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सड़क जैसी संसद के सदके

किसी शहर की नगर निगम परिषद से जब देश के उच्च सदन की तस्वीर मेल खाने लगे तो समझिये कि देश में लोकतंत्र की फसल लहरा तो रही है लेकिन उसमें चारोँ तरफ से अलोकतांत्रिक खरपतवार भी लहलहा रही है .देश में पहली बार हुआ जब उच्च सदन राज्य सभा के सदस्यों ने सभापति को ज्ञापन देकर अपने पीटे जाने के गंभीर आरोप लगाए. दुनिया के अनेक देशों में ऐसी घटनाएं प्रकाश में आती रहतीं है लेकिन जब विश्वगुरु भारत की रही सभा में सदस्यों के साथ मारपीट की घटनाएं होतीं हैं तो सिर शर्म से झुक जाता है .

दरअसल हमारे देश में ऐसी घटनाएं कम ही होती हैं जब देश का सिर गर्व से ऊंचा उठता है. ओलम्पिक में सोने का एक तमगा जीतकर हमारे भालावीर नीरज ने देश को ये मौक़ा दिया लेकिन हम बहुत देर तक अपना गर्वोन्नत सिर ऊंचा नहीं रख सके .कुछ ही दिनों में राज्य सभा में विपक्ष के सदस्यों की पिटाई से हमारा यानि देश का सिर शर्म से झुक गया. कानपुर में एक अल्पसंख्यक को पीट-पीटकर जबरन राम कहने के लिए विवश करने की घटना भी शर्म करने के लिए उतनी ही बड़ी थी जितनी की राज्य सभा में विपक्ष के सदस्यों की मारपीट की.

राज्य सभा में मारपीट हुई या नहीं ये तो वहां सदन की कार्रवाई के लये लगे कैमरे भी बता सकते हैं ,लेकिन कैमरे भी तो संवेदनशील होते हैं, मुमकिन है कि मारपीट होते देख उन्होंने भी शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली हों. इसलिए विपक्षी सदस्यों ने सभापति को ज्ञापन देकर मामले की जांच करने की शिकायत की है.

उप राष्‍ट्रपति वैंकैया नायडू से मुलाकात के बाद कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि राज्यसभा में बाहरी लोगों को बुलाया गया. सदन में बाहरी लोगों ने पिटाई करने का काम किया. उन्होंने कहा कि जो सदन में हुआ वो अलोकतांत्रिक है. सदन में गतिरोध के लिए सरकार जिम्मेदार है. पेगासस मुद्दे पर चर्चा से सरकार भाग रही है. सरकार ने जान बूझकर सदन नहीं चलने दिया.खड़गे साहब विपक्ष के एक जिम्मेदार नेता हैं इसलिए उनकी बात असत्य होगी ऐसा मानने का कोई कारण नजर नहीं आता.

विपक्ष यदि सदन के भीतर पिटा न होता तो शायद ही उसे सड़कों पर आने की जरूरत पड़ती. मामला अकेले कांग्रेस का होता तो भी संदिग्ध माना जा सकता था किन्तु जब कांग्रेस के साथ दूसरे विपक्षी नेताओं ने संसद भवन से विजय चौक तक पैदल मार्च किया तो लगा कि मामला सचमुच गंभीर है इस दौरान कई नेताओं ने बैनर और तख्तियां ले रखी थीं. बैनर पर ‘हम किसान विरोधी काले कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हैं’ लिखा हुआ था. विपक्षी नेताओं ने ‘जासूसी बंद करो’, ‘काले कानून वापस लो’ और ‘लोकतंत्र की हत्या बंद करो’ के नारे भी लगाए.

इस समूचे मामले में आपको राहुल गांधी पर यकीन करना हो तो कीजिये क्योंकि उन्होंने कहा है कि- राज्यसभा में सांसदों की पिटाई की गई और इस संसद सत्र में देश के 60 प्रतिशत लोगों की आवाज को दबाया गया, अपमानित किया गया तथा विपक्ष को जनता के मुद्दे उठाने का मौका नहीं दिया गया. राहुल गांधी ने मुमकिन है कि देश के स्वास्थ्य मंत्री जैसा सफेद झूठ न बोला हो, और अगर बोला होगा तो कौआ उन्हें काटेगा ही. लेकिन सवाल ये है कि हमारे देश की संसद में जो हो रहा है वो होना चाहिए ? संसद में हंगामा और कार्रवाई को ठप्प करना कोई नयी बात नहीं है किन्तु सदस्यों की पिटाई वो भी महिला सदस्यों की पिटाई और वो भी बाहरी लोगों द्वारा वाकयी गंभीर मामला है.

मामला चूंकि राजनीतिक है इसलिए उपराष्ट्रपति या और कोई इस मामले की गंभीरता को समझकर माकूल कार्रवाई करेगा ऐसा लगता नहीं है, उलटे सरकार के तेवरों से तो ऐसा लगता है कि कार्रवाई फरियादी सांसदों के खिलाफ की जा सकती है. भारतीय लोकतंत्र में ये बहुत स्वाभाविक काम है. आपको याद होगा कि देश के एक पूर्व मंत्री जो संयोग से स्वामी भी हैं के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की के साथ उत्तर प्रदेश में क्या हुआ था ?

सरकार जब विपक्ष के साथ आर-पार की लड़ाई लड़ने पर आमादा होती है तो वो सब कुछ कर गुजरती है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता. उदाहरण के लिए ट्विटर को ही लीजिये. ट्विटर ने राहुल गांधी और कांग्रेस के बाद 21 अन्य नेताओं के खाते बंद कर दिए. जाहिर है आप कहेंगे कि ये सब ट्विटर का अपना मामला है लेकिन हकीकत ये नहीं है. ट्विटर भी आखिर एक कारोबार है जिसे सरकार के इशारे पर नृत्य करना पड़ता है. आप माने या न माने, ये आपकी मर्जी है किन्तु इसका रिश्ता भी राज्य सभा में विपक्षी सदस्यों की पिटाई से है.

पुरानी कहावत है कि – ‘खिसियानी बिल्ली खम्बा नौंचती है, यहां तो पूरी सरकार खिसियानी बैठी है. सरकार और बिल्ली में बुनियादी अंतर सिर्फ इतना है कि बिल्ली सिर्फ खम्बा नौंच सकती है लेकिन सरकार खिसियाने पर खम्बा गिरा भी सकती है, फिर भले ही वो खम्बा लोकतंत्र का हो या किसी इमारत का. लोकतंत्र के खम्बे वैसे भी इन दिनों बुरी तरह से हिल-डुल रहे हैं. मै तो कहूंगा कि थर-थर काँप रहे हैं. इस समय केवल उन मंदिरों के खम्बे मजबूत हैं जिनमें लोकतंत्र नहीं बल्कि मर्यादा पुरषोत्तम बैठते हैं. ट्विटर का मामला अदालत के पास विचाराधीन है इसलिए उसके बारे में और कुछ नहीं कहा जा सकता.

अब सवाल ये है कि सरकार और विपक्ष लोकतंत्र को मजबूत करने के नाम पर भविष्य में और क्या-क्या तरीके अपनाएंगे ? सरकार के पास सब कुछ है और विपक्ष के पास कुछ नहीं. सरकार लोकतांत्र को बचने के लिए साम,दाम,दंड और भेद का इस्तेमाल करेगी, पर विपक्ष क्या करेगा ? विपक्ष केवल सड़कों पर लड़ाई लड़ सकता है, किन्तु दुर्भाग्य ये है कि हाल ही में किसानों की लड़ाई सड़कों पर लड़ते हुए कामयाबी हासिल नहीं हुई, क्योंकि आरक्षण के मुद्दे पर विपक्ष ने अप्रत्याशित रूप से उस सरकार की हाँ में हाँ मिलाई जो किसानों को आठ महीने से सड़कों पर बैठा देखकर भी उनकी अनदेखी कर रही है. किसानों को अब संसद के बजट सत्र तक फैसले की प्रतीक्षा करना होगी.

कुल जमा जनता द्वारा चुने गए सांसदों की सदन के भीतर कथित पिटाई के बाद नंबर जनता का आने वाला है. निर्वाचित प्रतिनिधि पिट चुके तो अब उन्हें निर्वाचित करने वालों को पीटना ही पड़ेगा, अन्यथा लोकतंत्र की रक्षा कैसे होगी. लोकतंत्र को बचने के लिए लाठी ही पहला और अंतिम अस्त्र होता है. इसलिए अपनी लाठियों को हर वक्त तेल पिलाकर तैयार रखिये, क्योंकि अब लोकतंत्र वोट के नहीं लाठी के सहारे चल रहा है. लाठी में न धार होती है और न बारूद भारी जाती है. लाठी एकदम अहिंसक हतियार है. हमारे बुंदेलखंड में तो आज भी कहते हैं कि-जिसकी लाठी,उसकी भैंस’. @राकेश अचल

 

 

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