नए रिसर्च से खुलासा हुआ है कि कोको में मौजूद केमिकल्स बुजुर्गों की याद्दाश्त क्षमता को बढ़ा सकता है. अमेरिकी शोधकर्ताओं ने पाया है कि फ्लेवनोल्स 50-75 की उम्र वाले लोगों के लिए सीखने के प्रदर्शन को सुधारता है. फ्लेवनोल्स यौगिकों के समूह से संबंध रखता है जिसे पॉलीफेनोल्स कहा जाता है, जो चाय, जैतून का तेल, तेल, प्याज, ब्रोकली, रेड वाइन और ब्लूबेरी में भी पाया जाता है.
रिसर्च का प्रकाशन सोमवार को साइंटिफिक रिपोर्ट्स में हुआ है. मानव परीक्षण के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 211 स्वस्थ लोगों को शामिल किया. उनकी उम्र 50-75 साल की थी और परीक्षण 12 सप्ताह तक चला. रिसर्च की शुरुआत और अंत में शोधकर्ताओं ने सोच और याद्दाश्त का मूल्यांकन करने के लिए दिमाग को कई तरह से जांचा. प्रतिभागियों के दिमाग में रक्त प्रवाह को मापने के लिए एमआरआई स्कैन का भी इस्तेमाल किया गया. परीक्षण के दौरान प्रतिभागियों को चार ग्रुप में सप्लीमेंट के कई लेवल दिए गए जिसमें कोको के फ्लेवनोल्स थे.
अल्जाइमर रिसर्च यूके के रिसर्च डायरेक्टर सुसान कोल्हास ने कहा, “कोको बीन्स में मौजूद फ्लेवनोल्स छोटे परीक्षण के दौरान सीमित वक्त तक कुछ संभावित प्रभाव को स्पष्ट करता है, लेकिन हमें बड़े पैमाने पर परीक्षण करने की जरूरत है, जिससे समझा जा सके कि क्या फ्लेवनोल्स से भरपूर कोई डाइट बुढ़ापे में दिमागी प्रक्रिया को बढ़ा सकती है.” उन्होंने बताया, “हम ये भी नहीं जानते हैं कि सुधार को जांच में कितना सार्थक मापा गया.” रिसर्च के अंत में पाया गया कि फ्लेवनोल से भरपूर डाइट ने प्लेसेबो ग्रुप के मुकाबले खास याद्दाश्त के काम में बेहतर प्रदर्शन किया.
फ्लेवनोल सप्लीमेंट का दिमाग में रक्त प्रवाह पर 12 सप्ताह का कोई प्रभाव नहीं था. शोधकर्ताओं का कहना है कि रिसर्च में डिमेंशिया के पहलू पर विचार नहीं किया गया था. लिहाजा, नहीं कहा जा सकता कि क्या कोको से भरपूर डाइट स्थिति को विलंब करने या रोकने में प्रभाव डाल सकती है. रिसर्च में कोको फ्लेवनोल सप्लीमेंट्स कैप्सूल की शक्ल में प्रतिभागियों को मुहैया कराए गए थे. हालांकि कोको बीन्स चॉकलेट की बुनियाद हैं, लेकिन चॉकलेट फ्लेवनोल यौगिकों का भरोसेमंद स्रोत नहीं हैं और रिसर्च नहीं बताता है कि चॉकलेट का खाना दिमागी सेहत के लिए अच्छा है.
चॉकलेट प्रोडक्ट्स की अलग-अलग श्रेणी बनाने वाली कंपनी ने रिसर्च को आंशिक तौर पर समर्थन दिया था. शोधकर्ताओं का कहना है कि अनुसंधान पर निरंतर निवेश की जरूरत है, जिससे डिमेंशिया का कारण बननेवाली बीमारियों के खतरे को कम करने और दिमाग की सुरक्षा के तरीकों का पता लगाया जा सके. हालांकि, वर्तमान में डिमेंशिया को रोकने का कोई खास इलाज नहीं है. रिसर्च बताता है कि स्वस्थ जीवनशैली उम्र ढलने के साथ हमारे दिमाग को स्वस्थ रख सकती है. स्वस्थ डाइट, नियमित व्यायाम, धूम्रपान से दूरी और ब्लड प्रेशर के अलावा वजन को काबू में रखना डिमेंशिया के खतरे को कम करने में मदद कर सकते हैं.