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हेट स्पीच :चोर के हाथ में चाबी

राकेश अचल

देश की सबसे बड़ी अदालत जब कोई निर्देश देती है तो उसका सम्मान किया जाता है ,स्वागत किया जाता है .’ हेट स्पीच ‘ का अर्थ मोटे तौर पर किसी को भड़काने वाला बयान,भाषण या लेखन होता है .भाषण, लेखन, या व्यवहार में किसी भी तरह का संचार जो किसी व्यक्ति या समूह के संदर्भ में उनके धर्म, जातीयता, राष्ट्रीयता, नस्ल, रंग, वंश, लिंग या अन्य पहचान कारकों के आधार पर अपमानजनक या भेदभावपूर्ण भाषा पर हमला करता है या उपयोग करता है, शब्दकोश के अनुसार घृणास्पद भाषण या हेट स्पीच कहा जाता है।

विसंगति ये है कि जिस सम्भाषण को घृणास्पद माना जाता है उसके लिए हमारे देश में न तो कोई स्पष्ट विधिक परिभाषा है और न ही कोई स्पष्ट क़ानून .ये सरकार और अदालतें तय करती हैं की कौन सा भाषण,लेखन घृणास्पद है और कौन सा नहीं ? हाल के दशकों में भाषणों और लेखन के जरिये घृणा फैलाने का एक सुनियोजित आंदोलन चल पड़ा है .घृणा राजनीति का सबसे बड़ा हथियार बन गया है और अब पानी सिर के ऊपर जा रहा है.मुमकिन है कि बात अदालतों तक को आहत करने लगी हो इसलिए देश की सबसे बड़ी अदालत को इस मामले में सख्त होना पड़ा और सरकारों को निर्देशित करना पड़ा .

लेकिन सवाल ये है कि घृणा फैलाता कौन है ? नेता ,सत्ता लोलुप राजनीतिक दल,धार्मिक नेता या आम आदमी ? आम आदमी घृणा क्या कुछ भी नहीं फैला सकता. उसकी आजादी पर इतनी पाबंदियां हैं की बेचारा ढंग से अपने पैर भी नहीं फैला सकता,घृणा तो बहुत दूर की बात है .घृणा फैलाने का असल काम सियासी और मजहबी नेता करते हैं .राजनीतिक दल करते हैं. बाकायदा ये काम राजनीतिक और धार्मिक दलों और संगठनों का एजेंडा होता है .मुश्किल ये है की घृणा के फैलने की रफ्तार प्रेम फैलने की रफ्तार से कम है .पहले संतन ढिंग बैठकर प्रेम की बेल फैलती थी,कालांतर में संतन ढिंग बैठने से घृणा की बेल फैलती है .
देश की सबसे बड़ी अदालत ने नफरती भाषण ‘हेट स्पीच ‘ को एक ऐसा गंभीर अपराध करार दिया जो देश के धर्मनिरपेक्षी ताने-बाने को प्रभावित करने में सक्षम है .अदालत ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे ऐसे अपराधों में भले ही कोई शिकायत दर्ज न हो, फिर भी मामला दर्ज करें.शीर्ष अदालत द्वारा यह टिप्पणी हेट स्पीच की घटनाओं के खिलाफ कार्रवाई करने में राज्यों की निष्क्रियता को लेकर दायर याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई के दौरान की गई.शीर्ष अदालत इससे ज्यादा क्या कर सकती है ? सरकारों से शीर्षासन तो नहीं करा सकती ,लेकिन मुझे लगता है कि जो राज्य सरकारें खुद घृणा को पल्ल्वित -पुष्पित करतीं है वे घृणा के खिलाफ कार्रवाई कैसे करेंगीं.?

हम दुनिया की छोड़ केवल अपने देश की बात करें तो बीते 75 साल में हम ये तय ही नहीं कर पाए की आखिर घृणा है क्या ? कैसे इसको चिन्हित किया जाये ? कैसे इसके खिलाफ कार्रवाई की जाये ? ‘हेट स्पीच’ को लेकर अलग से कोई कानूनी व्याख्या नहीं है बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार पर कुछ लगाम कसते हुए एक तरह से हेट स्पीच को परिभाषित किया गया है. संविधान के आर्टिकल 19 के मुताबिक अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार पर 8 किस्म के प्रतिबंध हैं.राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, कोर्ट की अवहेलना, मानहानि, हिंसा भड़काऊ, भारत की अखंडता व संप्रभुता में से किसी भी बिंदु के तहत अगर कोई बयान या लेख आपत्तिजनक पाया जाता है तो उसके खिलाफ सुनवाई और कार्रवाई के प्रावधान हैं.

आपको यदि याद हो तो इसी देश में कुछ समय पहले ‘हेट स्पीच ‘ का एक बहुचर्चित मामला भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा का आया था . नूपुर शर्मा के खिलाफ महाराष्ट्र के ठाणे के मुंब्रा थाने में एक और मामला दर्ज किया गया था नूपुर शर्मा के खिलाफ कथित तौर पर दुश्मनी को बढ़ावा देने और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में आईपीसी की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है. नूपुर शर्मा पर एक टीवी चैनल पर डिबेट के दौरान पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी करने काआरोप था .आखिर नूपुर शर्मा का क्या हुआ ? पूरी सरकार नूपुर शर्मा के साथ खड़ी हो गयी और नूपुर शर्मा को बचा ले गयी .
सुप्रीम कोर्ट ने उस समय भी नूपुर शर्मा की टिप्पणियों को “तकलीफ़देह” बताया था और कहा कि किसी पार्टी की प्रवक्ता होने का मतलब ये नहीं है कि उनके पास ऐसे बयान देने का लाइसेंस है.कोर्ट ने ये भी कहा कि जिस तरह से नूपुर शर्मा ने देश भर में भावनाओं को उकसाया, वैसे में देश में जो भी हो रहा है उसके लिए वो अकेली ज़िम्मेदार हैं. उन्हें पूरे देश से माफ़ी मांगनी चाहिए थी.

भारतीय दंड विधान यानी आईपीसी के सेक्शन 153[अ ]के तहत प्रावधान है कि अगर धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, रिहाइश, भाषा, जाति या समुदाय या अन्य ऐसे किसी आधार पर भेदभावपूर्ण रवैये के चलते बोला या लिखा गया कोई भी शब्द अगर किसी भी समूह विशेष के खिलाफ नफरत, रंजिश की भावनाएं भड़काता है या सौहार्द्र का माहौल बिगाड़ता है, तो ऐसे मामले में दोषी को तीन साल तक की कैद की सज़ा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.लेकिन कितनों को इस प्रावधान के तहत सजा हुई ? घृणा का अपराध कितना जघन्य माना जाता है ये इस अपराध के लिए तय सजा के प्रावधान से समझा जा सकता है .

घृणा फैलाने का अपराध अब केवल भारत में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर किया जानेलगा है .इसकी प्रतिक्रिया भी अब अंतराष्ट्रीय स्तर पर होने लगी है .अमेरिका जैसे ताकतवर देश से लेकर सूडान जैसे कमजोर देश तक इस घृणा के जहर की चपेट में हैं .लेकिन हम दुनिया से पहले अपने देश की फ़िक्र करें .सुप्रीम कोर्ट ने पहल की है .ठीक समय पर की है क्योंकि इस देश में एक बार फिर चुनाव का मौसम आ गया है. इसी मौसम में घृणा के बीज छिटकाये जाते हैं,उन्हें खाद -पानी दिया जाता है .युवा से लेकर उम्र दर्ज और जिम्मेदार राजनेता घृणा की खेती में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं .

घृणा फैलाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हम सब स्वागत करते हैं किन्तु हमें आशंका है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से दशा सुधरेगी ,क्योंकि जिस देश में हम रह रहे हैं उसी देश में हत्या के मामले में सजा याफ्ता अपराधी क़ानून में बदलाव कर रिहा किये जा रहे हैं और पुलिस अभिरक्षा में दिन – दहाड़े मारे भी जा रहे हैं .कोर्ट को और सरकार को समझना पडेगा कि घृणा की खेती गाजर घास जैसी है .इसे कौन फैलाता है ये तय ही नहीं हो पाता .ऐसे में कार्रवाई किसके खिलाफ की जाएगी ? कार्रवाई कौन करेगा ? क्या चोर के हाथ में चाबी देने से चोरी रोकी जा सकती है ?

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