राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का अस्तित्व सिमटता जा रहा है, वहीँ उसे पार्टी के भीतर और बाहर मोर्चा लेना पड़ रहा है। कांग्रेस के संकटमोचक माने जाने वाले नेता अहमद पटेल के निधन से रिक्तता भी दिखाई दे रही है। सरकार बचाने में विफल रहे कमलनाथ नेपत्थ्य में चले गए हैं , तो अशोक गहलोत अपने राज्य में ही जूझ रहे हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह का अपना ओहारा है और नारायण सामी किसी बड़े राज्य के मुख्यमंत्री नहीं हैं। कांग्रेस के थिंक टैंक कहे जाने वाले नेता कोप भवन में दिख रहे हैं। कहा जा रहा है इन सबके चलते पार्टी के भीतर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की गिनती शीर्षस्थ नेताओं में होने लगी है। छत्तीसगढ़ में जमीनी और जनाधार वाले नेता माने जाने वाले स्व. अजीत जोगी और उनके परिवार के सदस्यों को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखाने वाले भूपेश बघेल ने राज्य में दो साल पहले कांग्रेस के 15 साल का वनवास खत्म कर अपना कद ऊँचा कर लिया था । मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका ग्राफ तेजी से बढ़ा है। किसान और गांव की राजनीति कर भाजपा के सामने चुनौती पेश करने वाले भूपेश बघेल की सलाह-मशविरा कांग्रेस हाईकमान के लिए जरुरी हो गई है। पिछले दिनों दिल्ली में पार्टी की महासचिव और गाँधी परिवार की अहम सदस्य प्रियंका गांधी से भूपेश बघेल की घंटों मुलाक़ात और चर्चा उसका उदहारण है।
पावरफुल मुख्यमंत्री सचिवालय
हाल के प्रशासनिक फेरबदल के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव और सचिव के पास करीब-करीब बड़े और महत्वपूर्ण माने जाने वाले सभी विभागों के चार्ज आ गए हैं। वहीँ निर्माण कार्य वाले विभाग जल संसाधन, लोक निर्माण और पीएचई के कर्ताधर्ता मुख्यमंत्री के सचिवों को ही बना दिया गया है। राज्य निर्माण के बाद यह पहला अवसर है कि मुख्यमंत्री के सचिव ही निर्माण विभागों के भी सचिव हैं। वैसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास ऊर्जा, खनिज, वित्त, सामान्य प्रशासन, जनसंपर्क और आईटी विभाग हैं। कहा जा रहा है कि प्रशासनिक हेरफेर के जरिए मुख्यमंत्री ने मंत्रियों पर नकेल कस दिया है। सचिवों के मार्फ़त मुख्यमंत्री को अब उन विभागों की भी सीधी जानकारी मिलती रहेगी , जिनके वे मंत्री नहीं हैं। मंत्री ताम्रध्वज साहू के गृह जेल और लोकनिर्माण विभाग, रविंद्र चौबे के जलसंसाधन विभाग, मोहम्मद अकबर के आवास एवं पर्यावरण विभाग और गुरु रुद्रकुमार के पीएचई विभाग के सचिव मुख्यमत्री सचिवालय से भी जुड़े हैं। मुख्यमंत्री के सचिवों के पास जो विभाग हैं उन्हें आमतौर पर महत्वपूर्ण और मलाईदार माना जाता है। वजनदार और दमदार विभाग मुख्यमंत्री सचिवालय के अफसरों के पास ही रहने से राज्य के मुख्यमंत्री सचिवालय को अत्यधिक पावरफुल कहा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ प्रदूषण संरक्षण मंडल में फिर फंसा पेंच
इंजीनियरिंग और साइंस की डिग्री न होने के कारण करीब डेढ़ साल पहले भूपेश बघेल की सरकार को आवास एवं पर्यावरण विभाग की तत्कालीन सचिव संगीता पी को छत्तीसगढ़ प्रदूषण संरक्षण मंडल के अध्यक्ष पद से हटाना पड़ा था। उनकी जगह आरपी मंडल को अध्यक्ष बनाया गया था। मंडल के रिटायरमेंट के बाद भूपेश सरकार ने आईएएस सुब्रत साहू को अपर मुख्य सचिव आवास एवं पर्यावरण के साथ छत्तीसगढ़ प्रदूषण संरक्षण मंडल का अध्यक्ष बनाया है। सुब्रत साहू इंजीनियरिंग और साइंस स्नातक नहीं हैं। राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री वाले हैं। छत्तीसगढ़ प्रदूषण संरक्षण मंडल के अध्यक्ष की नियुक्ति की शर्तों में साइंस स्नातक का उल्लेख है और एनजीटी का भी निर्देश है कि साइंस स्नातक को ही प्रदूषण संरक्षण मंडल का अध्यक्ष बनाया जाय। अब देखते हैं नियमों में संशोधन किया जाता है या फिर किसी दूसरे को अध्यक्ष बनाया जाता है।
किस्मत वाले अंकित आनंद
वैसे तो छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल में राज्य सरकार किसी को भी अध्यक्ष बना सकती है। अजीत जोगी के मुख्यमंत्रित्वकाल में इंजीनियर मंडल अध्यक्ष रहे। रमन राज में मुख्यसचिव और रिटायर मुख्य सचिव मंडल अध्यक्ष हुए। भूपेश बघेल ने इंजीनियर को अध्यक्ष बनाया, पर वे ज्यादा दिन नहीं चले। इसके बाद वे भी आईएएस अफसरों की तरफ रुख करने लगे। पहले सुब्रत साहू को और अब अंकित आनंद को छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल का अध्यक्ष बनाया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 2006 बैच के आईएएस अंकित को सीएसईबी का चैयरमेन बनाकर सबको चौंका दिया है। आमतौर पर सेवा के आखिरी दौर या रिटायरमेंट के बाद ही अफसरों को विद्युत मंडल अध्यक्ष की कुर्सी मिलती रही है। आईएएस अंकित आनंद इतने भाग्यशाली हैं कि 14 साल की सेवा में ही उन्हें ऊँची कुर्सी मिल गई। अंकित आनंद विद्युत वितरण कंपनी के करीब चार साल तक एमडी रहे हैं। एसके शुक्ला के मंडल अध्यक्ष बनने के बाद वे दुर्ग कलेक्टर बनकर चले गए। अंकित क्रेडा के सीईओ थे, तब एसके शुक्ला क्रेडा के एडिशनल सीईओ हुआ करते थे। समय बदला, शुक्ला गए, अंकित आए।
मलाई खाकर हुए बेआबरू
कहते हैं स्कूल शिक्षा विभाग के एक अधिकारी 12 साल तक भरपूर मलाई खाकर आखिरकार बड़े बेआबरू होकर विभाग से निकले। वेटिंग लिस्ट वाले यह अफसर अपने तिकड़म और मंत्री-अफसरों की कृपा से लगातार पदोन्नति पाते रहे। राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की जाँच और अदालती दांवपेंच भी भोथरे रहे, पर अंत में इज्जत तार-तार हो ही गई। भाजपा राज में तीन शिक्षा मंत्रियों के नाक के बाल रहे इस अधिकारी को बड़े अफसरों का भी भरपूर संरक्षण रहा। सब कुछ जानते हुए भी वे आँखें बंद किए हुए थे। एक बड़े अधिकारी ने तो स्कूल शिक्षा विभाग के एक उपक्रम का नंबर दो बना दिया था। स्कूल शिक्षा विभाग के यह अफसर शतरंज की गोटियां चलकर तगमा लेते रहे। पीड़ितों की आवाज नक्कार खाने की तूती बनकर रह गई थी। पीड़ितों की आह कहें या उनका कर्म, वे विदाई के वक्त तगमा बचा न सके। इसे ही पीड़ितों की जीत मानी जा रही है।
वित्त सचिव के साथ कैसे होगी बजट चर्चा
अमिताभ जैन के मुख्य सचिव बनने के बाद भूपेश सरकार ने 2004 बैच की आईएएस अफसर अलरमेलमंगई डी को राज्य का नया वित्त सचिव बनाया है। किस अधिकारी को क्या काम दे, यह सरकार का विशेषाधिकार है, लेकिन आमतौर पर अपर मुख्य सचिव या वरिष्ठ प्रमुख सचिव को वित्त विभाग देने की परंपरा रही है। छत्तीसगढ़ में भी 20 साल से यह परंपरा चली आ रही थी। भूपेश सरकार ने परंपरा से हटकर कदम उठाया है। वित्त विभाग से सभी विभागों को काम पड़ता है और वित्त विभाग के पास हर विभाग की चाबी भी होती है। इस कारण कई विभागों में काम करने के अनुभव वाले आईएएस अफसर को वित्त की जिम्मेदारी दी जाती है, जिससे वे विभाग की बारीकियों से पहले ही वाकिफ होते हैं, दूसरा राज्य के सालाना बजट तैयारी में वित्त सचिव के साथ हर विभाग के एसीएस, प्रमुख सचिव और सचिव की मीटिंग की परंपरा है। सवाल उठ रहा है कि सुपर टाइम स्केल मिलते ही वित्त की कमान सँभालने वाली मंगई डी से बजट चर्चा के लिए उनसे वरिष्ठ उनके कक्ष में जायेंगे या वे चर्चा के लिए वरिष्ठों के कक्ष में जाएँगी। लंबे समय तक वित्त सचिव रहे अमिताभ जैन के मार्गदर्शन में वित्त विभाग तो चल जायेगा, पर सीनियर-जूनियर की बाधा कैसे दूर होगी, यह देखने वाली बात है ?
चतुर सुजान पुलिस अफसर
कहते हैं पुलिस से न दोस्ती अच्छी और न ही दुश्मनी। चर्चा है कि सरकार ने एक पुलिस वाले पर भरोसा कर बड़ी जिम्मेदारी दे दी, पर पद मिलने के साथ पुलिस वाले ने सरकार से जुड़े लोगों के बारे में जानकारी जुटाकर अपने हाथ मजबूत करने में लग गए। सरकार की नींद खुली और आनन -फानन में पुलिस वाले को गड्डे में पटक दिया। अब सरकार के नीति निर्धारकों ने पुलिस वाले को निपटाने का फार्मूला ढूंढ निकाला है। देखते कौन किस पर भारी पड़ता है ?
(-लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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