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ज्ञान के अभिमान से हम कथा श्रवण करेंगे तो कभी भी जीवन का कल्याण नहीं करेगा : नारायण महाराज

गरियाबंद। सब चीज जानकर भी जो अनभिज्ञ होकर भगवान की कथा करने बैठे कथा उन्ही के ह्नदय में प्रवेश करता है ,ज्ञान के अभिमांन से हम कथा श्रवण करेंगे तो कथा कभी भी जीवन का कल्याण नही करेगा , जीवन मे दो चीजें है या तो रस मिलेगा या तो यश मिलेगा , यश के पीछे भगोगे तो रस से दूर हो जाओगे अगर सम्मान के पीछे भगोगे अगर कीर्ति के पीछे भगोगे तो रस से दूर हो जाओगे , और अगर रस के पीछे भागोगे तो यश तुम्हारे याद करके कदम चूमेगी , इसलिए हम सबको अपने जीवन मे रस को पकड़ना चाहिए। गरियाबंद के गाँधी मैदान में श्री हरि सत्संग मण्डल द्वारा आयोजित श्री भुतेश्वरनाथ शिव महापुराण के चौथे दिन प्रवचनकार राधे निकुंज आश्रम के श्री नारायण जी महाराज ने शिव जी कामदेव आख्यान दक्ष को दण्ड की कथा बताते हुए बताया।

दक्ष ने जब यज्ञ करवाया तो सबको आमंत्रण किया था यज्ञ में शामिल होने सब देवी देवताओं को कैलाश पर्वत से होकर जाते देख माँ सती ने प्रश्न किया प्रभु ये सब लोग कहाँ जा रहे हैं तो भगवान शिव जी मे माँ सती से कहा कि ये सब लोग तुम्हारे पिता जी के आमंत्रण पर यज्ञ में शामिल होने जा रहे हैं , माँ सती भी जिद करने लगी कि हम भी जाएंगे हमारे पिताजी के यज्ञ में भगवान शिव जी मां सती को समझाते हैं ये अनुचित है सती हमे बिना आमंत्रण के नही जाना चाहिए लेकिन मां सती ने अपने पति से कहा कि हे प्रभु शास्त्र के अनुसार चार ऐसे स्थान है जहाँ बिना आमंत्रण के भी जाना चाहिए , पहला अपने मित्र के यहाँ अपने मित्र के दुःख में जाना चाहिए सुख में जाना चाहिए आमंत्रण नही देखना चाहिए , दूसरा अपने पिता अर्थात भगवान के यहाँ ,तीसरा अपने पति के यहाँ भी बिना बुलाये जाना चाहिए और चौथा अपने गुरु के यहाँ कभी भी आमंत्रण नही देखना चाहिए , लेकिन भगवान शिव ने माँ सती से कहा कि इन चार के यहाँ भी तब जाना चाहिए जब कोई विरोध न हो रहा हो तभी जाना चाहिए , अगर विरोध के बावजूद जाओगे तो तुम्हारा कल्याण नहीं होगा , लेकिन समझाने के बाद भी मां सती चली गई अपने पिता के यज्ञ में , उन्होंने वहाँ देखा कि ब्रम्हा और विष्णु जी भी यज्ञ में नही आये है क्योंकि दक्ष ने महेश को यज्ञ में बुलाया ही नही है और पिता जी ने मेरे पति शिव का स्थान ही नही रखा है , अपने पति शिव ये अपमान को सहन न कर सकी और अपने दाहिने पैर के अंगूठे से ज्वाला प्रकट कर अपने आप को भस्म कर लिया ।

श्री हरि सत्संग मण्डल द्वारा आयोजित महापुराण में शिव भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है , आयोजको को पण्डाल बढ़ाना पड़ रहा है , जीवन्त झाँकी के साथ पार्वती जन्म हुआ और श्री नारायण जी महाराज के सुमधुर भजनों ने पण्डाल में बैठे श्रोताओँ को झूमकर नाचने के लिए विवश कर दिया पूज्य महाराज जी ने आज पार्वती जन्म का वर्णन किया। कहा कि ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा कि मेरे पुत्र सनकादी ने पित्रों की तीन कन्याओं में मेना को आशीर्वाद दिया कि वह विष्णु के अंशभूत हिमालय गिरि की पत्नी होंगी। उससे जो कन्या होगी वह पार्वती के नाम से विख्यात होगी। कहा कि श्री रामचरितमानस में भी आया है कि सती जी ने मरते समय भगवान हरि से यह वर मांगा था कि मेरा हर जन्म में शिवजी के चरणों में अनुराग रहे। इस कारण हिमाचल के घर जाकर पार्वती के रूप में प्रकट हुई।

पूज्य महाराज जी ने बताया शिव महापुराण सुनने से दुखों की निवृत्ति और मनुष्य की मुक्ति हो जाती है। आज का व्यक्ति भोग और मुक्ति दोनों चाहता है। जब तक मनुष्य को भोग और मुक्ति प्राप्त न हो तब तक मनुष्य संतुष्ट नहीं होता। शिव महापुराण की कथा हर सांसारिक सुख प्रदान करती है।
वह माँ बाप धन्य है जिनकी संतान बचपन से ही भगवान की भक्ति में लगी होती हैं क्यूंकि उनको पता है कि उनकी मृत्यु के बाद उनके पितृ को पूछने वाली उनकी संतान है।महाराज श्री ने बताया की पूर्व काल में जो तन की तपस्या कही गई है उसके द्वारा भागवत प्राप्ति मानी गई है। और कलयुग का व्यक्ति अब तन की तपस्या करने के लिए तैयार नहीं है। परन्तु ऐसा सूक्ष्म साधन जिस सूक्ष्म सरल साधन के माध्यम से जीव को सहजता के साथ ही भक्ति भी प्राप्त हो, भगवत दर्शन भी प्राप्त हो और मुक्ति भी प्राप्त हो। मनुष्य जीवन में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका पार्थिव शिवलिंग सेवा में समाधान नहीं है।

समस्या हर किसी के जीवन में है चाहे वो छोटी हो या बड़ी। विघ्न हर किसी के जीवन में आते हैं। ऐसे में दो चीजें महत्वपूर्ण हैं, पहला उस विघ्न में हम डटे रहें और दूसरा कुछ ऐसा कार्य जिससे वो बुरा समय कम प्रभाव दिखा कर चला जाये। भगवान शिव की उपासना आपको हर विघ्न से बचाती है।

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