(रवि भोई की कलम से)
कहते हैं छत्तीसगढ़ भाजपा में गुजरात का फार्मूला लागू किया जाएगा। याने स्थापित नेताओं की जगह बिलकुल नए और लो-प्रोफ़ाइल चेहरे सामने लाए जाएंगे। 28 अप्रैल को भाजपा हाईकमान ने छत्तीसगढ़ को लेकर भारी चिंतन और मनन किया और 2023 में सत्ता में वापसी की व्यूह रचना भी की। चर्चा है कि विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा नए चेहरे प्रोजेक्ट करेगी।
कहा जा रहा है कि आने वाले समय में अरुण साव, विजय बघेल, संतोष पांडे और संघ से सीधे जुड़े नेताओं को फायदा मिल सकता है। खबर है कि भाजपा अगले चुनाव में आदिवासी और ओबीसी नेतृत्व के साथ इन वर्गों का दिल जीतने पर ध्यान केंद्रित करेगी।
ओबीसी में साहू समाज पर ज्यादा फोकस करने की संभावना जताई जा रही है। माना जा रहा है कि अगले एक-दो महीने में छत्तीसगढ़ में भाजपा का नया स्वरूप सामने आ जाएगा।
नहले पर दहला
इसे कहते हैं नहले पर दहला। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 4 मई से जिलों के औचक निरीक्षण का प्लान बनाया तो मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने भी 4 मई से जिलों के दौरे की योजना बना ली। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरगुजा इलाके के बलरामपुर से अपने अभियान का आगाज करेंगे, तो स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव दंतेवाड़ा से दंतेश्वरी माता के दर्शन के साथ कार्यकर्ताओं से मेल-मुलाकात और विभागीय कामों की समीक्षा करेंगे। टीएस सिंहदेव के मैदान में उतरने से पहले मुख्यमंत्री ने नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ शिवकुमार डहरिया को उतार कर नहले पर दहला तो मारा। अब देखते हैं इसका राजनीतिक प्रतिफल क्या निकलता है।
राज्यसभा के लिए एक अनार सौ बीमार वाली कहावत
छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की दो सीटों के लिए कांग्रेस में भारी घमासान जैसी स्थिति बनने लगी है। कुछ लोग पी. चिदंबरम का नाम ले रहे हैं , तो कुछ लोग पी. एल. पुनिया का शिगूफा छोड़ रहे हैं। सतनामी समाज जबरदस्त दावेदारी ठोंक रहा है तो दूसरे वर्ग के लोगों की भी नजर उस पर है। कहते हैं दो सीटों में से एक तो बाहरी के खाते में चला जाएगा। एक पर स्थानीय को ले जाना कांग्रेस की मजबूरी होगी।
विधानसभा डॉ. चरणदास महंत राज्यसभा में जाने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं,पर राज्यसभा के लिए प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष और खनिज निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन, पार्टी के कोषाध्यक्ष और नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष रामावतार अग्रवाल से लेकर मुख्यमंत्री के सलाहकार विनोद वर्मा और रुचिर गर्ग का नाम हवा में तैर रहा है। अब देखते हैं राज्यसभा का दरवाजा किसके लिए खुलता है। फिलहाल तो एक अनार सौ बीमार वाली जैसी स्थिति है।
कलेक्टरी के लिए दांव फेल
कहते हैं एक महिला आईएएस का कलेक्टर बनने का दांव गड़बड़ा गया। चर्चा है कि सरकार महिला आईएएस को आदिवासी इलाके के एक बड़े जिले में कलेक्टर बनाने का मन बना चुकी थी, लेकिन उस जिले में पदस्थ कलेक्टर का गुणा-भाग ज्यादा काम कर गया और सरकार को फैसला बदलना पड़ा।
सरकार ने कलेक्टर नहीं बना पाने के एवज में महिला आईएएस को एक बड़े विभाग का मुखिया का काम अतिरिक्त रूप से सौंप दिया। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री के दौरे के बाद के फेरबदल में महिला आईएएस को जिला मिल जाएगा। सरकार ने महिला आईएएस इफ़्फ़त आरा को सूरजपुर का कलेक्टर बनाया है। कहते हैं एक और महिला आईएएस राजधानी से निकलकर जिले में जाना चाहती थीं, पर उनका भी दांवपेच फेल हो गया।
पद बढ़ा, नहीं बदली पोस्टिंग
कहते हैं न हर किसी का समय बदलता है, ऐसा ही कुछ स्टेट फारेंसिक साइंस लेबोरेटरीज के दिन चमक गए हैं। अब तक आमतौर पर राज्य में लोक अभियोजन के साथ स्टेट फारेंसिक साइंस लेबोरेटरीज के संचालक का काम आईजी स्तर के अधिकारी देखा करते थे। पहली बार संचालक स्टेट फारेंसिक साइंस लेबोरेटरीज के पद पर डीजी स्तर के अधिकारी को पदस्थ किया गया है।
भारतीय सीमा सुरक्षा बल में आईजी की जिम्मेदारी संभाल चुके 1990 बैच के आईपीएस राजेश कुमार मिश्रा को प्रतिनियुक्ति पर लौटने के बाद सरकार ने संचालक स्टेट फारेंसिक साइंस लेबोरेटरीज बनाया। उम्मीद थी कि कलगी के साथ राजेश कुमार मिश्रा की चमक-दमक भी बढ़ेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पद बढ़ा, परन्तु पोस्टिंग नहीं बदली।
पुलिस में बदलाव के मायने
बोलचाल में पूरे घर का बदल डालूंगा, बड़ा ही लोकप्रिय है, पर लोग पूरे घर का बदलाव करते हैं या नहीं, यह अलग बात है ,लेकिन इंस्पेक्टरों की तबादला सूची से ऐसा लगता है पुलिस महकमे ने पूरे घर का ही बदल डाला। पुलिस महकमे ने 300 से अधिक इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टरों की तबादला सूची पिछले दिनों जारी की, जिसमें कई जिलों में सभी इंस्पेक्टरों को बदल दिया गया है। बदलाव को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं है। अब देखते हैं घर को पूरे बदल डालने के बाद राज्य में पुलिसिंग कितनी मजबूत होती है और कानून-व्यवस्था पर कितना लगाम कसता है।
आकाश शर्मा बुलंदी पर
कहते हैं आकाश शर्मा छत्तीसगढ़ युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बन सकते हैं। आकाश शर्मा मुख्यमंत्री के एक करीबी नेता के रिश्तेदार बताए जाते हैं। आकाश शर्मा एनएसयूआई के भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ युवक कांग्रेस के अध्यक्ष की दौड़ में पहले भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव भी थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया।
युवक कांग्रेस के अध्यक्ष की दौड़ से हटने को देवेंद्र यादव के घटते कद के रूप में देखा जा रहा है। खबर है कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री के आतिथ्य में भिलाई में आयोजित एक कार्यक्रम में देवेंद्र यादव की अनुपस्थिति को लोग बड़ी गंभीरता से ले रहे हैं और उसके तरह-तरह के मायने निकाले जा रहे हैं।
जगदीश सोनकर और राहुल वेंकट के आए अच्छे दिन
2013 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. जगदीश सोनकर और 2015 बैच के आईएएस अधिकारी डी. राहुल वेंकट मंत्रालय से फील्ड में चले गए हैं। सीधी भर्ती वाले दोनों आईएएस दरकिनार थे, जबकि उनके बैच वाले कलेक्टर बन गए थे। डॉ. सोनकर नए बनने वाले खैरागढ़ और राहुल वेंकट सारंगढ़ जिले के ओएसडी बनाए गए हैं। जिला अस्तित्व में आने पर वहां के कलेक्टर बन जाएंगे।
प्रमोटी आईएएस पीएस ध्रुव का भी कलेक्टरी में नंबर लग गया। नए जिलों के बहाने 2014 बैच के आईएएस एस. जयवर्धन 2015 बैच की आईएएस नूपुर राशि पन्ना की भी लाटरी लग गई।
संजय शुक्ला कब आएंगे अरण्य भवन
1987 बैच के आईएफएस संजय शुक्ला पीसीसीएफ और वन बल प्रमुख बनकर ही अरण्य भवन में बैठेंगे या फिर उसके पहले आएंगे, यह सवाल लोगों के मन में उमड़ रहा है। 1985 बैच के आईएफएस राकेश चतुर्वेदी इस साल सितंबर में रिटायर हो जाएंगे। अभी वरिष्ठता में श्री चतुर्वेदी के बाद संजय शुक्ला का नाम है और उनका पीसीसीएफ और वन बल प्रमुख बनना तय माना जा रहा है। शुक्ल करीब 11 महीने ही इस पद पर रहेंगे। कुछ माह पहले हवा उड़ गई थी कि श्री चतुर्वेदी पोस्ट रिटायरमेंट का कोई पद लेकर समय से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृति ले लेंगे और उनकी जगह संजय शुक्ला की ताजपोशी हो जाएगी, जिससे उन्हें वन बल प्रमुख के तौर पर काम करने के लिए कुछ ज्यादा समय मिल जाय। चतुर्वेदी दांवपेच समझ गए और संजय शुक्ला के लिए कुर्सी खाली नहीं की। अब देखते हैं आगे क्या होता है।
“बासी” और “बोरे” की राजनीति
वैसे तो “बासी” और “बोरे ” छत्तीसगढ़ के खान-पान की संस्कृति में शामिल है। गर्मी में ही नहीं, दूसरे सीजन में भी “बोरे” , जिसे छत्तीसगढ़ में कहीं-कहीं “पेज” भी कहते हैं, लोग खाते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे चर्चा में ला दिया है। उम्मीद है कि एक मई श्रमिक दिवस के दिन “बासी “और “बोरे” खाने के अभियान से इस संस्कृति को पर लगेंगे और छत्तीसगढ़ की इस संस्कृति पर टिप्पणी करने वाले मुंह की खाएंगे।
मुख्यमंत्री बघेल सत्ता में आने के बाद से ही छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परंपरा और पहचान को सम्मान दिलाने में लगे हैं। अब देखते हैं लोग “बासी” और “बोरे” को अपने खानपान में किस तरह स्थान देते हैं।
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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