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मनोभावों को शब्दरूप में पिरोया और बन गई किताब

पर्ल्ड रेनड्राप्समें मारीषा समा पिंगुआ की 41 कविताओं का संग्रह, सेवानिवृत्त आईएएस व लेखक श्री बीकेएस रे के हाथों विमोचन

रायपुर. (14 नवंबर 2021). जिस उम्र में कई युवा शब्दों के अर्थ समझने में लगे होते हैं उस उम्र में रायपुर की मारीषा समा पिंगुआ ने मर्म से भरी कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। जिनकी हर कविता के पीछे गहरे भाव छिपे हैं, लेकिन शब्दों में पिरोने की खासियत ऐसी कि पाठक खुद ही अपनी समझ के आधार पर उन कविताओं का अर्थ निकाल सके। 23 वर्षीया मारीषा समा पिंगुआ की प्रकृति, प्रेम, मनोभाव व दर्शन को समाहित करते हुए लिखी गई 41 कविताओं के संग्रह कि किताब ‘पर्ल्ड रेनड्राप्स’ का विमोचन रविवार 14 नवंबर राजधानी के एक निजी होटल में किया गया। इस मौके पर मुख्यअतिथि के रूप में भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री बी.के.एस. रे थे। वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में पूर्व डीजीपी श्री ए.एन. उपाध्याय, पीसीसीएफ श्री राकेश चतुर्वेदी, अपर मुख्य सचिव श्री सुब्रत साहू, एडीजी श्री प्रदीप गुप्ता मौजूद थे। बता दें कि मारीषा, वरिष्ठ आईएएस एवं वन विभाग के प्रमुख सचिव श्री मनोज कुमार पिंगुआ की बेटी हैं।

छोटी उम्र में ही साहित्य की ओर रुझान पर मारीषा समा पिंगुआ ने बताया कि पहली बार कक्षा छठवीं में पढ़ने के दौरान मन में आने वाले विचारों को उन्होंने नोटपैड में लिखना शुरू किया। फिर उम्र बढ़ने के साथ कोर्स की किताबों व टीवी सीरियल के कुछ पात्रों से प्रभावित होकर उन पर कुछ कविताएं लिखीं। समय से साथ प्रकृति, मानवीयता, आध्यात्मिकता, मनोदशा, राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य से लेकर प्रेम व वात्सल्य से जुड़े विषयों पर भी लिखना शुरू कर दिया। यह सारी रचनाएं जीवन अनुभवों पर आधारित हैं। मारीषा बताती हैं कि, उन्हें प्रकृति बहुत प्रभावित करती है और यही उन्हें सकारात्मकता भी देती है। इसकी बानगी मारीषा की किताब में नजर भी आती है, जिसमें कविता के भाव से जुड़ी मारीषा द्वारा ही बनाई गई पेंटिंग्स व पोट्रेट को भी जगह दी गई है। मारीषा ने अपनी रचना में इस बात का ध्यान रखा है कि बतौर लेखक उनके विचार पाठक पर हावी न हों और रचना का प्रभाव पाठक की मनोदशा के अनुसार हो।

विमोचन अवसर पर लेखिका के पिता व वरिष्ठ आईएएस श्री मनोज कुमार पिंगुआ ने मंच को संबोधित करते हुए कहा कि, लिखना उनका भी शौक रहा है लेकिन व्यस्तताओं की वजह से वे इस क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाए। इस दौरान मारीषा के बारे में बताया कि, कविताओं को लेकर बेटी मारीषा की रुचि का पता था लेकिन वह किताब लिखने की स्थिति में भी आ जाएगी यह जानने के बाद वे आश्यर्चचकित थे। श्री पिंगुआ ने मंचस्थ अतिथियों की साहित्यिक विशेषताओं पर अपने अनुभव रखे साथ ही बेटी मारीषा की रचना को किताब रूप में लाने के लिए अपने मित्रवत प्रो. आनंदमूर्ति मिश्रा, लेखक श्री अमूल्य प्रियदर्शी, श्री ज्ञानेन्द्र सिंह एवं श्री अरुण पांडेय को श्रेय दिया। साथ ही कहा कि, बेटी की इस उपलब्धि पर वे खुद को गौरवांन्वित महसूस कर रहे हैं।

कविता लिखना आसान नहीं :

मारीषा की कविता संग्रह पर आधारित किताब के विमोचन में बतौर मुख्यअतिथि मौजूद सेवानिवृत्त आईएएस व लेखक श्री बीकेएस रे ने अपने अनुभवों पर कहा कि, “कविताओं ने मुझे जीवन के उतार-चढ़ाव में सहारा दिया है।” अब तक अपनी 44 किताबें और 23 कविता संग्रह को प्रकाशित करा चुके श्री रे का कहना था कि, “कविता लिखना अंतर्मन के विचारों को लिपिबद्ध करना है, जिसके कई रंग होते हैं। हर कवि का अपना अलग अंदाज होता है,  लेकिन कविता लिखना आसान नहीं होता। हर कोई यह काम नहीं कर सकता।” मारीषा की रचनाओं के संबंध में कहा कि ‘पर्ल्ड रेनड्राप्स’ किताब में समाहित हर कविता एक संदेश दे रही है। गहरे प्रभाव छोड़ने वाली रचनाओं के लिए शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने मारीषा को इसी तरह आगे भी लेखन जारी रखने के लिए प्रेरित किया। साथ ही कहा कि, कई लेखक एक-दो किताबें लिखकर थम जाते हैं लेकिन लिखना जारी रखना चाहिए क्योंकि लेखन ऊर्जा देता है।

लेखन के लिए संवेदना का होना जरूरी :

विमोचन कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि पूर्व डीजीपी श्री ए.एन. उपाध्याय ने कहा कि, उन्होंने भी कभी स्वांत: सुखाय के लिए लिखा है लेकिन कविताएं लिखना कोशिश करने से नहीं होता, यह अंतर्मन से निकलने वाले भाव से ही संभव है। उन्होंने कहा कि, कविता लिखने के लिए भीतर संवेदना होना जरूरी है। साथ ही लिखने के बाद उसे छपवाने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए होती है। मारीषा ने अपने नाम को चरितार्थ करते रचना की है और बेटी के प्रयास को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने पिंगुआ परिवार को सराहा।

नाम के अनुरूप काम :

विशिष्ट अतिथि पीसीसीएफ श्री राकेश चतुर्वेदी ने प्रथम कवि पर आधारित सुमित्रानंदन पंत जी की रचना से अपनी बात शुरू की। इसके बाद मारीषा समा के नाम का अर्थ समझाते हुए कहा कि मारीषा का अर्थ समुद्र होता है और समा का अर्थ माहौल, जिस तरह से समुद्र के अंतरल गहराइयों में मोती छुपे होते हैं, उसी तरह मारीषा के भीतर भी रचना के मोती हैं। रचनात्मकता ईश्वर प्रदत्त होती है। उन्होंने कहा कि, ज्यादातर माता-पिता बच्चों से वह उम्मीद करते हैं जो वे जीवन में नहीं कर पाए। लेकिन बच्चों की वास्तविक प्रतिभा को निखारने का काम करना चाहिए। मारीषा के प्रयास के लिए उन्होंने अपनी शुभकामनाएं दीं।

मौलिक लेखन को मिले बढ़ावा :

कार्यक्रम में मौजूद वरिष्ठ आईएएस व अपर मुख्य सचिव श्री सुब्रत साहू ने कहा कि किसी भी साहित्य रचना के लिए दिमाग में विचार आना जरूरी है। विचार एक चीज है जो अचानक ही आता है और यही वास्तविक है। कोई फिल्म देखकर या किताब पढ़कर आए विचार को लिखना मौलिक लेखन नहीं है। लेकिन मारीषा ने छोटी उम्र में मौलिक लेखन कर बड़ी उपलब्धि हासिल की है।

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