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कही-सुनी ( 05 SEPT-21): छत्तीसगढ़ में अब भी नेतृत्व को लेकर तस्वीर धुंधली

samvet srijan

(रवि भोई की कलम से)


बयानों और गतिविधियों से ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के भीतर नेतृत्व के मसले पर अभी भी संशय बना हुआ है। यह तो साफ़ है कि नेतृत्व के मुद्दे पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच तलवारें खिंची थी। लगता है दोनों ने अभी तलवार म्यान में नहीं रखा है और न ही हाईकमान ने किसी का पलड़ा भारी किया है। दोनों नेता अपने-अपने जीत को लेकर आश्वस्त हैं , पर जनता और कांग्रेसजन परिणाम के इंतजार में दिख रहे हैं।

कहते हैं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव दोनों धर्म-कर्म की राह पकड़े हैं। भूपेश बघेल ने पिछले दिनों धार्मिक नगरी अमरकंटक में पूजा-पाठ के साथ आस्था की डुबकी लगाई, तो सिंहदेव के दिल्ली में पूजा-पाठ की खबर है। माना जा रहा है दोनों नेता अपनी तरह से शक्ति भी दिखा रहे हैं। मरवाही के विधायक डॉ. केके ध्रुव के यहां शोक के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ करीब डेढ़ दर्जन विधायक दिखे। मंत्री में अमरजीत भगत नजर आए।

विधायक ध्रुव के यहां दो दिन बाद सिंहदेव गए, कहते हैं उनके साथ गाड़ियों का बड़ा काफिला दिखा और उन्होंने पार्टी में दो विधायकों के इजाफे का नया शिगूफा छोड़ दिया। चर्चा है कुछ मंत्री चक्कर में पड़ने की जगह पहले ही ध्रुव के यहां हाजरी दे आए। नेतृत्व में बदलाव होता है या नहीं और कौन कितने गहरे पानी में है या किसके साथ कितने विधायक हैं, यह अलग बात है, पर राजनीतिक गतिविधियों से छत्तीसगढ़ थमा सा लग रहा है और लोगों के मन में जिज्ञासा का पहाड़ खड़ा हो गया है।

रंग बदलते कांग्रेसी नेता

कहते हैं राज्य में राजनीतिक उहापोह के बीच कई नेता और सत्ता के इर्द-गिर्द मधुमक्खी की तरह मंडराने वाले लोग गिरगिट की तरह रंग बदलने लगे हैं। चर्चा है कई अवसरों पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का स्वागत करने और होर्डिंग्स लगाने वाले एक व्यक्ति के नेशनल स्पोर्ट्स डे पर सोशल मीडिया के जरिये भेजे बधाई संदेश में भूपेश बघेल की तस्वीर नहीं दिखी, बधाई देने वाले ने अपना फोटो जरूर लगाया। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की पहली पुण्यतिथि पर सोशल मीडिया में एक कांग्रेस नेता के विज्ञापन में किसी नेता के फोटो नहीं दिखे। इस नेता को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का काफी करीबी कहा जाता है। वैसे ये नेता कई घाट का पानी पी चुके हैं और कई मुख्यमंत्रियों के करीबी भी रहे हैं।

अजय माकन के सामने प्रदर्शन

कहते हैं तीन सितंबर को रायपुर में मोदी सरकार के फैसलों के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस लेने आए कांग्रेस नेता अजय माकन से राज्य के एक मंत्री सुबह-सुबह मिलने उनके कमरे पर जा पहुंचे। सीनियर मंत्री को सुबह-सुबह अपने कमरे में देखकर अजय माकन थोड़े हड़बड़ाए, पर सीनियर मंत्री की शालीनता और अपने विभाग के बारे में ज्ञान से खासे प्रभावित हुए। कहा जा रहा है कि इसकी जानकारी लगते ही मंत्री जी के प्रतिद्वंद्वी एक कांग्रेसी नेता अजय माकन को भोजन के लिए अपने निवास पर बुला लिया। माना जा रहा है कि अजय माकन भले निर्णायक की स्थिति में न हों, पर वे व्यवहार और भोजन से राय तो बना सकते हैं और हाईकमान को राय दे भी सकते हैं।

भाजपा के चिंतन शिविर से अमृत कम, विष ज्यादा ?

कहा जा रहा है कि जगदलपुर में आयोजित भाजपा के चिंतन शिविर ने कई दिग्गज व कद्दावर नेताओं को एक नया संदेश दिया ही, साथ में पार्टी के नए रास्ते पर चलने का संकेत भी दिया। कहते हैं कि चिंतन शिविर से 2023 में सत्ता में वापसी का सूत्र निकलने की जगह विवाद का आगाज हो गया। जनसंघ के जमाने में हो या फिर भाजपा काल हो , छत्तीसगढ़ में पार्टी को सींचने वाले लखीराम अग्रवाल के बेटे पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल, पार्टी कोष को लबालब करने में भूमिका निभाने वाले गौरीशंकर अग्रवाल जैसे नेता को चिंतन शिविर से दूर करने की रणनीति लोगों को समझ नहीं आ रहा है। शिविर में आमंत्रण का मापदंड भी लोगों के सिर से ऊपर निकल रहा है। मसलन शिविर में दो जिला अध्यक्षों को किस आधार पर बुलाया गया। शिविर में आईएएस से राजनेता बने ओमप्रकाश चौधरी को ज्ञान साझा के लिए बुलाया गया, पर हाल ही में भाजपा में शामिल रिटायर्ड आईएएस गणेशशंकर मिश्रा के अनुभव का लाभ क्यों नहीं लिया गया ? अनुराग सिंहदेव, नीलू शर्मा और संजय श्रीवास्तव जैसे युवा चेहरे को भी चिंतन से दूर रखा गया। भाजपा की धुरी रहे सुभाष राव और दूसरे नेता जगदलपुर में रहते हुए दूर से शिविर को देखते रहे। कहा जा रहा है एक पूर्व मंत्री को 12 वां खिलाड़ी बना दिया गया। विवाद के साथ शुरू शिविर का समापन भी विवाद के साथ हुआ। पार्टी की प्रदेश प्रभारी डी.पुरेन्दश्वरी के बयान से कांग्रेस और दूसरे लोगों को भाजपा पर उंगुली उठाने का मौका मिल गया। कहा जा रहा है तीन दिन के शिविर में चिंतन-मनन से अमृत कम, विष ज्यादा निकला।

ठप्प पड़ा प्रशासन

कहते हैं प्रशासन में शीर्ष स्तर पर बैठे अफसर से लेकर कनिष्ठ कर्मचारी इन दिनों तेल देखो, तेल की धार देखो कहावत की अवधारणा पर चल रहे हैं। अफसर एक-दूसरे से टोह लेने में लगे हैं। छत्तीसगढ़ में राजनीतिक परिदृश्य पर अब भी बादल छाए नजर आ रहे हैं। अफसर-कर्मचारी सभी बादल छटने के इंतजार में हैं। कहा जा रहा है कि इस चक्कर में जिले से मंत्रालय तक के कामकाज की गति धीमी पड़ गई है। कुहासे में अफसर न तो कोई फैसला लेना चाह रहे हैं और न ही योजना बनाना चाह रहे हैं। रूटीन का काम चल रहा है। नेतृत्व में बदलाव के अटकलों से कुछ कलेक्टर अपने ऊपर खतरा भांपकर कदम भी नहीं बढ़ा रहे हैं। माना जा रहा है कि किसानों की तरह प्रशासन में बैठे लोग भी राज्य में बारिश के इंतजार में हैं।

सचिव की बात माननी पड़ी मंत्री को

कहते हैं एक निर्माण विभाग में प्रभारियों के सहारे विभाग चलाने के मसले पर मंत्री और विभागीय सचिव में ठन गई, तो मंत्री को विभागीय सचिव की बात माननी पड़ी। चर्चा है कि पिछले कई सालों से विभाग में फील्ड का कामकाज प्रभारियों के भरोसे ही चल रहा है , यहां तक की विभाग का मुखिया भी प्रभारी हैं। कुछ जिलों में तो ऐसे भी प्रभारी हैं , जो मापदंड में नहीं आते और नियमों में भी फिट नहीं बैठते। कहा जा रहा कि विभाग की प्रभारी परंपरा को लेकर विभागीय सचिव ने असहमति दिखाई , तो कई लोगों के लिए प्रमोशन के द्वार खुल गए और उनका भाग्य चमक गया, पर संविदा नियुक्ति की प्रथा पर रोक का अफसरों को इंतजार है।


(लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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