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डिहाइड्रेशन से शरीर पर क्या होता है बदलाव, जानिए कितने दिनों तक बिना पानी के आप रह सकते हैं जीवित ?

एक अनुमान के मुताबिक, 2025 तक दुनिया की करीब दो तिहाई आबादी को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा. पृथ्वी पर जिंदगी के लिए पानी अत्यंत आवश्यक है. इंसानी शरीर का औसत करीब 60-70 फीसद हिस्सा पानी से बना होता है. शरीर से पानी मूत्र, पसीना, टॉक्सीन्स और सांस के जरिए बाहर निकलता है. इसकी भरपाई कुछ खाकर और पीकर पूरी होती है. जितना पानी हम इस्तेमाल करते हैं, उसका एक हिताई हिस्सा हमारे खाने से आता है. अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हमारा शरीर पानी की कमी का शिकार हो जाता है.

पानी की कमी का पहला चरण प्यास का होता है. ये उस वक्त शुरू होता है जब हमारे शरीर का 2 फीसद वजन कम हो चुका होता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि प्यास लगने पर शरीर तमाम नमी निचोड़ने की कोशिश में लग जाता है. पसीना कम आने पर शरीर का तापमान बढ़ जाता है और खून गाढ़ा होने के अलावा सुस्त हो जाता है.

डिहाइड्रेशन या पानी की कमी शरीर के साथ होनेवाली शिद्दत के मुताबिक बदलती रहती है. अगर 50 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान पर पानी न हो और उसके साथ-साथ व्यायाम भी हो रहा है, तो पानी की कमी बहुत तेजी से खतरनाक भी हो सकती है. इंसानों में गर्मी की शिद्दत झेलने की एक सीमा होती है. उससे आगे बढ़ने पर मौत का शिकार होना भी पड़ सकता है. इसलिए सख्त सर्दी के दिनों में मौत का प्रतिशत बढ़ जाता है. लेकिन भीषण गर्मी में उसमें और तेजी से इजाफा होता है.

गर्म वातावरण में व्यायाम करते वक्त शरीर से हर घंटे 1.5-3 लीटर तक पानी निकल जाता है. इसके अलावा 100-1500 मिलीलीटर पानी सांस के जरिए नमी से निकलता है. उसका शरीर पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. मामूली पानी की कमी थकान देने के लिए काफी साबित होती है. इससे हमारे कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित होती है. ज्यादा पानी निकलने पर ठंडा होने की क्षमता कम होने लगती है. जिससे ज्यादा गर्मी हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकती है.

शरीर से ज्यादा पानी निकलने और शरीर के अंदर कम  आने पर खून गहरा होने लगता है. प्राकृतिक तंत्र को ब्लड प्रेशर को बरकरार रखने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. हमारे गुर्दे कम पेशाब पैदा कर अधिक पानी बरकरार रखने की कोशिश करते हैं. हमारी कोशिकाओं से भी पानी बाहर निकलकर खून की धारा में शामिल हो जाता है. जिसकी वजह से उसका आकार सिकुड़ जाता है.

शरीर से चार फीसद पानी निकलने की सूरत में ब्लड प्रेशर गिर जाता है और हम बेहोश हो सकते हैं. शरीर का सात फीसद वजन कम होने पर फिर तीसरा चरण आता है. ये उस वक्त होता है जब अंगों को नुकसान पहुंचना शुरू होता है. जानकारों का कहना है कि एक हेल्दी व्यस्क के पेशाब में 95 फीसद पानी होता है और बाकी पांच फीसद अपशिष्ट गुर्दे से आता है. उसमें खारा पानी और एमोनिया शामिल होता है.

डिहाइड्रेट होते वक्त पानी के तत्व स्पष्ट तौर पर कम हो जाते हैं. डिहाइड्रेशन खराब होने से दिमाग के काम करने की क्षमता प्रभावित होती है. विशेषज्ञों का कहना है कि छांव में आराम करने से शरीर के तापमान में गिरावट होती है. जिससे हाइड्रेशन की प्रक्रिया सुस्त पड़ जाती है. डिहाइड्रेशन खून की नालियों को सख्त करने की वजह बन सकती है जिससे दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है.

गर्म वातावरण और डिहाइड्रेट होने से समस्या और गंभीर हो जाती है. पुख्ता तौर पर साफ नहीं है कि पानी के बिना इंसान कितनी देर तक जीवित रह सकता है. अधिकतर वैज्ञानिक इस बात पर समहत हैं कि इंसान बिना कुछ खाए-पीए सिर्फ कुछ दिन ही जिंदा रह सकता है. 1944 में दो वैज्ञानिकों में से एक ने तीन दिन के लिए और दूसरे ने चार दिन के लिए खुद को पानी से महरूम रखा. इस दौरान वैज्ञानिक सिर्फ सूखा खाना खाते रहे.

अपने प्रयोग के आखिरी दिन दोनों को खुराक निगलने में दुश्वारी होने लगी. उनके चेहरे किसी हद तक बीमार और पीले पड़ गए. हालांकि, अपनी स्थिति को और ज्यादा बिगड़ने से पहले ही उन्होंने प्रयोग को रोक दिया. पानी के बिना जिंदगी की क्षमता भी विभिन्न लोगों में बिल्कुल अलग होती है. उदाहरण के तौर पर ऐसे सबूत हैं कि शरीर इस्तेमाल होनेवाले पानी की सतह के मुताबिक ढल सकता है. पानी के बिना सबसे लंबे समय तक बच रहनेवाले ऑस्ट्रिया के 18 वर्षीय आंद्रे हैं. उन्होंने 1979 में 18 दिन तक पुलिस हिरासत में बंद रहकर बिताए थे.

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