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म.प्र. भाजपा में भुट्टा – पार्टी के निहितार्थ

राजनीति जो न कराये सो कम है. अब मध्यप्रदेश में भाजपा के बहुनुखी प्रतिभा के धनी नेता कैलाश विजयवर्गीय को अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ भुट्टा पार्टी में ‘ ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे ‘गाकर दिखाना पड़ रहा है .कैलाश विजयवर्गीय ने अपने से तीन साल छोटे शिवराज सिंह चौहान को खो देने के तमाम जतन किये लेकिन अंत में जब कामयाबी नहीं मिली तो शिवराज सिंह चौहान के सामने घुटने तक दिए. कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा परिसर में भुट्टा पार्टी दी थी. इससे पहले तीन साल पहले मुख्यंत्री शिवराज सिंह भी भुट्टा पार्टी देकर चर्चित हो चुके हैं.

कैलाश विजयवर्गीय को शिवराज सिंह चौहान के साथ गाते देखकर मजा भी आया और दया भी आयी. कैलाश विजयवर्गीय और शिवराज सिंह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सीढ़ियां पार करते हुए राजनीति में शीर्ष तक पहुंचे लेकिन शिवराज आगे निकल गए और कैलाश विजयवर्गीय लगातार पिछड़ते ही चले गए. मध्यप्रदेश के इन दोनों नेताओं ने राजनीति में भी एक साथ ही वर्ष 1990 में कदम रखा था. कैलाश जी विधानसभा के लिए चुने गए जबकि शिवराज सिंह चौहान लोकसभा के लिए चुने गए. पांच बार लोकसभा के लिए चुने जाने के बावजूद शिवराज सिंह की किस्मत ने पलटा खाया और उन्हें 2005 में बाबूलाल गौर के स्थान पर मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया और संयोग देखिये की कैलाश विजयवर्गीय देखते रह गए. उन्हें मंत्री ही बनाया गया .जबकि वे इससे पहले उमा भारती और बाबूलाल गौर मंत्रिमंडल में भी मंत्री रह चुके थे.

मध्यप्रदेश में भाजपा के अंगद साबित हुए शिवराज सिंह चौहान का तख्ता पलटने के लिए प्रदेश भाजपा के अनेक नेताओं ने हाथपांव मरे,िनमने कैलाश विजयवर्गीय का नाम सबसे पहले लिया जाता था. दुर्भाग्य देखिये की भाजपा ने शिवराज सिंह के लिए चुनौती बने कैलाश विजयवर्गीय को 2015 में पार्टी का राष्ट्रिय महा सचिव बनाकर प्रदेश की राजनीति से ही अलग कर दिया. बीते छह साल से कैलाश जी घर वापसी के लिए परेशान है लेकिन उनके नसीब का दरवाजा खुल ही नहीं रहा है. 2020 में मध्यप्रदेश में तख्ता पलट के बाद जब एक बार फिर भाजपा की सरकार बनी तो फिर शिवराज सिंह चौहान को ही मुख्यमंत्री बनाया गया, कैलाश जी फिर टापते रह गए.

कहने को कैलाश विजयवर्गीय मध्यप्रदेश भाजपा के सबल नेताओं में से एक हैं. उनके पास बाहुबल, धनबल और जनबल तीनों हैं. वे इस मामले में शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले इक्कीस ही बैठते हैं लेकिन नसीब के मामले में शिवराज सिंह चौहान बाजी मार ले जाते हैं. उम्मीद की जा रही थी की यदि बंगाल विधानसभा चुनाव में तृण मूल कांग्रेस सत्ता से बाहर होती है तो बंगाल का प्रभारी होने के नाते कैलाश विजयवर्गीय को पुरस्कृत करते हुए मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन यहां भी कैलाश विजयवर्गीय को उनके नसीब ने धोखा दिया.

बीते सोलह सालों में कैलाश विजयवर्गीय जैसे तैसे अपने बेटे को विधायक बनवाने में तो कामयाब हो गए किन्तु लाख जतन करने के बावजूद वे अपने बेटे को मंत्री नहीं बनवा पाए. मुख्यमंत्री पड़ की दौड़ में लगातार पिछड़े कैलाश विजयवर्गीय का कद बेटे को मंत्री न बनवा पाने की वजह से भी कम हुआ. कैलाश विजयवर्गीय का दुर्भाग्य कि उनके प्रबल विरोधी ज्योतिरादित्य सिंधिया न सिर्फ भाजपा में शामिल हुए बल्कि उन्हें केंद्र में मंत्री भी बना दिया गया. सिंधिया के आने से कोलाश विजयवर्गीयै भोपाल के साथ इंदौर में भी कमजोर हो गए. अब सिंधिया के दरबार के सामने उनका दरबार उजाड़ दिखाई देता है.

भाजपा के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि इस बार कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी हाईकमान ने स्पष्ट कर दिया है कि वे मध्यप्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान के आड़े न आएं तो बेहतर है. कैलाश विजयवर्गीय ने भी स्थितियों का आकलन करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने समर्पण करने का न सिर्फ निर्णय किया बल्कि भुट्टा पार्टी के बहाने अपने फैसले को दोस्ती का गीत गाकर जाहिर भी कर दिया . कैलाश विजयवर्गीय की दुर्गति से उनके समर्थकों में खासी मायूसी है, लेकिन कोई कुछ कर नहीं सकता.

भाजपा हाईकमान को पता है कि कैलाश विजयवर्गीय मध्य्प्रदेश में उमाभारती की तरह पार्टी हाईकमान से बगावत नहीं कर सकते .अलग पार्टी बनाकर राजनीति करने का बूता उनमें है नहीं. न ही वे मदनलाल खुराना है. उनमने कांग्रेस के युवा तुर्कों जैसा आत्मबल भी नहीं है. वे नवजोत सिंह सिद्दू की तरह भी अपनी पार्टी हाईकमान को विवश नहीं कर सकते. उन्हें अब वक्त का इंतजार करना होगा और ये वक्त फ़िलहाल दूर है. आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले मध्यप्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं है.

मध्यप्रदेश की राजनीति में इस समय मुखयमंती शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर की त्रयी प्रभावी है और मजबूती के साथ काम कर रही है. इन तीनों के रहते अब मध्यप्रदेश भाजपा में ऐसा क भी नेता नहीं है जो शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व को चुनौती दे सके. शिवराज सिंह चौहान के लिए भाजपा की ब्राम्हण लॉबी से थोड़ा-बहुत चुनौती थी भी लेकिन उसे भी पार्टी हाईकमान ने निर्मूल कर दिया.

जहां तक मेरी स्मृति कहती है कि शिवराज सिंह चौहान मध्‍यप्रदेश मे सबसे लम्‍बे समय तक मुख्‍यमंत्री के रूप मे कार्यभार संभालने वाले पहले मुख्‍यमंत्री है, शिवराज सिंह ने 13 वर्ष 17 दिन का मुख्‍यमंत्री का कार्यभारत सम्‍भाला है, और वर्तमान मे भी व‍ह 15 महिने के बाद फिर मे मुख्‍यमंत्री के पद का दुबारा निर्वाह कर रहे है। मध्‍य प्रदेश मे सबसे ज्‍यादा बार मुख्‍यमंत्री बनने का कीर्तिमान भी शिवराज सिंह चौहान के ही नाम है. @ राकेश अचल

 

 

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