पिछला साल तो जैसे तैसे आपने काट दिया लेकिन अगला साल कैसा होगा. क्या कोरोना का टीका आपको लग जाएगा. क्या गई नौकरी वापस आ जाएगी. क्या देश की इकोनामी पटरी पर आएगी. क्या आप मनपंसद की गाड़ी इस साल खऱीद पाएंगे. ऐसे ही कुछ सवाल आपके दिल में उठ रहे होंगे. जवाब तलाशते हैं. इस साल बेरोजगारी दर 27 परसेंट रही. करीब बारह करोड़ लोगों की नौकरी गयी. लेकिन इस साल के लास्ट कवार्टर में बेरोजगारी दर घटकर सात परसेंट पर आ गयी. इससे पहले के कवार्टर में 21 परसेंट थी यानि लोगों को वापस नोकरियां मिल रही हैं. कहा जा रहा है कि जो 12 करोड़ नोकरियां गयी उनमें से भी आठ करोड को दोबोरा काम मिल गया. यही सिलसिला जारी रहा तो आप उम्मीद कर सकते हैं कि अगले साल बेरोजगारी दर और ज्यादा कम होकर पांच परसेंट तक आ सकती है. यानि अच्छी खबर.
लेकिन यह काम इतना आसान नहीं होगा. भारत में हर साल 80 लाख से एक करोड़ नये मजदूर बाजार में आ जाते हैं. अब वोकल फॉर लोकल की जो बात हो रही है या फिर जो पैकेज छोटे मीडियम उदयोगों के लिए दिया गया है, मेक इन इंडिया का जो नारा दिया जा रहा है उससे बहुत काम चलने वाला नहीं है. हालांकि जानकारों का कहना है कि कोरोना काल में वर्क फ्राम होम का चलन बड़ा. दफ्तर से बाहर काम करने का भी चलन बढ़ा.यह सिलसिला जारी रहने वाला है. इससे कंपनियौं को फायदा हुआ है लेकिन ओवरआल रोजगार देने में कामयाबी नहीं मिली है. तो कुल मिलाकर यह साल कुछ राहत तो देगा लेकिन सबके दुख दूर नहीं ही हो पाएंगे.
यहां सुझाव दिया जा रहा है कि कोरोना में गांव लोटे मजदूरों को भी प्राथमिकता के आधार पर टीका लगाना चाहिए. इसका एक फायदा यह होगा कि जो मजदूर वापस शहर जाने से डर रहे हैं उनमें आत्मविस्वास आएगा और वह वापस लौट सकेंगे. वैसे भी जानकारों का कहना है कि शहरों से भी गांव लौटने वालों का सिलसिला भी हालात सामान्य नहीं होने तक जारी रहेगा. ऐसे मजदूरों को भी पहले टीका लगा दिया जाए तो शहरों से गांवों और गांवों से शहरों में कोरोना फैलने की एक आशंका तो खत्म होगी. मेरी नजर में यह बड़ा व्यवहारिक सुझाव है. इस पर भारत सरकार को जरुर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए.