नई दिल्ली: वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ 11 साल पुराने अवमानना मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. भूषण के वकील राजीव धवन ने मांग की कि इस मामले को संविधान पीठ को भेज दिया जाए. बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, इस मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है, मेरे पास समय की कमी है, इसलिए बेहतर होगा कि कोई और बेंच 10 सितंबर को मामले पर विचार करे. चीफ जस्टिस नई बेंच का गठन करेंगे. दरअसल, जस्टिस मिश्रा 2 सितंबर को रिटायर हो रहे हैं.
अवमानना का यह मामला साल 2009 में दिए भूषण के एक इंटरव्यू के चलते शुरू हुआ था. इस इंटरव्यू में भूषण ने पिछले 16 में से आधे पूर्व चीफ जस्टिस को भ्रष्ट कहा था. कोर्ट ने पहले इस मामले में कहा था कि जजों के बारे में ऐसा सार्वजनिक बयान किन परिस्थितियों में दिया जा सकता है, पहले यह देखना जरूरी है. कोर्ट ने पूछा था कि ऐसा करने से पहले क्या आंतरिक तौर पर शिकायत करना उचित नहीं होगा?
दूसरे अवमानना मामले पर भूषण को सजा मिलना संभव
दो ट्वीट के चलते सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के दोषी करार दिए गए वकील प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से मना कर दिया है. ऐसे में उनको सजा मिलनी तय हो गई है. जजों के बारे में 2 विवादित ट्वीट करने वाले प्रशांत भूषण को कोर्ट ने बिना शर्त माफी मांगने के लिए 24 अगस्त तक का समय दिया था. लेकिन उन्होंने लिखित जवाब दाखिल कर कहा है, “मुझे नहीं लगता कि दोनों ट्वीट के लिए माफी मांगने की जरूरत है.“
सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण की सजा पर आदेश सुरक्षित रख चुका है. अगर वह माफी मांगते तो कोर्ट उस पर विचार कर सकता था. लेकिन अब उनके इनकार के बाद सजा का एलान तय है. अवमानना के मामलों में अधिकतम 6 महीने तक की सजा हो सकती है. कोर्ट अगर भूषण को जेल भेजने जैसी कड़ी सजा ना देना चाहे तो उन पर मामूली आर्थिक दंड लगाने या उन्हें कुछ समय तक सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोकने जैसी सांकेतिक सजा भी दे सकता है.
दरअसल, 27 जून को किए एक ट्वीट में प्रशांत भूषण ने 4 पूर्व चीफ जस्टिस को लोकतंत्र के हत्या में हिस्सेदार बताया था. 29 जून को उन्होंने बाइक पर बैठे वर्तमान चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की तस्वीर पर ट्वीट किया था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे आम लोगों के लिए बंद कर दिए हैं. खुद बीजेपी नेता की 50 लाख की बाइक की सवारी कर रहे हैं. कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट 1971 की धारा 2(c)(i) के तहत लोगों की नज़र में न्यायपालिका के सम्मान को गिराने वाला बयान अवमानना के दायरे में आता है. ऐसे में कोर्ट ने मामले पर संज्ञान लेते हुए भूषण को नोटिस जारी कर दिया.’