Close

कोरोना संकट के बीच कैसे सुधरेगी इकॉनमी ? एक्सपर्ट्स बोले- नोट छापकर गरीबों में बांटे सरकार

नई दिल्ली: कोरोना की मार सभी पर पड़ी है लेकिन इस वक्त देश की अर्थव्यवस्था पर जो संकट आया है, उससे बाहर निकलने का आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक एक सबसे बड़ा रास्ता है, जनता तक ज्यादा से ज्यादा पैसा पहुंचाया जाए. सरकार को कोरोना की पहली लहर के दौरान देश की 80 करोड़ आबादी तक राशन पहुंचाना पड़ा. अब कोरोना की दूसरी लहर के बाद इतने लोगों के खाते तक पैसे पहुंचाने की जरूरत है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह सरकार को तय करना है कि वो जनता के खाते में कब और कैसे पैसे पहुंचाती है और इसके लिए कितने नोट छापेगी.

आपको याद होगा प्रधानमंत्री बनने के बाद 15 अगस्त 2014 को नरेंद्र मोदी ने लाल किले से जनधन योजना की शुरुआत की थी. इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा था, ”इस योजना के माध्यम से हम देश के गरीब से गरीब लोगों को बैंक खाते की सुविधा से जोड़ना चाहते हैं. करोड़ों परिवारों के पास मोबाइल है लेकिन बैंक खाता नहीं है. देश के आर्थिक संसाधन गरीब के काम आएं, इसकी शुरुआत यहीं से होती है.”

प्रधानमंत्री ने कहा था कि खाते खुलने से देश के आर्थिक संसाधन देश के काम आएंगे. आज कोरोना काल में प्रधानमंत्री कही उसी बात का दूसरा हिस्सा अहम हो जाता है. प्रधानमंत्री ने कहा था, ”प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत जो खाता खोलेगा उसे डेबिट कार्ड दिया जाएगा. और डेबिट कार्ड के साथ हरह गरीब परिवार को एक लाख रुपये का बीमा सुनिश्चित किया जाएगा. जिससे उसके जीवन में कोई संकट आया तो उसके परिवार के लोगों को एक लाख रुपये का बीमा मिल सकेगा.”

प्रधानमंत्री ने जनधन खाते के जरिए देश की बड़ी आबादी को जोड़ने की बात कही और बाद में उस पर अमल करते हुए सारी रियायतों और फायदों को इन्हीं जनधन खातों में बैंक ट्रांसफर के जरिए पहुंचाया.

कोरोना काल के इस मुश्किल वक्त में आर्थिक जानकार कह रहे हैं कि सरकार को अब ज्यादा से ज्यादा जन जन के खाते में सीधे धन डालने का वक्त आ चुका है. यही वो वक्त है जब सरकार गरीब जनता के खाते में धन डालने की जरूरत है. आर्थिक जानकार अजय बग्गा कहते हैं, ”गरीब तबके को एक सुरक्षा तंत्र प्रदान किया जाए, सीधे उनकी जेब में पैसे डाले जाएं ताकि वो खुद बचा पाएं. खाद्य पदार्थ सरकार जरूर पहुंचा रही है, यह बहुत अच्छा लेकिन पैसों की भी जरूरत है. जैसे अमेरिका ने 1400 डॉलर हर अमेरिकी के खाते में डाले. हॉन्गकॉन्ग ने भी ऐसा ही किया, यूरोप में कई जगहों पर ऐसा किया. ऐसे ही भारत को गरीब तबके लिए एक सुरक्षा तंत्र तैयार करना चाहिए.”

देश में कोरोना की वजह से जिस तरह से डीजीपी गिरी है, वो जानकारों के मुताबिक सौ साल में पहली बार होने वाली एक घटना की वजह से है. इसका तुलना आम वक्त से नहीं की जा सकती. अजय बग्गा कहते हैं, ”कोरोना की महामारी जो सौ सालों में पहली बार आयी है, इसके चलते सरकार को लॉकडाउन लगाने पड़े. इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी आया. इसका विश्लेषण किसी दूसरे समय के साथ करना ठीक नहीं रहेगा.”

कोरोना की घटना भले ही सौ साल में एक बार हुई हो लेकिन जो लोग इसकी आर्थिक मार झेल रहे हैं, उनकी जिंदगी तो यही इकलौती है. इस वक्त अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाते हुए आम जनता की जंदगी जीने लायक बनाने की जिम्मेदारी सरकार की है. इसके लिए जरूरी है कि सरकार ज्यादा से ज्यादा नोट छापे और गरीबों के खातों में डाले.

आर्थिक जानकार शरद कोहली के कहते हैं, ”बहुत सारे विकसित देशों ने खूब धड़ल्ले से नोट छापे, और सिर्फ छापे ही नहीं बल्कि लोगों को दिए भी. हमने सुना है कि अमेरिका ने 14 सौ डॉलर तक दिए हैं.”

अमेरिका ने कोरोना काल में डॉलर छापे और उसे सीधे जनता के खाते में ट्रांसफर कर दिया. कई दूसरे यूरोपिय देशों ने भी ऐसा ही किया. ऐसे में अगर भारत सरकार भी ज्यादा नोट छापने का फैसला लेती है तो जानकारों की राय में इसे अच्छा ही माना जाएगा. लेकिन फिर भी ध्यान रखने की जरूरत होगी.

शरद कोहली के मुताबिक जब नोट छापने पर आएंगे तो यह उतनी ही मात्रा में छापे जाएंगे जिससे कि महंगाई या फिर सरकार के खर्च की नोटबुक बिगड़ ना जाए. क्योंकि अगर वो बिगड़ जाएगी तो महंगाई बढ़ सकती है. पेट्रोल-डीजल के दाम और बढ़ सकते हैं, डीजल ऐसी चीज है जो सारी महंगाई बढ़ाता है.

नोट छापने का सुझाव तो सार्वजनिक हो सकता है लेकिन अगर सरकार इस पर फैसला लेती है तो वो गोपनीय ही होगा. शरद कोहली कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि इसे सार्वजनिक किया जाएगा. मुझे यह भी लगता है कि इसे बहुत सीमित स्तर पर किया जाएगा.

बता दें कि ऐसा नहीं कि नोट छापने से सभी संकट दूर हो जाएंगे. देश में तत्काल दूसरे ऐसे आर्थिक कदम भी उठाने की जरूरत है जिससे कि देश की सबसे बड़ी गरीब आबादी को कोरोना की बेरहम मार से आजादी मिल सके. शरद कोहली कहते हैं कि सरकार को टैक्स घटाने की जरूरत है. पेट्रोल-डीजल की ही बात करें तो इस पर 55-60% तक टैक्स है. राज्य सरकारें और केंद्र सरकार उन टैक्स को कम करते हैं या फिर इसे जीएसटी में ले आते हैं तो इससे लोगों को राहत मिलेगी.

 

यह भी पढ़ें- दही के साथ इन खाद्य सामग्रियों को तुरंत खाना छोड़ दें, वरना सेहत के लिए हो सकता है जोखिम

One Comment
scroll to top