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक यह महामारी हर दिन औसतन 13,562 लोगों की जान ले रही है।

मौतों का आंकड़ा एड्स और मलेरिया से ज्यादा
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह आंकड़ा सालाना एड्स और मलेरिया से होने वाली कुल मौतों से भी कहीं ज्यादा है। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों का अनुमान है कि बाद ए. एम. आर. पर अभो ध्यान न दिया गया तो अगले 27 वषों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़कर सालाना एक करोड़ पर पहुंच जाएगा। हर साल 18 से 24 नवंबर को वैश्विक ए. एम. आर. जागरूकता सप्ताह के रूप में मनाया जाता है।

कैसे पैदा हुई समस्या
वर्ष 1928 में अब अलेक्जेंडर फ्लेमिंग में पहली एटांखायेंटिक पेसिलीन’ का अविष्कार किया तो वह खोज जीवाणुओं के संक्रमण से निपटने में जादू की छड़ी की तरह काम करने लगी। समय के सथ एंटीवायोटिक का धड़ल्ले से प्रयोग होने लगा। लेकिन एटीबायेटिक था-खाकर बैक्टीरिया अब इतना ताकतवर हो गया कि उस पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होने लगा। धीरे-धीरे यही प्रभाव अन्य सूक्ष्मजीवों के संदर्भ में भी देखने को मिलने लगा, यानी। एंटीफसल, पंटीवायरल और एंटीमलेरियल ड्रग्स (बवाओं) का भी असर कम होने लगा। एंटीबायोटिक प्रतिरोध ही नहीं बल्कि एंटीमाइ‌क्रोबियल प्रतिरोध (ए. एम. आर.) आज समस्त विश्व के लिए एक बड़ा खतरा है। इससे सामान्य से समान्य बीमारियों के कारण जी मौत हो सकती है।

‘सुपरबग’ जिन पर दवाएं हैं बेअसर
एंटीमाइ‌क्रोबियल प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मगाँवों को सुपरबगर के नाम से जाना जाता है। सुपस्था एक ऐसा सुक्ष्मजीवी है, जिस पर एंटीमाइक्रोबियल इम्स का प्रभाव नहीं पड़ता। एंटीबायोटिक समेत एंटीमाइक्रोबियल इन्स का अत्यधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। एंटीमाइक्रोचियल इम्स के अधिक और अनियमित प्रयोग से इसका प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जाता है। खला दे कि प्रत्येक व्यक्ति एक सीमित स्तर तक ही एंटीबायोटिक ले सकता है। अधिक एंटीबायोटिक लेने से मानव शरीर एंटीयायोटिक के प्रति अक्रियाशील हो जाता है .

कैंसर बड़ा खतरा है एंटीबायोटिक प्रतिरोध
एक अध्ययना के मुताबिक एंटीबायोटिक प्रतिरोध’ 2050 तक दुनिया की सबसे बड़ी महामारी छन जाएगी। गौरतलब है कि अभी हर खल कैसर से पूरी दुनिया में 80 लाख लोगों की मौत हो जाती थी, लेकिन 2050 तक एंटीबायोटिक प्रतिरोध की वजह से हर साल एक करोड़ लोगों की मौत होगी, यानी यह कैसर से भी बड़ा खतरा बन सकता है।

73 दवाओं का इस्तेमाल जानवरों में
कुछ समय पहले सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सो. एस.ई.) ने भी अपने अध्ययन में चेताया था कि पोल्ट्री इंडस्ट्री में एंटीबायोटिक दवाओं के बड़े पैमाने पर होते अनियमित उपयोग के चलते भारतीयों में भी एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स के मामले बढ़ रहे हैं। यह समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में बेची जाने वाली करीब 73 फीसदी एंटीबायोटिक्स दवाओं का उपयोग उन जानवरों में किया जा रहा है, जिन्हें भोजन के लिए पाला जाता है। वहीं बाकी 27 फीसदी एंटीबायोटिक्स को मनुष्यों की दवाओंऔर अन्य जगहों पर प्रयोग किया जाता है। सी.एस.ई. अपनी एक रिपोर्ट में भारत के पोल्ट्री फामों में बढ़ते एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को लेकर चिंता जाहिर कर चुका है। यहां न केवल मुर्गियों को बीमारियों से बचाने बल्कि उनके वजन में इजाफा करने के लिए भी इन दवाओं का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का खतरा बढ़ रहा है। इसी तरह सी. एस.ई. की रिपोर्ट में कृषि उत्पादों, शहद और मछलियों में भी एंटीबायोटिक पाए गए थे।

कैसे हो सकता है समस्या का निदान
सी.एस.ई. ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि इस समस्या से निपटने के लिए समाज के सभी स्तरों पर कदम उठाने की जरूरत है। यह डॉक्टरों, नीति निर्माताओं, ड्रग निर्माताओं, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र के साथ आम लोगों की भी जिम्मेदारी है कि वेइन एंटीबायोटिक के बढ़ते दुरुपयोग को रोकने में अपना सहयोग दें। “ब्रेसिंग फॉर सुपरबग” रिपोर्ट के मुताचिक रोगाणुरोधी प्रतिरोध की चुनौती पर पार पाने के लिए विविध क्षेत्रों में जवाबी कार्रवाई की जरूरत होगी। ऐिसा करते समय आम लोगों, पशुओं, पौधों और पर्यावरण के स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखना जरूरी है। देखा जाए तो इन सभी का स्वास्थ्य आपस में गहराई से जुड़ा है और यह सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

सी.एस.ई. ने जारी की है रिपोर्ट
सी.एस.ई. ने भारत में स्वास्थ्य पर रोगाणुरोधी प्रतिरोध के पड़ते प्रभावों और उसे रोकने एवं नियंत्रित करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा क्या कदम उठाए जा सकते हैं उसको लेकर एक नई रिपोर्ट भी जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार इस संकट से निपटने के लिए स्वास्थ्य, पशुधन, मास्य पालन, फसल और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में एकजुट प्रयासों की दरकार है।

 

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