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घर के चूल्हे पर कीमतों का हमला

सरकार और जनता के दिमाग से तालिबान का भूत शायद अब उतर गया होगा, नहीं उतरा होगा तो आजकल में उतर जाएगा, क्योंकि घर का चूल्हा जलाने के काम आने वाली गैस की कीमतें अब लगातार बढ़ रहीं हैं. एक दिन में 25 रूपये की बढ़ोतरी ने तो जैसे ये साबित कर दिया है कि अब सरकार के काबू में कुछ नहीं रहा. मजे की बात ये है कि घरेलू अर्थव्यवस्था के मेरुदंड पार हुए इस हमले के बावजूद देश की जनता उद्वेलित नहीं हैं.

घरेलू रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद देश में रसोई गैस की खपत 7 .3 फीसदी और उज्जला योजना के तहत दिए गए सिलेंडरों की खपत में 20 फीसदी का इजाफा हुआ है. जाहिर है कि अब मंहगाई के खिलाफ बोलने का साहस देश की जनता में बचा नहीं है. जनता महंगाई को नीयति मान चुकी है और सर झुकाकर इसे सहन कर रही है. भारत में रसोई गैस के उपभोक्ता जिस रफ़्तार से बढ़ रहे हैं कीमतें भी उससे तेज रफ़्तार से बढ़ रहीं हैं.

आंकड़े बताते हैं कि बीते एक दशक में रसोई गैस कनेक्शनों की संख्या 10 .6 करोड़ से बढ़कर 29 .11 करोड़ हो गयी है. जबकि रसोई गैस के दाम बीते 7 साल में ही भाजपा की सरकार आने के बाद से दोगुना हो चुका है। एक मार्च, 2014 को एलपीजी का दाम 410.5 रुपये प्रति 14.2 किलो पर था, जो अब 819 रुपये प्रति सिलिंडर हो चुका है। कर आदि मिलकर अब ये सिलेण्डर अनेक शहरों में एक हजार रूपये से भी ज्यादा का पड़ने लगा है.

रसोई गैस की कीमतें बढ़ने के तमाम कारण हैं लेकिन जनता को राहत देने के लिए अब तक जो किया जाता था, शायद अब नहीं किया जा रहा है. देश में रसोई गैस का 60 फीसदी भाग आयात से पूरा होता है. बीते एक साल में रसोई गैस का आयात भी 11 फीसदी बढ़ा है. इसके लिए सरकार और जनता बराबर की जिम्मेदार है. सरकार ने रसोई गैस का घरेलू उत्पादन बढ़ाया नहीं और जनता ने अपनी खपत बढ़ा ली. रसोई गैस की कीमतों में इजाफे की दूसरी वजह विश्व बाजार में कच्चे माल [ब्यूटेन] की कीमतों में 150 फीसदी की बढ़ोतरी है. ये कीमतें सरकार के बस में नहीं हैं.

घर के चूल्हे पर मंडरा रहे इस संकट में उपभोक्ता की स्थिति कोढ़ में खाज होने जैसी है. सरकार कोरोना की आड़ में रसोई गैस पर मिलने वाली राज सहायता पहले ही बंद कर दी है और ऊपर से कीमतें दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं .कीमतें बढ़ने की रफ्तार तो अब सुरसा को भी चिढ़ाने लगी है .कीमतें बढ़तीं हैं तो सरकार अपने नागरिकों को राहत देने के लिए राज सहायता बढ़ाती है.जो पहले से बंद है. इसका सीधा सा मतलब है कि जनता जिए या मरे सरकार का उससे कोई लेना-देना नहीं है.

रसोई गैस के दाम बढ़ने से आम उपभोक्ता की कमर तो टूट ही रही थी, लेकिन अब वे 8 करोड़ गरीब भी सरकार को बद्दुआएं दे रहें हैं जो उज्ज्वला योजना के तहत घर में रसोई गैस का मुफ्त सिलेंडर ले आये थे. चालू साल में ही रसोई गैस की कीमतों में 27 .04 फीसदी का इजाफा हुया है. जो इस बात का सीधा प्रमाण है कि मंहगाई पर सरकार का कोई भी नियंत्रण नहीं है. उज्ज्वला योजना वाले हारकर एक बार फिर से गोबर के उपलों और लकड़ी की तरफ लौट रहे हैं.

देश की जनता पहले से ही डीजल-पेट्रोल की कीमतों में हुए अप्रत्याशित इजाफे से हलकान थी और अब रसोई गैस ने तो जैसे जनता का कचूमर ही निकाल दिया है, लेकिन सरकार इसलिए बेफिक्र है कि इस महंगाई के खिलाफ जनता के सब्र का बांध टूट ही नहीं रहा. जनता मंहगाई के मुद्दे पार किसी भी राजनीतिक दल के साथ नहीं है. मंहगाई के मुद्दे पर सत्तारूढ़ भाजपा को कुछ कहना नहीं है और कांग्रेस के पास राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने की कोई युक्ति और शक्ति नहीं है. सरे राजनीतिक दलों के जन सरोकार जैसे गंगा जी में प्रवाहित कर दिए गए हैं.

भारत में चूल्हे पर सीधा हमला पहले भी हुआ है लेकिन अब तो जैसे मंहगाई के सर पर कौन सवार है और सरकार डर के मारे फरार है. राजनीति दल ट्वीट-ट्वीट खेलकर अपना नैतिक दायित्व पूरा कर रहे हैं. मंहगाई की सुरसा के खिलाफ कोई ह्निणाम सामने नहीं आ रहा है. सारे हनुमान अपनी-अपनी सत्ता बचाने में लगे हैं. सरकार के सामने जैसे मंहगाई मुद्दा है ही नहीं. सरकार कभी कोरोना का रोना रोटी है तो कभी तालिबान की वजह से हलकान होती है. और कुछ नहीं तो कोई गाय सरकार के आंगन में आकर रम्भाने लगती है संसद से लेकर सड़क तक सन्नाटा पसरा है. किसान आंदोलन पर भी इस महंगाई की माए साफ़ दिखाई दे रही है.

रसोई गैस को लेकर सबसे बड़ी विडंबना ये है कि जनता के हाथ में करने के लिए कुछ है नहीं और राजनीतिक दल अपनी जिम्मेदारी निभाने को राजी नहीं है. महगाई से केवल रामजी खुश हैं क्योकि महंगाई का राम मदिर निर्माण पर तो कोई असर पड़ नहीं रहा. मंदिर के लिए मिट्टी की ही नहीं सोने तक की ईंटे उपलब्ध हैं पैसे की कोई कमी नहीं है मंदिर निर्माण पर सब फ़िदा हैं. यदि राम जी की कृपा न हुई तो जान लीजिये कि लोकतंत्र खतरे में पड़ जायगा.

मेरा मानना है कि जिस देश की संसद और विधानसभाएं मंहगाई जैसे मुद्दे पर बहस नहीं करतीं वहां जनता भी कुंद हो जाती है जनता के सामने बहस के लिए बे-सर-पैर के मुद्दे परोस दिए जाते हैं ताकि जनता उलझी रहे और सरकार अपनी गति से काम करती रहे. हमारी सरकार लगातार काम कर रही है. हर मोर्चे पर काम कर रही है. सरकार ने तालिबान को मान्यता दी है. वहां फंसे भारतीयों को वापस निकाल रही है. सरकार इससे ज्यादा और क्या कर सकती है? रसोई गैस की बढ़ती कीमतों से निजात मिलना तो मुश्किल है इसलिए उसका सामना करने के तौर-तरीके खोजे जाएँ. मुमकिन हो तो आप अपना ज्यादातर भोजन कच्चा खाएं. चूल्हे कम से कम जलाएं. मुमकिन हो तो भंडारे और लंगरों का सहारा लें. दूसरा कोई विकल्प फिलहाल न सरकार के सामने है और न आपके. आपको भी सरकार बदलने के लिए अभी तीन साल प्रतीक्षा करना होगी. तब तक मुमकिन है कि रसोई गैस के दाम 1500 रूपये प्रति सिलेंडर हो जाएँ ! @राकेश अचल

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