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पालक भाजी और पलास के फूलों से बनाए जा रहे हैं, होली के लिए रंगीन अबीर-गुलाल

० मब्स की महिलाएं जैविक तरीके से तैयार कर रही गुलाल

रायपुर।जहां एक ओर होली का त्यौहार दशकों से भारत के हर उम्र के लोगों के लिए नया उत्साह और उमंग के साथ रंगों के प्रति एक खास अनुभूति लेकर आता है तो वहीं दूसरी ओर होली के इस त्योहार में रासायनिक रंगों के प्रयोग से लोगों को त्वचा के संक्रमण का खतरा भी बना रहता है। होली के इस ख़ास मौके को बिना किसी भय से मनवाने के लिए जिले के उदयपुर विकासखंड के ग्राम परसा में स्थित महिला उद्यमी बहुउद्देशीय सहकारी समिति (मब्स) की महिलाओं ने बीड़ा उठाया है। मब्स जो की क्षेत्र में कई तरह के शुद्ध खाद्य उत्पादों के उत्पादक हैं द्वारा जैविक गुलाल/अबीर भी तैयार किया जा रहा है।

केमिकल युक्त रंगो के नुकसान

केमिकल युक्त रंगों से आंखों की एलर्जी, अंधापन, त्वचा में जलन, त्वचा के कैंसर और यहां तक कि गुर्दे की विफलता का कारण बन सकते हैं। वहीं युवाओं में केमिकल युक्त मेटल कलर पेस्ट बहुत लोकप्रिय होता है जिसके हानिकारक प्रभावों को देखते इसे अब अत्यधिक हतोत्साहित किया जा रहा है।

लाल रंग चुकंदर और हरा रंग पालक भाजी से कर रहे तैयार, सुगन्धित करने हो रहा फूलों का उपयोग

रंग बिरंगे रोगों के लिए इन्होंने लाल रंग के लिए चुकन्दर, पीले के लिए हल्दी, हरे के लिए पालक, पलाश के फूल से गुलाबी इत्यादि रंग निकालने के साथ-साथ इन्हें सुगंधित करने के लिए प्राकृतिक तरीकों जैसे सुगन्धित फूलों और गुलाब जल इत्यादि का प्रयोग किया है। इस तरह इन्हें वांछित रंग के गुलाल के आधार के साथ मिलाकर दो से तीन दिनों के लिए धूप में सुखाकर बारीक मिश्रित किया जाता है। इस तरह कई प्रक्रियाओं से तैयार गुलाल / अबीर अब बाजार में बिकने के लिए तैयार हो चुका है।

ऑनलाइन वीडियो देखकर सीखी प्रक्रिया

अपने उत्पादों की शुद्धता के लिए प्रख्यात इस महिला समिति की महिलाओं ने जहाँ चाह वहां राह की कहावत को फलीभूत किया है। समिति की इन महिलाओं ने किसी बाहरी प्रशिक्षण के बिना ही ऑनलाइन वीडियो देखकर जैविक गुलाल को बनाने की प्रक्रिया सीखी है। और बड़े ही विश्वास के साथ प्राकृतिक रूप से उपलब्ध सब्जियों और फूलों के माध्यम से प्राकृतिक रंगों को निर्मित किया है।

मुनाफे से काफी है उत्साहित

मब्स की अध्यक्ष श्रीमती अमिता सिंह ने बताया कि “इसके निर्माण के लिए आवश्यक कच्चा सामग्री की उपलब्धता गांव में ही है,और थोड़े प्रयास से ही उत्पाद तैयार हो जाता है। इस काम से महिलाएं बहुत उत्साहित हैं। वहीं इसमें ज्यादा निवेश की आवश्यकता नहीं है जबकि मुनाफा काफी अच्छा है। यह पूरी तरह ऑर्गेनिक है और त्वचा के लिए भी सुरक्षित इसलिए उन्हें कंपनी और गांव से ही कई ऑर्डर मिल चुके हैं। साथ ही एक दूसरे के मार्फत प्रचार होने से उन्हें जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है।”

मब्स बारे में…

अदाणी फाउंडेशन द्वारा पोषित और मार्गदर्शन में संचालित, महिला उद्यमी बहुउद्देशीय सहकारी समिति – परसा, प्रदेश के सरगुजा जिले के उदयपुर विकासखंड के ग्राम परसा, बासेन, साल्ही, हरिहरपुर, फतेहपुर और घाटबर्रा सहित 6 गांवों की स्वसहायता (एसएचजी) समूहों की एक मर्यादित सहकारी समिति है। जिसमें 250 महिलाओं को इसकी सदस्यता प्राप्त है। मब्स द्वारा आसपास के 60 से अधिक स्थानीय महिलाओं को आजीविका की सहायता प्रदान की गयी है। यही नहीं मब्स इन सभी एसएचजी सदस्यों की सामाजिक स्थिति में सुधार के साथ साथ उनकी कौशल वृद्धि के लिए प्रशिक्षण भी प्रदान करता है। जो महिला प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मब्स से जुड़ी है वह अपने कौशल और काम करने की क्षमता के आधार पर रूपए 3000 से 12,000 तक की मासिक आय अर्जित करती है। जिससे वे आर्थिक रूप से अपने परिवार के साथ साथ अब व्यक्तिगत तौर पर भी आत्मनिर्भर बन रहीं हैं। मब्स द्वारा क्षेत्र में व्यावसायिक इकाईयां जैसे मध्याह्न भोजन प्रबंधन, मसाला प्रोसेसिंग इकाई, डेयरी व दुग्ध उत्पादन केंद्र, सैनिटरी पैड उत्पादन इकाई तथा वाइट फिनाइल व हैंडवॉश जेल उत्पादन इकाई संचालित किया जा रहा है।

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