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महासमुंद लोकसभा सीट विश्लेषण: जातिगत समीकरण और स्थानीय मुद्दे निभाएंगे महत्वपूर्ण भूमिका

जीवन एस साहू

गरियाबंद। लोकसभा चुनाव के मतदान की तारीख जैसे–जैसे नजदीक आ रही है, प्रत्याशी अपने पक्ष में माहौल तैयार करने में जुटे हुए हैं। बात करें महासमुंद लोकसभा सीट अंतर्गत गरियाबंद जिले की तो यहां चुनावी सरगर्मी तेज है। पिछले कुछ दिनों से यहां मौसम का मिजाज बदला–बदला है, लेकिन राजनीतिक पारा अपने चरम पर है। महासमुंद लोकसभा सीट सबसे पुरानी सीटों में से एक है। यहां से बड़े–बड़े दिग्गज चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच रोमांचक मुकाबला होने वाला है। इसमें जातिगत समीकरण और स्थानीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद महासमुंद लोकसभा सीट से एक बार कांग्रेस तो लगातार साहू प्रत्याशी भाजपा का परचम लहराते रहे।

–साहू प्रत्याशी के जरिए क्या कांग्रेस अपनी परम्परागत सीट हासिल करेगी ?

1957 से अब तक इस सीट पर 18 सांसद बने। सबसे ज्यादा 7 बार सांसद बनने का रिकार्ड स्व. विद्याचरण शुक्ल के नाम दर्ज है। उन्होंने 1989 का चुनाव जनता दल के बैनर से चुनाव जीतकर भाजपा व कांग्रेस दोनों को लोहा मनवाया था। 1991 में भाजपा ने चन्द्रशेखर साहू को प्रत्याशी बनाया लेकिन संत पवन दीवान की लोकप्रियता को कांग्रेस ने भुना लिया। 1996 में भी दोनों का सामना हुआ इस बार भी कांग्रेस जीती, तीसरी बार 1998 के चुनाव में पवन दीवान को मात देने में चन्द्रशेखर साहू सफल रहे। कांग्रेस ने 1999 में श्यामाचरण शुक्ल को तो 2004 में अजीत जोगी को उतार कर सीट बचाती रही। लेकिन 2009 के बाद लगातार साहू प्रत्याशी महासमुंद सीट पर भाजपा का परचम लहराते रहे। 2009 व 2014 में चन्दूलाल साहू 2019 में चुन्नीलाल साहू सांसद बने।


महासमुंद लोकसभा सीट के लिए जातिगत समीकरण भी मायने रखता है। ओबीसी वर्ग का इस सीट पर खासा दबदबा माना जाता है। इसके चलते प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस दोनों ने यहां से ओबीसी वर्ग के प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा से रूपकुमारी चौधरी और कांग्रेस से पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू दोनों ही ओबीसी वर्ग से आते हैं। ताम्रध्वज साहू चार बार विधानसभा और एक बार सांसद का चुनाव जीत चुके हैं। वहीं रूपकुमारी चौधरी बसना विधायक रह चुके हैं।

महासमुंद लोकसभा सीट कई सियासी समीकरणों के बीच दिग्गजों की हार का साक्षी रहा है। पिछले तीन चुनावों से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। 2009 में कांग्रेस उम्मीदवार मोतीलाल साहू के हार के बाद से यह सीट भाजपा के पाले में है। खासबात ये है कि राज्य बनने के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल भाजपा के उम्मीदवार थे उनके सामने कांग्रेस ने अजीत जोगी को चुनाव में उतारा। दुर्घटना में घायल हो जाने के बावजूद जोगी जीते। इसके बाद से यह सीट भाजपा जीत रही है। कांग्रेस ने 2014 में फिर से एक बार भाजपा के चन्दूलाल साहू के सामने अजीत जोगी को चुनाव में उतारा, इस चुनाव में 11 चन्दूलाल को उतारने की रणनीति भी कांग्रेस को जीत नही दिला सकी।

–2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से ज्यादा वोट कांग्रेस के पास–
इस लोकसभा सीट में 8 विधानसभा क्षेत्र है। दोनों दल से 4 – 4 विधायक हैं, कांग्रेस से खल्लारी, धमतरी, बिंद्रानवागढ़, सरायपाली वहीं भाजपा से कुरूद, बसना, राजिम, महासमुंद है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुल 6 लाख 97 हजार 187 वोट हासिल किए तो वहीं भाजपा ने 6 लाख 87 हजार 909 मत हासिल किए। देखा जाए तो कांग्रेस ने 9278 मत ज्यादा हासिल किए हैं।

–मोदी की गारंटी नही चला तो फायदा उठा सकती है कांग्रेस–
महासमुंद लोकसभा क्षेत्र साहू समाज का वोट बैंक है राजिम, धमतरी, महासमुंद, खल्लारी व कुरूद इन पांच विधानसभा सीटो पर साहू समाज का ज्यादा प्रभाव है, इस बार सांसद चुन्नीलाल साहू दो बार के सांसद चंदूलाल साहू, पूर्व मंत्री चन्द्रशेखर साहू आदि नेताओं को दरकिनार कर पार्टी ने महिला कार्ड खेल दिया। कांग्रेस अब कौन सी रणनीति बनाकर मोदी की गारंटी को मात देगी ?

महासमुंद लोकसभा सीट पर अन्य दलों के दावेदार व निर्दलीय है, लेकिन प्रमुख मुकाबला भाजपा व कांग्रेस में है। कांग्रेस से ताम्रध्वज साहू व भाजपा से रूपकुमारी चौधरी के बीच मुकाबला है। लोकसभा में बिंद्रानवागढ़ क्षेत्र से भाजपा को हमेशा लीड मिलती रही है, लेकिन क्षेत्रवासी सांसदों की निष्क्रियता से नाराज है। वहीं बिंद्रानवागढ़ विधानसभा में इस बार कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात दी है। अब ऐसे में इस बार लोकसभा चुनाव में क्या है जनता का मूड यह तो परिणाम आने के बाद साफ हो पाएगा।

महासमुंद लोकसभा ऐसी सीट है, जहां पर स्थानीयता और जातिवाद का मुद्दा हमेशा ही बना रहता है और यह चुनाव के वक्त हावी भी हो जाता है। आजादी के बाद से अब तक महासमुंद लोकसभा सीट में 18 बार चुनाव हो चुके हैं। इसमें से 12 बार चुनाव कांग्रेस ने जीता है। पांच बार बीजेपी का दबदबा इस लोकसभा सीट पर बना रहा है। इन 18 चुनाव के बीच में एक बार 1989 के चुनाव में विद्या चरण शुक्ल जनता पार्टी से चुनाव जीते थे। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी इस सीट से प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

गरियाबंद जिले में दो विधानसभा सीट राजिम और बिंद्रानवागढ़ आते हैं। जिसमें इस बार राजिम से जोगी कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए रोहित साहू विधायक हैं तो भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले बिंद्रानवागढ़ विधानसभा में कांग्रेस के जनक राम ध्रुव विधायक हैं। कांग्रेस यहां 15 साल से जीत के लिए संघर्ष करते आ रही थी। बात करें मतदाताओं की तो जिले में कुल 4 लाख 60 हजार 139 मतदाता हैं, जिसमें पुरुष 2 लाख 25 हजार 766 व महिला 2 लाख 34 हजार 364 अन्य 9 है। जिले में पुरुष मतदाताओं की तुलना महिला मतदाता अधिक है, ऐसे में दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टी भाजपा और कांग्रेस महिला वोटरों को साधने में लगी हुई है।

लोकसभा चुनाव में एक बार फिर स्थानीय मुद्दे प्रभावी नजर आ रहे हैं। बिंद्रानवागढ़ विधानसभा क्षेत्र में पिछले दिनों भाजपा ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का चुनावी सभा आयोजित कर स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा यह चुनाव ‘मोदी की गारंटी’ और कमल निशान को आगे रखकर चुनाव लड़ रही है, साथ ही जनसभा में अबकी बार 400 पार और एक बार फिर से मोदी सरकार फिर से के नारा को प्रभावी बनाने जोर दे रही है। भाजपा लगातार कार्यकर्ता सम्मेलन और बूथ प्रबंधन पर भी फोकस कर रही है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव से पहले महतारी वंदन योजना लागू करके महिला मतदाताओं को साधने का काम किया है, इसका असर भी देखने को मिल रहा है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस में भी बैठकों का दौर शुरू हो गया है। बिंद्रानवागढ़ विधायक जनक राम ध्रुव गांव–गांव जाकर लगातार जनसंपर्क कर कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में जनता से आशीर्वाद मांग रहे हैं। कांग्रेस भी ‘नारी न्याय गारंटी’ के बूते महिला मतदाताओं को साधने में जुटी हुई है। ऐसे में गरियाबंद जिले की राजनीतिक परिदृश्य बताती है कि मतदाताओं को प्रत्याशी से ज्यादा नीतियों व नेतृत्व पर भरोसा है।

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