हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली का त्योहार देशभर में नई उमंग और खुशियों के साथ मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार इस साल रंगों का त्योहार होली को 29 मार्च 2021, सोमवार को मनाया जाएगा. लोग एक दूसरे को गुलाल और अबीर लगाकर होली की शुभकामनाएं देंगे. वैसे बता दें कि इस साल होली पर बेहद शुभ योग बनने जा रहा है जिस कारण इस बार की होली का महत्व काफी ज्यादा बढ़ गया है.
होली पर बन रहा है ये शुभ योग
होली पर इस बार विशेष योग बन रहा है. दरअसल इस साल होली के दिन ध्रुव योग, अमृत योग व सिद्धि योग बन रहा है. ध्रुव योग तब बनता है जब चंद्रमा कन्या राशि में गोचर करती है और मकर राशि में इस दौरान शनि और गुरु विराजमान हो जाते हैं,वहीं शुक्र और सूर्य मीन राशि मे होते हैं और मंगल और राहुल वृषभ राशि में विराजमान हो जाते हैं. इस दौरान बुध कुंभ राशि में व केतु वृश्चिक राशि में विराजमान हो जाते हैं तो ध्रुव योग जैसा विशेष योग बनता है.
होली पर 500 साल बाद बन रहा है दुर्लभ योग
इसी दिन सर्वार्थसिद्धि योग के साथ ही अमृतसिद्धि योग का भी निर्माण हो रहा है. यानी इस बार होली सर्वार्थसिद्धि योग के साथ- साथ अमृतसिद्धियोग में मनाई जायेगी. ऐसा दुर्लभ योग 500 साल बाद बन रहा है. इसके पहले यह दुर्लभ योग 03 मार्च 1521 को पड़ा था.
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 28 मार्च को 03:27 पर होगी
पूर्णिमा तिथि का अंत 29 मार्च को 00:17 पर होगा
होलिका दहन मुहूर्त: 06:37 से 08:56 तक रहेगापौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप काफी शक्तिशाली असुर था. वह खुश को परमशक्तिशाली मानता था. इसी वजह से उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया हुआ था कि वे किसी भगवान की पूजा नहीं करेंगे और वही उनका भगवान है. लेकिन हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्लाद नारायण का परम भक्त था वो हर समय श्री हरि का नाम जपता रहता था. अपने बेटे को भगवान की भक्ति में लीन देखक हिरण्यकश्यप क्रोध से लाल हो जाता था. उसने कई बार बेटे को प्रभु की भक्ति से हटाने के प्रयास किए लेकिन प्रह्लाद तो हर पल श्री हरि में ही लीन रहता था.
हिरण्यकश्यप ने हारकर अपनी बहन होलिका से मदद मांगी और होलिका से प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठने को कहा जिससे प्रह्लाद उसमें जलकर भस्म हो जाए. दरअसल हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था जिसकी वजह से अग्नि उसे छू भी नहीं सकती थी इसलिए होलिका अग्नि में प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ गई. लेकिन प्रह्लाद की भक्ति की विजय हुई और उस अग्नि में होलिका ही जलकर भस्म हो गई और हरि भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ. बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक इसी कहानी को कहानी को कहा जाता आ रहा है और होली के समय इसे याद किया जाता रहा है.