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पुलवामा अटैक की चौथी बरसी आज : 40 जवानों की शहादत की टीस आज भी बरक़रार

नेशनल न्यूज़। 14 फरवरी 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ने विस्फोटकों से लदे वाहन से CRPF जवानों की बस को टक्कर मार दी, जिसमें 40 जवान शहीद हो गये और कई गंभीर रूप से घायल हुए थे. पुलवामा में हुए आतंकी हमले की आज चौथी बरसी है. घटना भले चार साल पुरानी है, लेकिन उसके जख्म आज तक हरे हैं. हमले के बाद सरकार की नीतियों ने कड़ा रुख किया और आतंक की कमर तोड़ने के कई अभियान चलाए. सीआरपीएफ के काफिले में 78 बसें थीं, जिनमें लगभग 2500 सैनिक जम्मू से श्रीनगर जा रहे थे. देश की सशस्‍त्र सेनाओं ने सीमापार से हुए इस हमले का मुहंतोड़ जवाब दिया, लेकिन उन जवानों की शहादत की टीस आज भी बरकरार है. पुलवामा आतंकी हमले के कुछ दिनों बाद भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट स्थित जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी प्रशिक्षण शिविर पर एयरस्ट्राइक किया.

अटैक पर आई एक किताब में कई अहम तथ्यों का खुलासा किया गया है. इसके मुताबिक आत्मघाती हमलावर द्वारा विस्फोट में उड़ा दी गई बस के ड्राईवर जयमल सिंह को उस दिन गाड़ी नहीं चलानी थी और वो किसी अन्य साथी की जगह पर आए थे. भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के अधिकारी दानेश राणा वर्तमान में जम्मू कश्मीर में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक हैं. उन्होंने पुलवामा हमले से जुड़ी घटनाओं पर ‘एज फॉर एज दी सैफ्रन फील्ड’ नामक किताब लिखी थी, जिसमें हमले के पीछे की साजिश का जिक्र किया गया है. साजिशकर्ताओं के साथ की गई पूछताछ, पुलिस के आरोप पत्र और अन्य सबूतों के आधार पर राणा ने कश्मीर में आतंकवाद के आधुनिक चेहरे को रेखांकित करते हुए 14 फरवरी 2019 की घटनाओं के क्रम को याद करते हुए लिखा है कि कैसे काफिले में यात्रा कर रहे CRPF के जवान रिपोर्टिंग टाइम से पहले ही आने लगे थे.

नियम के अनुसार, अन्य ड्राइवरों के साथ पहुंचने वाले आखिरी लोगों में हेड कांस्टेबल जयमल सिंह शामिल थे. ड्राइवर हमेशा सबसे आखिरी में रिपोर्ट करते हैं. उन्हें नींद लेने के लिए एक्स्ट्रा आधे घंटे की अनुमति है, क्योंकि उन्हें मुश्किल यात्रा करनी पड़ती है. राणा ने लिखा है, ‘जयमल सिंह को उस दिन गाड़ी नहीं चलानी थी, वह दूसरे सहयोगी की जगह पर आए थे.

हार्पर कॉलिन्स इंडिया द्वारा प्रकाशित किताब में कहा गया है, ‘हिमाचल प्रदेश के चंबा के रहने वाले हेड कांस्टेबल कृपाल सिंह ने छुट्टी के लिए आवेदन किया था, क्योंकि उनकी बेटी की जल्द ही शादी होने वाली थी. कृपाल को पहले ही पंजीकरण संख्या HR 49 F-0637 वाली बस सौंपी गई थी और पर्यवेक्षण अधिकारी ने जम्मू लौटने के बाद उन्हें छुट्टी पर जाने के लिए कहा था. इसके बाद जयमल सिंह को बस ले जाने की जिम्मेदारी मिली.’ राणा लिखते हैं, ‘वह एक अनुभवी ड्राइवर था और कई बार NH 44 पर गाड़ी चला चुका था. वह इसके ढाल, मोड़ और कटावों से परिचित था. 13 फरवरी की देर रात, उसने अपनी पत्नी को पंजाब में फोन किया और उसे अंतिम समय में अपनी ड्यूटी बदलने के बारे में बताया. यह उनकी अंतिम बातचीत थी.’

जवानों में महाराष्ट्र के अहमदनगर के कांस्टेबल ठाका बेलकर भी शामिल थे. उसके परिवार ने अभी-अभी उसकी शादी तय की थी और सारी तैयारियां चल रही थीं. बेलकर ने छुट्टी के लिए आवेदन किया था, लेकिन अपनी शादी से ठीक 10 दिन पहले, उसने अपना नाम कश्मीर जाने वाली बस के यात्रियों की सूची में पाया. राणा लिखते हैं ‘लेकिन जैसे ही काफिला निकलने ही वाला था, किस्मत उस पर मेहरबान हो गई. उसकी छुट्टी अंतिम समय में स्वीकृत हो गई थी! वह जल्दी से बस से उतर गया और मुस्कुराया और अपने सहयोगियों को हाथ हिला कर अलविदा कहा. उसे क्या पता था कि यह अंतिम समय होगा.’ जयमल सिंह की नीले रंग की बस के अलावा, असामान्य रूप से लंबे काफिले में 78 अन्य वाहन थे, जिनमें 15 ट्रक, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस से संबंधित दो जैतूनी हरे रंग की बसें, एक अतिरिक्त बस, एक रिकवरी वैन और एक एम्बुलेंस शामिल थे.

 

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