अफगानिस्तान में नई तालिबानी सरकार को जल्द ही मजबूत राजनीतिक विपक्ष का सामना करना पड़ेगा. सूत्रों से एक्सक्लूसिव जानकारी मिली है. बताया जा रहा है कि पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई, डॉ अब्दुल्लाह, रेजिस्टेंस फ़ोर्स के नेता अहमद मसूद और पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह इस संबंध में आपस में संपर्क में हैं.
निर्वासित सरकार के गठन की संभावनाओ से भी इंकार नहीं- सूत्र
सूत्रों के मुताबिक, गनी सरकार के दौरान करीब 70 देशों में तैनात सभी अफगानी राजदूत भी इस बातचीत में शामिल हैं और जल्दी ही तालिबान के खिलाफ एक मज़बूत राजनीतिक विकल्प खड़ा हो सकता है. सूत्रों ने निर्वासित सरकार के गठन की संभावनाओ से भी इंकार नहीं किया. इससे ये संकेत भी साफ मिलते हैं कि इस संदर्भ में ये सभी लोग तमाम मुल्कों के संपर्क में है. लिहाज़ा दुनिया भर के देश तालिबान को मान्यता देने में ज्यादा जल्दीबाजी नहीं करेंगे.
तालिबान के खिलाफ राजनीतिक विकल्प खड़ा करने की ज़रूरत- सूत्र
सूत्रों ने कहा कि क्योंकि कि तमाम दावों के विरुद्ध ना तो तालिबान की सरकार व्यापक बनी और ना ही औरतों को उनके हक दिए जा रहे. तालिबान पिछली बार की ही तरह अपनी दमनकारी नीतियों पर कायम है. लिहाज़ा तालिबान के खिलाफ एक राजनीतिक विकल्प खड़ा करने की ज़रूरत है. ये इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि इस बार तालिबान के खिलाफ रेजिस्टेंस फ़ोर्स भी खड़ी नहीं हो पाई. इस बार अमेरिका भी वापस लौट चुका है और ताजिकिस्तान भी अमरुल्लाह सालेह की मदद नहीं कर रहा.
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