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कही-सुनी ( 13 JUNE-21): सिलगेर की घटना और राज्यपाल

samvet srijan

(रवि भोई की कलम से)


कहते हैं छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके बस्तर के सिलगेर में हुई घटना को लेकर बड़ी दुखी हैं। माना जा रहा है कि यहां सीआरपीएफ कैंप के खिलाफ आदिवासियों के प्रदर्शन और फिर जवानों की गोली से तीन लोगों की मौत को राज्यपाल सुश्री उइके आदिवासी अत्याचार के तौर पर देख रही हैं। बस्तर आदिवासी इलाका है। यहां पांचवीं अनुसूची और पेशा कानून के चलते राज्यपाल को व्यापक अधिकार हैं। कहा जा रहा है राज्यपाल को विश्वास में लिए और जानकारी दिए बिना सरकार ने कदम उठा लिया। बस्तर राज्य का घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र है और वहां नक्सलियों के पैर उखाड़ने के लिए सरकार कई तरह की रणनीति बना रही है।

लोगों का मानना है कि राज्य के संविधान प्रमुख की सोच और सरकार की दिशा अलग होने का संदेश अच्छा नहीं जा रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि राज्यपाल ने केंद्र सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में सरकार के कदम के बारे में प्रतिकूल टिप्पणी की है। राज्य के चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कालेज के अधिग्रहण के लिए राज्यपाल ने जिस तरह महाधिवक्ता और स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव को राजभवन तलब कर निर्देश दिए, उससे साफ है कि वे एक्शन में हैं। अब देखते हैं सिलगेर मुद्दे पर राज्यपाल का एक्शन क्या होगा ? वैसे छत्तीसगढ़ की राज्यपाल कई मुद्दों पर सख्त तेवर दिखा चुकी है।

कोरिया में कांग्रेस का कलह

कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है , लेकिन एक कलेक्टर की विदाई पर छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में कांग्रेस की गुटबाजी सतह पर आने की घटना को राजनीति की नई संस्कृति मानी जा रही है। कलेक्टर सत्यनारायण राठौर की विदाई पर कोरिया जिले के बैकुंठपुर में कांग्रेस के ही कुछ लोगों ने पटाखे चलाकर खुशियां मनाई। कहते हैं कलेक्टर साहब बैठकों में एक विधायक को बड़े भाव देते थे , लेकिन दूसरे विधायकों को तवज्जो नहीं देते थे। इससे विधायकों और समर्थकों में गुस्सा तो था ही। मौका हाथ आया तो जश्न मना लिया। कहते हैं जश्न मनाने वालों को कांग्रेस के एक बड़े नेता ने हवालात भिजवा दिया , हालांकि दूसरे एक नेता ने उन्हें छुड़वा दिया। मामला शांत करने के लिए संसदीय सचिव और बैकुंठपुर की विधायक अंबिका सिंहदेव को संदेश जारी करना पड़ा। इसी से गुटबाजी के स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है।

विभागाध्यक्ष से दुखी महिला कर्मचारी

कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में एक विभागाध्यक्ष से उनके ही विभाग की महिला अफसर और कर्मचारी बड़े दुखी हैं। चर्चा है कि विभागाध्यक्ष महोदय कुछ महिला कर्मचारियों को अपने इशारे पर चलाना चाहते हैं , यह कुछ महिला कर्मचारियों को पसंद नहीं है। कहा जा रहा है कि कुछ महिला कर्मचारियों ने सरकार के एक बड़े अफसर के पास जाकर अपना दुख सुनाया और विभागाध्यक्ष के खिलाफ कुछ कदम उठाने का आग्रह किया, लेकिन रुतबेदार विभाग के विभागाध्यक्ष को समझाइश देकर या कोई कदम उठाकर बर्रे की छत में कोई भी आला अफसर हाथ नहीं डालना चाहता। खबर है कि महिला कर्मचारी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर गुहार लगाने की सोच रही हैं।

नेताओं के हनुमान

जिस तरह हनुमान जी भगवान श्रीराम के अन्यन और भरोसे के सेवक थे, ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ में कुछ नेताओं के विशेष सहायक भी हैं। इनमें मंत्री रविंद्र चौबे के विशेष सहायक डीपी तिवारी, मंत्री टीएस सिंहदेव के विशेष सहायक आनंद सिंह और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के निज सहायक मनोज शुक्ला का नाम लिया जाता है। डीपी तिवारी मंत्री रविंद्र चौबे से वर्षों से जुड़े हैं। चौबे जी पद पर रहते हैं तो भी तिवारी जी उनके साथ दिखते हैं और पद पर नहीं रहते हैं तो भी उनकी छाया बने रहते हैं। सिंहदेव के विशेष सहायक आनंद सिंह, जिन्हें भी लोग सालों से देख रहे हैं। कुछ लोग आनंद को टीएस सिंहदेव से अलग करने की चाल चली, पर भगवान और भक्त का तो चोली -दामन का साथ होता है। ऐसा ही जुड़ाव बृजमोहन अग्रवाल और मनोज शुक्ला का है। बृजमोहन जब से विधायक बने हैं तब से मनोज उनसे जुड़े हैं। तिवारी जी, आनंद बाबू और मनोज शुक्ल अपने नेता के साथ छाया की तरह जुड़े ही नहीं हैं , बल्कि उनके आँख और कान जैसे भी हैं।

कमलप्रीत का कद घटा

भूपेश सरकार में सचिव सामान्य प्रशासन विभाग, परिवहन और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे डॉ. कमलप्रीत सिंह का कद कम होना लोगों को आश्चर्य में डाल दिया। चर्चा है कि एक निगम के अध्यक्ष से कुछ मुद्दों पर मतभेद के साथ-साथ परिवहन विभाग के कुछ काम उनकी विदाई के कारण बन गए। 2002 के आईएएस कमलप्रीत को लो-प्रोफ़ाइल में रहते अपने काम करते रहने वाला अफसर माना जाता है। पिछले हफ्ते आईएएस अफसरों के फेरबदल में परिवहन और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग का काम 2005 के अधिकारी टोपेश्वर वर्मा को सौंप दिया गया। सरकार ने अब कमलप्रीत को जीएडी के साथ सचिव स्कूल शिक्षा और डीपीआई बना दिया है। नए प्रभार के बाद उन्हें मंत्रालय और संचालनालय के फेरे लगाने पड़ेंगे।

सरकार को झटका

भाजपा सरकार में नियुक्त छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष डॉ. सियाराम साहू की हाईकोर्ट से बहाली को कांग्रेस सरकार के लिए झटका कहा जा रहा है। भूपेश सरकार ने करीब दस महीने पहले कांग्रेस नेता थानेश्वर साहू को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने थानेश्वर साहू की नियुक्ति को शून्य करार देते हुए सियाराम साहू के पक्ष में नौ जून को फैसला दे दिया। सियाराम साहू का कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो जाएगा, पर दस महीने की लड़ाई का फल उन्हें मिला। इस जीत से भाजपा के नेता सीना फुलाने लगे हैं। सियाराम ने एक तरफ़ा कार्यभार ग्रहण भी कर लिया।

प्रमोटी आईपीएस फंसे

1995 से 1998 बैच के राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों को आईपीएस का तमगा तो मिल गया है , पर आईपीएस का ओहदा कब से मिलेगा यह अब तक तय नहीं हो पाया है। याने ईयर अलाटमेंट नहीं हुआ है। बिना ईयर अलाटमेंट वाले प्रमोटी आईपीएस अभी जिलों के कप्तान हैं। चर्चा है कि राज्य सरकार ने ईयर अलाटमेंट का प्रस्ताव महीनों पहले भारत सरकार को भेज दिया था , लेकिन केंद्र के कार्मिक मंत्रालय ने फाइल को आगे नहीं बढ़ाया। कहा जा रहा है राज्य सरकार की तरफ से फालोअप न होने से फ़ाइल गति नहीं पकड़ रही है। कहते हैं राज्य पुलिस सेवा से आईपीएस बनने वाले अफसरों को 12-13 साल की सीनियारिटी मिल जाती है। ईयर अलाटमेंट होने से 1995 से 1998 बैच के राज्य पुलिस सेवा से आईपीएस प्रमोट अफसर कई सीधी भर्ती वाले आईपीएस से वरिष्ठ हो जाएंगे। कहा जा रहा है कि 1998 बैच के राज्य पुलिस सेवा के चार अफसरों का आईपीएस अवार्ड अभी भी अटका है।

समय-समय की बात

जब स्व. अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री थे, तब अमित जोगी से मिलने और बात करने के लिए कलेक्टर-एसपी इंतजार करते थे। समय ऐसा बदला कि बस्तर कलेक्टर रजत बंसल ने उनका फोन नहीं उठाया। इसे कहते हैं समय-समय का फेर। रजत बंसल 2012 बैच के आईएएस हैं, उन्हें 2001 से 2003 की बात क्या पता होगा ? 2013 से 2018 तक मरवाही से विधायक रहे और वर्तमान में जोगी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी को कलेक्टर साहब के फोन न उठाने से इतना गुस्सा आया कि उन्होंने इसकी शिकायत मुख्य सचिव और बस्तर के कमिश्नर को करने के साथ ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कार्रवाई करने की गुहार लगा दी। यह अलग बात है कि मामला तूल पकड़ते देख कलेक्टर ने सफाई दी और बात आई-गई हो गई। अब अमित के इस तीखे तेवर के मायने तलाशे जा रहे हैं।


(लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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